Book Title: Pravachana Saroddhar Part 1
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 500
________________ प्रवचन-सारोद्धार ४३७ (i) जातिजुङ्गित-अस्पृश्य जाति में उत्पन्न व्यक्ति दीक्षा के अयोग्य है। (ii) कर्मजुङ्गित—निन्दित कर्म करने वाले । जैसे—स्त्री, मोर, मुर्गा, तोता आदि को पालने वाले, नट-कर्म करने वाले, नाई, कसाई, धोबी, मत्स्य-पालक आदि दीक्षा के अयोग्य हैं। (iii) शरीर-जुङ्गित-लूले, लंगड़े, बहरे, काणे, कूबड़े, वामन आदि शरीर से अपंग व्यक्ति दीक्षा के अयोग्य हैं। दोष-लोक-निन्दा। १५. अवबद्धक-धन या विद्या के निमित्त से जो किसी से बँधा हुआ हो, ऐसा व्यक्ति दीक्षा के अयोग्य है। दोष-दीक्षा देने के बाद सम्भव है कभी उसका मालिक साधु से कलह करे। उसे वापस घर ले जावे। १६. भृत्य- वेतन लेकर किसी धनिक के घर का काम करने वाला भृत्य भी दीक्षा के अयोग्य Tc दोष- ऐसे व्यक्ति को दीक्षा देने से साधु, मालिक की अप्रीति का भाजन बनता है। १७. ऋणात-कर्जदार दीक्षा के अयोग्य है। दोष-कर्जदाता, राजा आदि उसे वापस ले जा सकते हैं, उसकी तथा दीक्षादाता की ताड़ना, तर्जना कर सकते हैं। १८. शैक्षनिस्फेटिका-माता-पिता की आज्ञा के बिना अपहरण करके किसी को दीक्षा नहीं देनी चाहिये। दोष-माता-पिता पुत्रादि के वियोग में आर्त्त-ध्यान द्वारा कर्म-बंधन करे । साधु को 'अदत्त' ग्रहण करने का पाप लगे ॥ ७९०-७९१ ॥ १०८ द्वार: दीक्षा-अयोग्य नारी जे अट्ठारस भेया पुरिसस्स तहित्थियाए ते चेव। गुन्विणी सबालवच्छा दुन्नि इमे हुंति अन्नेवि ॥७९२ ॥ -गाथार्थदीक्षा के अयोग्य स्त्रियाँ—जो अट्ठारह भेद दीक्षा के अयोग्य पुरुषों के हैं वे स्त्रियों के भी समझना चाहिये। उनमें गर्भिणी और बालवत्सा ये दो भेद और मिलाने से दीक्षा के अयोग्य स्त्रियों के कुल बीस भेद होते हैं ।।७९२ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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