Book Title: Pravachana Saroddhar Part 1
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 485
________________ ४२२ द्वार १०१ १०. उपसम्पदा–ज्ञान, दर्शन और चारित्र के रक्षण व संवर्धन के लिये गुरु की आज्ञापूर्वक अपने गच्छ व कुल को छोड़कर अन्य गच्छ व कुल के आचार्य की निश्रा स्वीकृत करना, उपसम्पदा समाचारी ज्ञानविषयक उपसम्पदा के तीन भेद (i) वर्तना—पूर्व-पठित सूत्रादि का पुन: स्थिरीकरण करने के लिये। (ii) संधना-जहाँ-जहाँ से सूत्रार्थ विस्मृत हो चुका हो, वहाँ से उसे पुन: व्यवस्थित करने के लिये। (iii) ग्रहण-सूत्र और अर्थ पढ़ने के लिये। पूर्वोक्त तीनों भेद सूत्र, अर्थ और तदुभय विषयक होने से ज्ञान विषयक उपसम्पदा के ३४३ = ९ (नौ) भेद होते हैं। दर्शनविषयक उपसम्पदा के तीन प्रकार हैं(i) वर्तना—पूर्वपठित दर्शन प्रभावक सम्मति आदि ग्रन्थों का स्थिरीकरण करने के लिये। (ii) सन्धना-जहाँ-जहाँ से वे ग्रन्थ विस्मृत हो चुके हैं, वहाँ से उन्हें पुन: व्यवस्थित करने के लिये। (ii) ग्रहण नये ग्रन्थ पढ़ने के लिये। पूर्वोक्त तीन भेद मूल, अर्थ और उभय विषयक होने से दर्शनविषयक उपसम्पदा के ३४३ = ९ भेद होते हैं। चारित्रविषयक उपसम्पदा के दो भेद (i) वैयावृत्त्य विषयक-कर्म-निर्जरा के लिये अल्पकाल या यावज्जीवन पर्यन्त अन्य गच्छ के आचार्य की वैयावच्च करने हेतु उपसम्पदा ग्रहण करना। प्रश्न अन्य गच्छ के आचार्य की वैयावच्च अपने गच्छ में रहकर भी हो सकती है तो फिर उपसम्पदा क्यों स्वीकार करना चाहिये? उत्तर-अपने गच्छ में वैयावच्च में उपयोगी या निर्वाह योग्य सामग्री उपलब्ध न होने से अन्य गच्छ की सम्पदा स्वीकार की जाती है। (ii) क्षपण विषयक-अपने गच्छ में विशिष्ट तप करने की सुविधा न हो तो अन्य गच्छ के आचार्य से उपसम्पदा ग्रहण करे। यहाँ तपस्वी के दो भेद हैं (i) इत्वरिक अल्पकाल के लिये तप करने वाला। इसके भी दो भेद हैं(अ) विकृष्ट क्षपक-अट्ठम, दसम आदि की तपस्या करने वाला। (ब) अविकृष्ट क्षपक-छ? तप की तपस्या करने वाला। (ii) यावत्कथित-अन्तिम समय में अनशन करने की भावना वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504