Book Title: Pravachana Saroddhar Part 1
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 486
________________ प्रवचन-सारोद्धार ४२३ COOMICS.155250256 • अपने गच्छ में सेवा करने वाला कोई न हो, निर्वाहक कोई न हो, तो तपस्या के लिये अन्य गच्छ की उपसम्पदा ग्रहण करे। • जिस प्रकार चक्र घूमता है तो उसके आरे भी बार-बार घूमते रहते हैं, वैसे ही मुनि की दिनचर्या में पूर्वोक्त दशविध समाचारी बार-बार आचरण में आती है। अत: यह चक्रवाल समाचारी कहलाती है ।। ७६७ ॥ अन्य प्रकार से दशविध समाचारी १. प्रतिलेखना, २. प्रमार्जना, ३. भिक्षाचर्या, ४. ईर्यापथिकी, ५. आलोचना, ६. भोजन, ७. पात्रप्रक्षालन, ८. विचार, ९. स्थंडिल और १०. आवश्यक आदि अन्य प्रकार की दशविध समाचारी है। १. प्रतिलेखना-वस्त्र-पात्र इत्यादि का सुबह-शाम पडिलेहण करना । २. प्रमार्जना-वसति अर्थात् उपाश्रय की सुबह-शाम प्रमार्जना करना। ३. भिक्षाचर्या-मात्रा आदि शारीरिक शंकाओं का निवारण करके ‘आवस्सहि' बोलते हुए आहार ग्रहण हेतु उपाश्रय से निकले। अनासक्तभाव से एषणापूर्वक आहार ग्रहण करे । ४. ईर्यापथिकी-भिक्षा ग्रहण करके 'निस्सीहि' बोलते हुए उपाश्रय में प्रवेश करे। 'नमो खमासमणाणं' द्वारा वाचिक नमस्कार करके, दृष्टि व रजोहरण के द्वारा योग्य स्थान की प्रमार्जना करके 'इरियावहियं' प्रतिक्रमण करे । ५. आलोचना–भिक्षा हेतु उपाश्रय से निकलकर पुन: उपाश्रय में प्रवेश करे तब तक पुर:कर्म आदि जो भी अतिचार लगे हों उनका चिन्तन करने के लिये काउस्सग्ग करे । 'काउस्सग्ग' पूर्ण होने के पश्चात् लोगस्स बोलकर संयमभावनापूर्वक गुरु अथवा गुरु द्वारा निर्दिष्ट मुनि भगवन्त के सम्मुख, जिस प्रकार आहारादि ग्रहण किया हो उस प्रकार शास्त्रोक्त विधिपूर्वक उसकी आलोचना करे। तत्पश्चात् दुरालोचित आहार-पानी के निमित्त तथा एषणा-अनैषणा के निमित्त काउस्सग्ग करे । 'इच्छामि पडिक्कमिउं..गोयरचरियाए.तस्स मिच्छा मि दुक्कडं...तस्स उत्तरीकरणेणं....अन्नत्थ....अप्पाणं वोसिरामि' बोलकर काउस्सग्ग करे। काउस्सग्ग में एक नवकार तथा 'जइ में अणुग्गहं कुज्जा' गाथा का चिन्तन करे। गाथा का अर्थ-यदि मुनि लोग मेरे पर अनुग्रह (मेरे द्वारा लाई हुई भिक्षा में से कुछ ले) करें तो मैं संसार-समुद्र से पार हो जाऊँगा। ओघनियुक्ति में कहा है कि-दुरालोचित आहार पानी के निमित्त तथा एषणा-अनैषणा के निमित्त आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण काउस्सग्ग करे। 'जई मे अणुग्गहं कुज्जा' गाथा का चिन्तन करे। दशवैकालिक के अनुसार काउस्सग्ग में 'अहो जिणेहिं असावज्जा' गाथा का चिन्तन करे । काउस्सग्ग पूर्ण होने के पश्चात् प्रकट लोगस्स बोले। पश्चात् थकान आदि दूर करने के लिये मुहूर्त पर्यन्त स्वाध्याय करे। ६. भोजन-स्वाध्याय करने के बाद गृहस्थ रहित स्थान में, राग-द्वेष रहित होकर, नवकारमंत्र के स्मरणपूर्वक 'संदिशत पारयाम' बोलकर गुरु की अनुमति सह घाव पर मल्हम लगाते समय जो भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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