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प्रवचन - सारोद्धार
दुविहो तिविहो चउहा पंचविहोऽविहु सपायनिज्जोगो । जायइ नवा दसहा एक्कारसहा दुवालसहा ॥४९६ ॥ अहवा दुगं च नवगं उवगरणे हुंति दुन्नि उ विगप्पा | पाउरणवज्जियाणं विसुद्धं जिणकप्पियाणं तु ॥ ४९७ ॥ तवेण सुत्तेण सत्तेण एगत्तेण बलेण य ।
तुलणा पंचहा वुत्ता, जिणकप्पं पडिवज्जओ ॥४९८ ॥ -गाथार्थ
जिनकल्पियों के उपकरण की संख्या - पात्र, पात्रबंध, गुच्छे, पूँजणी, पड़ले, रजस्त्राण एवं पात्रस्थापन - ये सात प्रकार की पात्र सम्बन्धी उपधि है । ३ वस्त्र, रजोहरण एवं मुहपत्ति मिलाने से कुल १२ प्रकार की जिनकल्पियों की उपधि होती है ।। ४९१-४९२ ।।
जिनकल्पी के दो भेद हैं—(१) करपात्री एवं (२) पात्रधारी । दोनों के पुनः दो-दो भेद हैं(१) वस्त्रधारी और (२) वस्त्ररहित ॥४९३ ॥
जिनकल्पियों के उपधि के २, ३, ४, ५, ९, १०, ११ और १२ ये आठ विकल्प होते हैं । ४९४ ।।
मुहपत्ति और रजोहरण २ उपधि । एक वस्त्रयुक्त करने पर = ३ उपकरण हुए। दो कल्पयुक्त करने पर = ४ उपकरण हुए। ३ कल्पयुक्त करने पर = ५ उपकरण हुए । २, ३, ४, और ५ प्रकार की उपधि को सप्तविध पात्र सम्बन्धी उपकरणों के साथ जोड़ने पर जिनकल्पी के क्रमशः ९, १०, ११ और १२ उपकरण होते हैं ।। ४९५-४९६ ।।
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वस्त्ररहित विशुद्ध जिनकल्पियों की अपेक्षा से उपकरण के दो (मुहपत्ति और रजोहरण) या नौ (मुहपत्ति, रजोहरण तथा सप्तविध पात्रनिर्योग) भेद होते हैं ।। ४९७ ।।
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जिनकल्प को स्वीकार करनेवाला आत्मा प्रथम तप, सूत्र ( योग्य ज्ञानाभ्यास) सत्त्व, एकत्त्व और बल–इन पाँच कसौटियों पर स्वयं को कसे पश्चात् जिनकल्प को स्वीकार करे ।। ४९८ ॥
-विवेचन
उपकरण = साधु के संयम में उपकारी वस्त्र पात्रादि उपधि । इसके दो भेद हैं(i) ओघ उपधि नित्य उपयोग में आने वाले उपकरण ।
(ii) औपग्रहिक उपधि
नित्य उपयोगी न होते हुए भी समय पर संयम साधना में सहायक बनने वाले उपकरण ।
औधिक उपधि प्रमाण की दृष्टि से दो तरह की है—
२. प्रमाण- प्रमाण
( लम्बाई चौड़ाई की अपेक्षा से)
१. गणना प्रमाण
( संख्या की अपेक्षा से)
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