Book Title: Pravachana Saroddhar Part 1
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 488
________________ न-सारोद्धार ४२५ निर्ग्रन्थता एक जीव को ५ बार प्राप्त होती है, क्योंकि क्षपक और उपशामक ही निर्ग्रन्थ होते हैं ॥ ७६९ ॥ प्रवचन १०३ द्वार : गीयत्थो य विहारो बीओ गीयत्थमीसओ भणिओ । एतो तइयविहारो नाणुन्नाओ जिणवरेहिं ॥७७० ॥ दव्वओ चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं तु खेत्तओ । कालओ जाव रीएज्जा, उवउत्तो य भावओ ॥७७१ ॥ -गाथार्थ विहार स्वरूप - विहार दो प्रकार का है- १. गीतार्थ का विहार और २. गीतार्थ मिश्र विहार । इससे अन्य विहार जिनेश्वरों द्वारा निषिद्ध है ।।७७० ॥ द्रव्यतः चक्षु द्वारा देखकर चलना । क्षेत्रतः युगमात्र भूमि देखकर चलना । कालतः जब तक चले और भावतः सम्यक् उपयोगपूर्वक चलना । ऐसे चार प्रकार का विहार है ॥७७१ ॥ -विवेचन विहार ↓ गीतार्थविहार (बहुश्रुत का विहार) गीतार्थमिश्रविहार (बहुश्रुत के साथ या उनकी निश्रा में रहकर विहार करना) गीतार्थमिश्र के स्थान पर 'गीतार्थनिश्रित विहार' ऐसा भी पाठान्तर है । उसका अर्थ है गीतार्थ के आश्रय में रहकर विहार करना । विहार-स्वरूप गीतार्थ विहार = उनका विचरण । = कृत्य - अकृत्य के ज्ञाता, बहुश्रुत मुनि पूर्वोक्त दोनों प्रकार का विहार द्रव्यादि के भेद से चार प्रकार का है (i) द्रव्यत: दृष्टि से देखकर चलना । (ii) क्षेत्रतः - चार हाथ प्रमाण भूमि को देखकर चलना । अत्यन्त समीप में देखकर चलने से जीवरक्षा नहीं हो सकती तो चार हाथ से अधिक दूर तक देखकर चलने से भी जीव रक्षा नहीं होती Jain Education International' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504