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ठी साकी आप गाढी बुसीयां रखावसी । षांनपांनकी, पिंडांको जाबतो रषावसी । जाबतो तो बलदेवजी करसी पण ताबादार तो लषावसी । भरोसादार भला मनंष जीव-जोग साथै लीजो। इंद्र राजाकी तरैका वींद राजा (हो) वीजो। आपकी वाट भाळी छां । श्रौ दवस कदीयां ऊगै, जसीको भाग जागै, अलवल (र) आप प्राय पूगै ।"
मोडी प्रासिया बांकीदासजी के वंशजों में प्रसिद्ध कवि हो गये हैं जिनकी रचना पाबू प्रकाश विख्यात है । उन्होंने इस कथा के निर्माण में कुछ स्थलों पर अपनी विद्वत्ता और भाषा की विस्तृत जानकारी का सुन्दर परिचय दिया है । वास्तव में ये स्थल ही कथा को साहित्यक महत्व प्रदान करते हैं । दो स्थल इस दृष्टि से यहां उल्लेखनीय हैं :घोड़ों का वर्णन
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'पवन का परवांह 'गुलाब की मूठ' सघराजको गोटको, तारेकी तूट । प्रातसकी भभको, चक्रीकी चाल, चपलाको चमंको, चातीका ढाल । सींचाण की झडप, हींडैकी लूंब, षगराजका वच, षेतुमें खूब ऐहड़ा - ऐहड़ा पांच हजार घोड़ा सोनेरी सांकतां सज कीधा । "
जसां का सौन्दर्य-वर्णन -
'जसीया कसोयक छै आपने भी उधारे जसीयक छै । पतीयासीको कमल, गंगासी विमळ । भूभलीया नैणांकी, अमरतसा वैणांकी । ममौलौ, वादलांकी, बीज, होलीकी भाळ, सामणकी तोज । केळकौ गरभ, सोनेको षंभ, सीळकी सती, रूपकी रंभ। ताठी मरग, मगराकी मौर, पाबासर को हंस, मनकी चौर । जीवकी जड़ी, होयाको हार, अमीको ठाहौ, रूपकी अवतार । कांजांलीकी सांठी, गूंजालीको भळको, गैलाको कबण, हीडाको कलको । मुगलरो मींमचौ, वषायतरो झाली, सघरी गाटको प्रेमरी प्याली । सोलैमो सोनो, राजहंसरो वची, बावनौ चंदण, रेसमरी गचौ । करतीयांरौ भूबको, मोतीयांरी लूंब, हीरांरो लछौ, सरगरी भूंब । सनेहरी पालषी, हेतरी थाणी, नैणांरौ नरषणौ, प्रेमरी कमठांणी । सरदरी पूनम चंद, आसाढ़रो भांण, जसोयांकी तारीफ, बुधँका वाषांण । मदवीको मछौळो, हाथकी हाल, तीजणीयांकौ तुररी, रूपकी ससाल | कांषको लाडू, मोतीयांको गजरो, जलालीयाको धको, जसीयां को मुजरौ । कलपत्रच (छ) री डाळ, पारसरी टोळ, मेहरो महर, दरीयावरी छौल । तावड़ेरी छांह, अंधारैरो
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१ पृ० १६६
पृ० १६७
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