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पुनः भावात्मक सहजता के सूत्र में बांधा । जसां ने भी गुस्से ही गुस्से में कटु वचन कहने के लिए क्षमा मांगो । कथा-वैशिष्ट्य
युद्धवीरों, दानवीरों और धर्मवीरों को लेकर यहां के कवियों ने पुष्कल परिमाण में साहित्य-सृजन किया है । इन प्रमुख विषयों के अतिरिक्त कुछ चारण कवियों ने संभ्रान्त परिवार के नायकों को छोड़ कर साधारण व्यक्तियों का नाम अमर करने की मनोकामना से भी साहित्य-निर्माण किया है। ये व्यक्ति किसी न किसी कारण से कवियों के कृपापात्र बन गये थे और उनको सेवाओं का पुरस्कार उन्होंने उन्हें संबोधित कर साहित्य रचना के द्वारा किया है । राजिया, किसनिया, ईलिया, चकरिया आदि को संबोधित करके को गई रचनाओं के पीछे इसी प्रकार की कुछ बातें हैं। उन्नीसवीं शताब्दी से इस प्रकार को रचनाओं के निर्माण की परम्परा विशेष रूप से राजस्थानी-काव्य में गतिशील दिखाई देती है। __ मयाराम दरजी की वात भी इसी कोटि की रचना है। ऐसी किंवदन्ती प्रसिद्ध है कि भांडियावास (मारवाड़) के प्रसिद्ध कवि मोडजी पासिया जब एक बार लंबे अर्से तक बीमार रहे तब उन्हीं के गांव के दर्जी मयाराम ने उनकी बड़ी सेवा की थी। अत: कवि ने प्रसन्न होकर इस बात की रचना उसे नायक बना कर की।
जहां तक बात की कथावस्तु का संबंध है उसमें दैविक अवतार से कथा प्रारंभ होकर नायक-नायिका के उद्दाम यौवन में झुलती हई काम-क्रीड़ा और प्रेमी-युग्म की अनेकानेक चेष्टाओं को व्यक्त करती हुई समाप्त होती है। कथा में जहां एक ओर अत्युक्तिपूर्ण वर्णनों का प्राधिक्य है, वहां कामुकता और नग्न शृंगार का भी कवि ने बड़ी उदारता के साथ रस लेकर वर्णन किया है ।
राजस्थानी में प्रेमपाती लिखने की विशेष परम्परा रही है। प्रायः प्रेयसी भावुकतापूर्ण अलंकृत शैली में अपने प्रिय को अनेक प्रकार को उपमाओं से विभूषित करती हुई उसे पत्र लिखती है । इस बात में भी रामबगस सुग्गे के साथ जसां अपने प्रिय मयाराम को पत्र लिखती है, जिममें जसां के प्रेम-प्रदर्शन के साथ-साथ राजस्थानी संस्कृति के भो दर्शन होते हैं । ___ 'सिध श्री भांडीयावास वाली वाट मुहगी दसै, प्रातम का आधार मयारांम जी वस, अलवल (र) थी लषावतुं जसांको मुझरौ अवधारसी। रामबगस राज नषै आयो छ, जीको कुरब वधारसी। अठा लायक काम बिंदगी लषावसी।
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