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द्वार ६७
अपवाद
स्थविर कल्पी आठ मास तक गर्भिणी के हाथ से भिक्षा ले सकते हैं। नौवें मास में यदि बैठे-बैठे ही भिक्षा दे तो लेना
कल्पता है, अन्यथा नहीं। २६.बालवत्सा --- बालक को भूमि, खटिया आदि पर सुलाकर भिक्षा दे तो मुनि
ग्रहण नहीं करे। दोष
- बहुत छोटा होने से बच्चे को मांसपिण्ड अथवा खरगोश आदि
का बच्चा समझकर बिल्ली या अन्य पशु उसकी हिंसा करे, भिक्षा देने के बाद सूखने के कारण कर्कश बने हाथों से बालक को स्पर्श करे तो उसे पीड़ा हो, भिक्षा देने के बाद हाथ धोये तो हिंसा। जिनकल्पी के लिए बालवत्सा के हाथ की भिक्षा सर्वथा अग्राह्य है। यदि बालक खाद्यपदार्थ से सन्तुष्ट हो जाये, नीचे बिठाने पर न रोये, शरीर से पुष्ट होने के कारण जिसे बिल्ली आदि से कोई भय न हो, ऐसी बालवत्सा दात्री के हाथ से स्थविरकल्पी मुनि
को भिक्षा लेना कल्पता है। २७. छःकाय संघट्टती - सचित्त नमक, जल, अग्नि, वायु भरी थैली, फल, मछली आदि
जिसके हाथ में हो, तिल-जौ, दूर्वा, पत्र-पुष्पादि जिसके मस्तक पर धारण किये हों, पुष्पमाला गले में हो, कानों में फूलों के आभरण हों, कमर में तांबूल आदि के पत्तों का श्रृंगार हो, पाँव में जलकण लगे हों, ऐसी दात्री के हाथ की भिक्षा मुनि को लेना
नहीं कल्पता।
- संघट्टा दोष लगता है। अपवाद २८. छ: काय का वध करती- भूमि आदि का खनन करना, स्नान वस्त्रप्रक्षालन, वृक्षादि का
सिंचन करना, अंगारे आदि का स्पर्श करना, चूल्हा फूंकना, वायु भरी थैली को इधर-उधर फेंकना, फलादि काटना, खाट आदि से मांकइ नीचे गिराना इत्यादि कार्यों के द्वारा छ:काय जीवों की .
विराधना करती हुई, दात्री के हाथ से मुनि भिक्षा नहीं लें। दोष
- संघट्टा, हिंसा अपवाद
- नहीं है। २९. संभावित भय - भय तीन प्रकार का है। ऊपर से, नीचे से और तिर्यक् दिशा
दोष
- नहीं है।
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