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३२
• लोगस्स
• पुक्खरवरदीवड्ढे • सिद्धाणं
१. नवकार की सम्पदाः ८
नवकार में प्रथम ५ पद की पाँच सम्पदा,
+ एसो पंच... १ सम्पदा
+ सव्वपावप्प .... १ सम्पदा
+ मंगलाणं च सव्वेसि पढ़मं हवइ मंगललं... १ सम्पदा
कुल
मतन्तिर
==
=
२८ सम्पदा १६ सम्पदा
२० सम्पदा
५+१+१+१= ८ सम्पदा
१ प्रथम पाँच पद की
२ एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, दो पद की
१३ मंगलाणं च सव्वेसिं
= १ सम्पदा
४ पढ़मं हवइ मंगलं = १ सम्पदा
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।। ७८ ।।
अन्य मतानुसार नमस्कार मन्त्र की अन्तिम चूलिका की तीन सम्पदा इस प्रकार है । वे क्रमशः १६, ८ और ९ अक्षरों की हैं। भक्तिपूर्वक जो इसका स्मरण करते हैं, वे अवश्य ही शाश्वत - मुक्ति पद का वरण करते हैं ।
= १ सम्पदा
कुल
८ सम्पदा
प्रश्न — 'नमस्कार' में 'हवइ' की जगह 'होइ' क्यों नहीं कहा? कारण 'होइ' कहने में न तो कोई अर्थ भेद होता है, न श्लोक में एक अक्षर अधिक ही होता है अतः 'होइ' कहना चाहिये ।
द्वार १
उत्तर—यद्यपि आपका कथन सत्य है, तथापि 'हवइ' यही पाठ ठीक है । क्योंकि 'नमस्कारवलयादि' ग्रंथों में सर्वमन्त्र और रत्नों का खजाना, चिन्तित अर्थ को देने में कल्पवृक्ष, विषधर के विष और डाकिनी आदि की बाधा को शान्त करने वाला, जगत् को वश करने का अचूक उपाय, १४ पूर्वों का सार ऐसे पञ्च परमेष्ठि की व्याख्या में 'हवइ' ऐसा ही पाठ कहा है, क्योंकि तथाविध कार्य-सिद्धि आदि के लिये की गई 'नमस्कार' की आराधना में ३२ दल वाले कमल की रचना की जाती है और एक-एक कमल की पडुड़ी पर एक-एक अक्षर की स्थापना की जाती है। यदि 'होइ' ऐसा पाठ हो तो ३२ अक्षर होने से कमल की पडुड़ियों पर ही वे पूर्ण हो जायेंगे और कमल नाभि का भाग अक्षर शून्य रह जायेगा । मंत्र साधना में ऐसी रिक्तता लाभप्रद नहीं होती। कहा है कि यदि यन्त्रादि में एक अक्षर या मात्रा भी न्यूनाधिक हो जाय तो इच्छित फल की प्राप्ति नहीं हो सकती । अतः 'हवइ' यह पाठ ही ठीक है। ताकि ३३ अक्षर की ३ चूलिका का एक-एक अक्षर ३२ पडुड़ियों पर स्थापित हो जायेगा और एक नाभि प्रदेश में । इसी भाव की सूचक पूर्वाचार्यों की गाथा भी है । 'परमात्मा जिनेश्वर देव के शासन में ६८
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