Book Title: Pravachana Saroddhar Part 1
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 463
________________ द्वार ९३ ४०० (iii) संवृत बकुश-छुपकर दोष सेवन करने वाला। (iv) असंवृत बकुश-लोकों से ज्ञात दोष वाला अथवा मूलगुण से संबद्ध दोषों से युक्त संवृत बकुशं है तथा उत्तरगुणाश्रित दोषों से युक्त असंवृत बकुश है। (v) सूक्ष्म बकुश-अल्प प्रमादी, नाक, आँख आदि की सफाई करने वाला। दोनों प्रकार के बकुश सामान्यत: ऋद्धि और यश की कामना वाले, शातागौरवयुक्त अविविक्त परिवार वाले तथा छेद योग्य सबल चारित्र वाले होते हैं। ऋद्धि-प्रचुर मात्रा से वस्त्र पात्र का संग्रह करने वाले। यश-ये साधु गुणवान हैं विशिष्ट प्रकार के हैं इत्यादि ख्याति के इच्छुक । अविविक्त परिवार = असंयमी शिष्य परिवार वाले अर्थात् समुद्र के फेन आदि से रगड़कर पिण्डी आदि का मैल उतारने वाले, तैलादि से शरीर की मालिश करने वाले, कतरनी आदि से बालों को काटकर सँवारने वाले ऐसे-शिष्य परिवार से युक्त, छेद प्रायश्चित्त के योग्य दूषित चारित्र वाले होते हैं। साता = सुख। गौरव = आदर वाले अर्थात् सुखालिप्सु-रात दिन करने योग्य अनुष्ठानों के प्रति प्रमादी। बकुश के लिये दो प्रकार के प्रायश्चित्त का विधान है१. देशछेद प्रायश्चित्त और २. सर्वछेद प्रायश्चित्त । १. देशछेद प्रायश्चित्त-दोषों के अनुपात में दीक्षा-पर्याय को कम करना । २. सर्वछेद प्रायश्चित्त-सम्पूर्ण दीक्षा-पर्याय का छेद करके पुन: दीक्षा देना ॥ ७२४ । ३. कुशील-मूलोत्तरगुण की विराधना करने वाला एवं संज्वलन कषाय के उदय से कुत्सित चारित्र वाला। इसके दो भेद हैं—१. प्रतिसेवना कुशील और २. कषाय-कुशील। (i) प्रतिसेवना कुशील-संयम की विपरीत भाव से आराधना करने वाला। यह पाँच प्रकार का है १. ज्ञान कुशील, २. दर्शन कुशील, ३. चारित्र कुशील, ४. तप कुशील और ५. यथासूक्ष्म कुशील। १-४. ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना से लोकों में प्रशंसा आदि प्राप्त करने वाला। ५. यथासूक्ष्म—'यह महान् तपस्वी है' ऐसी प्रशंसा सुनकर सन्तुष्ट होने वाला। अन्यमते-तप कुशील के स्थान पर लिंग कुशील ऐसा पाठ है। अर्थात् जो मात्र वेषधारी है। (ii) कषाय कुशील-यह भी पूर्ववत् पाँच प्रकार का है। १-२. ज्ञान, दर्शन-कुशील-संज्वलन कषाय के उदय से अपने ज्ञान और दर्शन को दूषित करने वाला। ३. चारित्र कुशील-कषायवश शाप देने वाला। ४. तप-कुशील-संज्वलन कषाय के उदय से तप को दूषित करने वाला। ५. यथासूक्ष्म-मन से क्रोधादि करने वाला अथवा संज्वलन कषायवश ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप की विराधना करने वाले अर्थात् ज्ञानादि को अतिचारों से मलिन करने वाले ज्ञानादि कषायुक्त कुशील हैं ॥ ७२५ ॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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