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द्वार ६७
दान हेतु अलग से रखना विभागतः औद्देशिक है— इसके तीन भेद हैं
(i) उद्दिष्ट, (ii) कृत और (iii) कर्म ।
(i) उद्दिष्ट - अपने लिये बनाये हुए भोजन में से दान के लिये कुछ हिस्सा अलग निकाल कर रखना ।
(ii) कृत — बचे हुए भोजन को दान हेतु संस्कारित करना, जैसे चावल का करबा आदि बनाना ।
(iii) कर्म - विवाह आदि में बचे हुए लड्डू आदि के चूर्ण को देने हेतु चासनी डालकर पुनः लड्डू बनाना ।
उद्दिष्ट, कृत और कर्म इन तीनों के चार-चार भेद हैं
(i) उद्देश
(ii) समुद्देश
(iii) आदेश
(iv) समादेश
इस प्रकार उद्दिष्ट आदि तीन और उद्देश, समुद्देश आदि चार ३ x ४ = १२ भेद विभागतः औशिक के हैं ।
(i) उद्देश, (ii) समुद्देश, (iii) आदेश और (iv) समादेश । जितने भी भिखारी, पाखण्डी या गृहस्थ आयेंगे, सभी को भिक्षा दी जायेगी, इस प्रकार का संकल्प करना, वह उद्देश । यह भिक्षा पाखण्डियों (व्रतियों) को दी जायेगी, ऐसा संकल्प करना, समुद्देश है ।
यह भिक्षा श्रमणों (बौद्धादिकों) को दी जायेगी, ऐसा संकल्प करना, आदेश है ।
यह भिक्षा निर्ग्रन्थ (मुनियों) को दी जायेगी, ऐसा संकल्प करना, समादेश है।
प्रश्न- आधा - कर्म और कर्म औद्देशिक इन दोनों में क्या अन्तर है ?
उत्तर—जो पहले से ही साधु के लिए बनाया हो, वह आधाकर्म है, किन्तु पहले बनाया तो अपने लिये हो पर बाद उसी में से साधु के लिये बढ़ाना या उसे ही विशेष रूप से संस्कारित करना कर्म औद्देशिक हैं । I ३. पूतिकर्म
निर्दोष आहार पानी के साथ सदोष आहार- पानी का संमिश्रण पूतिकर्म है । जैसे, अशुचि पदार्थ का एक कण भी पवित्र भोजन को अपवित्र एवं अग्राह्य बना देता है वैसे, सदोष आहार का लेश- मात्र भी भोजन को अपवित्र व अग्राह्य बना देता है। पूतिदोष से दूषित आहार- पानी का उपयोग करने वाले मुनि का चारित्र दूषित बनता है । यहाँ तक कि आधा कर्म आदि दोषों
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