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प्रवचन-सारोद्धार ।
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५. श्रेणिचारण - चार सौ योजन ऊँचे निषध व नील पर्वत के कटे हुए किनारों
का अवलंबन करके गमन करने वाले । ६. अग्निशिखाचारण ___ - अग्निशिखा का अवलंबन करके जीवों की विराधना न करते
हुए गमन करने वाले । लब्धि-संपन्न होने से आग का अवलंबन
करने पर भी वे जलते नहीं हैं। ७. धूम्रशिखाचारण - धूम्र की शिखा का अवलंबन करके चलने वाले। ८. मरकटतंतुचारण - झुके हुए वृक्षों के मध्यवर्ती छिद्रों में जाले के रूप में लगे हुए
मरकट तंतओं का अवलंबन करने वाले। लब्धि के प्रभाव से
जीवों की विराधना भी नहीं होती और तंतु भी नहीं टूटते । ९. ज्योतिरश्मि चारण - सूर्य-चन्द्र-ग्रह और नक्षत्र की किरणों व प्रकाश का अवलंबन
करके गमन करने वाले। १०. वायुचारण - अनुलोम या प्रतिलोम चलने वाली वायु के प्रदेशों का अवलंबन
कर गमन करने वाले। ११. नीहारचारण - तुषार-कणों का अवलंबन कर अप्काय जीवों की विराधना न
करते हुए गमन करने वाले। इनके अतिरिक्त बादल, फल आदि का अवलंबन कर गमन करने वाले भी चारण होते हैं। ५९७-६०१ ॥
६९ द्वारः |
परिहारविशुद्धि
परिहारियाण उ तवो जहन्न मज्झो तहेव उक्कोसो। सीउण्हवासकाले भणिओ धीरेहिं पत्तेयं ॥६०२ ॥ तत्थ जहन्नो गिम्हे चउत्थ छठें तु होई मज्झिमओ। अट्ठममिहमुक्कोसो एत्तो सिसिरे पवक्खामि ॥६०३ ॥ सिसिरे तु जहन्न तवो छट्ठाई दसमचरमगो होइ। वासासु अट्ठमाई बारसपज्जंतगो नेओ ॥६०४॥ पारणगे आयामं पंचसु गहो दोसुऽभिग्गहो भिक्खे। कप्पट्ठियावि पइदिण करेंति एमेव आयामं ॥६०५ ॥ एवं छम्मासतवं चरिउं परिहारिया अणुचरंति ।
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