Book Title: Pravachana Saroddhar Part 1
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 452
________________ प्रवचन-सारोद्धार ३८९ 50500000000000002 8888888889680345853.32 लिखना। इस प्रकार आगे-आगे करते जाना। इससे जितने संयोगी भांगे बनाने हैं, उनकी संख्या आ जाती है। संयोगी १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० भांगा १ १० ४५ १२० २१० २५२ २१० १२० ४५ १० यहाँ नीचे की पंक्ति के १ अंक को ऊपर के १० के साथ गुणा करके नीचे रखना। फिर २ से १० में भाग देकर जो भागफल आया उसे २ के ऊपर के अंक ९ से गुणाकर गुणनफल ४५ को उसके नीचे रखना। इस प्रकार नीचे की संख्या से पूर्व के गुणनफल को भाग देना और भागफल से ऊपर की संख्या का गुणा करना। इस तरह किसी भी संख्या के संयोगी भांगे बनाये जा सकते हैं। यहाँ पर १ संयोगी = - शुद्र अशुद्ध-स्थंडिल २ संयोगी = ४५ भांगा-१०२३ ३ संयोगी = १२० ४ संयोगी = २१० ५ संयोगी - ६ संयोगी = ७ संयोगी = ८ संयोगी = ९ संयोगी = १० -शुई शुद्ध स्थंडिल १० संयोगी = १ - 25 भांगा-१ १०२४ कल भांगे होते हैं। ॥७०९-७१०॥ 0 २५२ 0 0 आपात युक्त स्वपक्ष परपक्ष साध्वी सविज्ञ असंविज्ञ मनोज्ञ अमनोज्ञ संविज्ञ पाक्षिक असंविज्ञ पाक्षिक १ ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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