Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur

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Page 17
________________ *. ( १२ ) १४. ब्रह्म गुलाल ब्रह्मगुलाल हिन्दी भाषा के कवि थे यद्यपि कवि की अब तक छोटी २ रचनायें ही उपलब्ध हुई हैं किन्तु भा एवं भाषा की दृष्टि से ये साधारणतः अच्छी है । इनकी रचनाओं में त्रेपनक्रिया, समवसरणस्तोत्र, जलगालनक्रिया, विवेकचौपई आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। विवेकचौपई अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में प्राप्त हुई है । कवि १७ वीं शताब्दी के थे । १५. गोपालदास गोपालदास की दो छोटी रचनायें यादुरासो तथा प्रभादीगीत जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के ६७ वें गुटके में संग्रहीत हैं। गुटके के लेखनकाल के आधार पर कवि १७ वीं शताब्दीया इससे भी पूर्व के विद्वान् थे | यादुरासों में भगवान नेमिनाथ के वन चले जाने के पश्चात् राजुल की विरहावस्था का वन है जो उन्हें वापिस लाने के रूप में है। इसमें २४ पद्य है । प्रमादीगीत एक उपदेशात्मकगीत है जिसमें आलस्य व्याग कर आत्महित करने के लिये है। इनके भी मिलते हैं । १६. चंपाराम भांवसा ये खण्डेलवाल जैन जति में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम हीरालाल था जो माधोपुर ( जयपुर ) के रहने वाले थे। चंपाराम हिन्दी के अच्छे विद्वान थे। शास्त्रों की स्वाध्याय करना ही इनका प्रमुख कार्य था इसी ज्ञान वृद्धि के कारण इन्होंने भद्रबाहुचरित्र एवं धर्मप्रश्नोत्तर श्रावकाचार की हिन्दी भाषा टीका क्रमश: संवत् १८४४ तथा १६ में समाप्त की थी। भाषा एवं शैली की दृष्टि से रचनाएँ साधारण हैं । १७. डीहल १६ वीं शताब्दी में होनेवाले जैन कवियों में छील का नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय है । ये राजस्थानी कवि थे किन्तु राजस्थान के किस प्रदेश को सुशोभित करते थे इसका अभी तक कोई उल्लेख नहीं मिला | हिन्दी भाषा के आप अच्छे विद्वान् थे । इनकी अभी तक ३ रचनायें तथा ३ पद उपलब्ध हुये हैं । रचनाओं के नाम बावनी, पंचसहेली गीत, पंथीगीत हैं। सभी रचनायें हिन्दी की उत्तम रचनाओं में से है जो काव्यत्य से भरपूर हैं । कवि की वर्णन करने की शैली उत्तम है। बावनी में आपने कितने ही विषयों का अच्छा वर्णन किया है। पंचसहेली को इन्होंने संवत् १५७५ में समाप्त किया था । १८. पं जगन्नाथ पं० अगनाथ १७ वीं शताब्दी के विद्वान् थे । ये भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे तथा संस्कृत भाषा के पहुंचे हुए विद्वान् थे। ये खन्डेलवाल जाति में उत्पन्न हुये थे तथा इनके पिता का नाम पोमराज था। इनकी ६ रचनायें श्वेताम्बरपराजय, चतुर्विंशतिसंधान स्वोपज्ञदीका, सुखनिधान, नेमिनरेन्द्रस्तोत्र,

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