Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 12
________________ चाद्वादमं. ॥१॥ तेभ्योऽहमार्यजनवारपवनेन तस्या गन्धं ननोमि निजयुञ्चनुरूपमत्र ॥ ३ ॥ __(ग्रन्यकर्नुमङ्गलाचरणम् ) यम्य ज्ञानमनन्नवस्तुविपन व प्रगत देखने नित्यं यस्य वचो न दुर्नयन: कोलाहाललपत। रागडेपमुबानियां परिपक्षिसा अगागन मा म श्रीवीरविपिनकलपांना वितां मम॥१॥ निरमीममनिमाविनपरी निपजामियां पुण्यांचेन मरस्वतीसुरगुरू न्याम्प दपत् । यः स्थायादममापगारिजवारष्टान्नतः मोडल मे - मद्ध्यम्युनिभिप्रयोगविष श्रीहेमचन्द्रः प्रभुः ॥ २॥ ये हेमचन्द्र मुनिमंतदुक्तग्रन्धारमेवामिनः श्रपन्ले । सम्प्राप्य ते गौरवमयलानां गई कलानामुनिनं भजन्ति ॥ ३ ॥ मातारति मनिहिदि मे पेनेगमासन्नुते. निर्मातुं विनि प्रमिन्दपनि जयादारम्भमम्भावना। यठा चिम्मनमोठयोः स्फरनि पन्मारमनः शाधना मश्रः श्रीउदयमभनिरनारन्यो ममानिशम् ॥ ४ ॥ भावार्थ-अनन्तपम्नुभियान पगिनाय ताल, नियालेनिता ॥२॥ बचन सोटे नयवालों अर्थात यमनारम्विनी गोमोना मिट) नींना यानिमीन मरान (1) मुनिमायोमिंपाीिम for

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