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मन की बात
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उतनी अधिक अन्तराय उपस्थित करने में तुली हुई थी। Matter प्रेस में चला गया। कुछ Matter Print होकर संशोधन हेतु मेरे पास पहुँच भी गया था। शेष Matter प्रेस वाले के पास ही था। प्रेस में आग लग गई। संशोधन हेतु समागत प्रूफ को छोड़कर शेष सम्पूर्ण Matter स्वाहा हो गया। एक बार तो सुनकर झटका लगा और लगना स्वाभाविक भी था। किन-किन व्यस्तताओं और कठिनाइयों के बीच मंद गति से चलती हुई लेखन-यात्रा को मुश्किल से मंजिल मिली थी। उसकी खुशी पूर्णतया अभिव्यक्त भी नहीं कर पाई थी कि इतना बड़ा हादसा घटित हो गया। आहत मन को जैसे-तैसे स्वस्थ किया। साहस जुटाकर थके हाथों को कलम थामने हेतु पुन: सक्रिय किये। अनेक उत्तरदायित्वों के बीच तीव्र गति से चलना मुश्किल था। धीमी गति से आगे बढ़ती हुई यह यात्रा आखिर पूना दादाबाड़ी में 'कुशल गुरुदेव' के सान्निध्य में हर्ष-विषाद के मिश्रित भावों के साथ संपूर्ण हुई। प्रस्तुत अनुवाद
मेरा अनुवाद कैसा है? यह सुज्ञ पाठक ही समझेंगे। हाँ, मैंने अपनी ओर से इसे मूल के आसपास ही रखने की कोशिश की है। कठिन स्थलों को सरल, सुबोध एवं स्पष्ट करने के लिए यत्र-तत्र उचित कल्पनाओं का सहारा भी लिया है। यदा-कदा प्रश्नोत्तर शैली भी अपनाई है। जहाँ आवश्यक लगा वहाँ विषय का वर्गीकरण भी किया है और संक्षिप्तीकरण भी। कई विषयों के विवेचना के साथ चित्र भी दिये हैं जिससे पाठक को विषय का सही ज्ञान हो जाये। भूगोल संबंधी विषयों को चित्र देकर समझाया है ताकि पाठक तत्संबंधी स्थान, आकार-प्रकार एवं स्थिति का सही बोध कर सके। गुणस्थान, लेश्या, कर्मस्वरूप, विग्रहगति आदि के भी यथाशक्य चित्र दिये हैं जो आत्मा की ऊंच-नीच दशाओं का यथार्थ परिचय कराते हैं। स्थान-स्थान पर टेबल देकर विषय को एक ही झलक में ग्राह्य बनाने का प्रयास किया है। फिर भी अनुवाद आखिर अनुवाद ही तो है। मैंने जो कुछ किया है उस पर गर्व तो नहीं किंतु सात्त्विक सन्तोष अवश्य है। आगमिक ग्रन्थ के अनुवाद का यह मेरा प्रथम प्रयास है। अनुपयोग एवं अज्ञानतावश इसमें त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक हैं। ग्रन्थकार एवं टीकाकार की भावनाओं के विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो मैं करबद्ध क्षमा-प्रार्थना करती हूँ- 'मिच्छामि दुक्कडं'।
प्रस्तुत प्रकाशन के क्षणों में पू. गुरुवर्याश्री की पावन-स्मृति मेरी आत्मतृप्ति का अलौकिक अमृत है। जिनकी भाववत्सलता से मेरे जीवन का कण-कण आप्लावित एवं सक्रिय है। वे मेरी चेतना हैं...वे मेरी प्रेरणा हैं, शिक्षा एवं दीक्षा दाता हैं। वे मेरी सांसों का संगीत एवं प्राणों का मंगलगीत हैं। जिनका शिष्यत्व मेरे लिये गौरव का विषय है। मैं उनसे जुड़कर धन्य हूँ। उनसे जो पाया वह उनका ही रहने दूंगी। बस, उनका मंगलमय आशीर्वाद मेरे जीवनपथ को सदा आलोकित करता रहे इन्हीं आकांक्षाओं के साथ आराध्यचरणों में अनन्तश: वन्दन समर्पित है।
प. पू. विदुषीवर्या, गुरुभगिनी विनोदश्री म.सा. (संसारी बड़ी बहिन), कृपामूर्ति प. पू. प्रियदर्शना श्रीजी म. सा., आदर्शसंयमी सेवामूर्ति विनयप्रभाश्रीजी का लेखन-काल में जो अनमोल सहयोग मिला वह मेरे प्रति उनके अनन्य प्रेम का साक्षी है। वे मेरे अपने हैं। उनके प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन कर परायेपन
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