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प्रवचन-सारोद्धार
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की प्रतीति कराने का अक्षम्य अपराध नहीं करूँगी। आशीर्वाद सह उनका स्नेहिल सहयोग मुझे सदा मिलता रहे, यही शुभाकांक्षा है।
मेरी अन्तेवासिनी साध्वी श्रद्धांजना का प्रस्तुत कार्य में उल्लेखनीय सहयोग रहा है। इसकी प्रेसकॉपी इसी ने तैयार की है।
___ साध्वी अमितयशा बड़ी तन्मयता से प्रूफरीडिंग कर ग्रन्थ को यथाशक्य शुद्ध बनाने में उपयोगी बनी है।
साध्वी कल्पलता, साध्वी विनीतप्रज्ञा एवं साध्वी शुद्धांजना के विवेकपूर्ण, मूल्यवान सुझावों का ग्रन्थ को संवारने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
सदा प्रसन्नवदना साध्वी प्रियंवदा श्रीजी, तपस्विनी साध्वी श्री विनीतयशाश्रीजी का प्रेम कैसे भूला सकती हूँ। उनका जो प्रेम पाया है, उसे अभिव्यक्त कर सीमित नहीं करूँगी।
साध्वी योगांजना, साध्वी शीलांजना, साध्वी दीपमाला एवं साध्वी दीपशिखा की समयोचित निर्मल सेवायें कम स्पहणीय नहीं है। - इन सभी का निर्मल-निश्छल सहयोग मेरी स्मृति में ताजा खिले-मुस्कुराते पुष्पों की तरह सदा
महकता रहेगा
भमिका लेखन के लिये मानस-चक्षओं में तैर रहे. प्रज्ञाप्रोज्ज्वल भास्वर व्यक्तित्व के धनी जैनदर्शन के मर्धन्य विद्वान डॉ. सागरमलजी जैन की हृदय से कतज्ञ हैं। उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम में भी समय निकालकर जो लिखा है, वह उनके अप्रतिम पाण्डित्य का परिचायक तो है ही साथ ही मेरे प्रति उनके अगाध अपनत्त्व का भी परिचायक है।
शासनरत्न, प्राणीमित्र श्री कुमारपाल भाई वि. शाह की अभिनन्दनीय स्मृति का अंकन किये बिना मैं कैसे रह सकती हूँ, जो मेरे प्रश्नों एवं अनुवाद-संबंधी कठिनाइयों का समाधान उपलब्ध कराने के सबल माध्यम बने।
विद्वद्वरेण्य ग्रन्थकार एवं महनीय टीकाकार की अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। जिनके सृजन के बिना इस कार्य की प्रस्तुति ही संभव नहीं थी।
एक विशेष बात–तपागच्छीय प. पू. विद्वान मुनिराज श्री मुनिचन्द्र विजय जी म. सा. ने प्रवचनसारोद्धार के गुजराती अनुवाद भाग-२ में मेरे 'हिन्दी अनुवाद' का सादर उल्लेख कर अपनी उदारता एवं गुणानुराग का अद्भुत परिचय दिया है। एक अपरिचित साध्वी के प्रति उनकी इतनी सहदयता वस्तुत: इन क्षणों में मुझे गद्गद् कर रही है। मुनि श्री को स्मृति सह सादर वंदन है।
अन्त में, जिनके सहयोग से इस विशालकाय ग्रन्थ का प्रकाशन हो सका वे संस्थायें 'प्राकृत भारती अकादमी' तथा 'श्री जैन श्वे. नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ' अभिनन्दनीय हैं। दोनों संस्थाओं के सह-संयोग से आज तक अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। मैं इन संस्थाओं के चहुमुखी विकास की कामना करती हूँ। . इन संस्थाओं के प्रमुख श्री देवेन्द्रराज जी मेहता-सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, श्री
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