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२३८. मुनि गुण २३९. श्रावक गुण २४०. गर्भस्थिति तिर्यंची की २४१. गर्भस्थिति मानवी की २४२. गर्भ की काय स्थिति २४३. गर्भस्थ का आहार २४४. गर्भोत्पत्ति
२४५. कितने पुत्र २४६. कितने पिता
२४७. स्त्री-पुरुष का अबीजत्व काल
२४८. शुक्रादि का परिमाण
२४९. सम्यक्त्व का अन्तरकाल
२५०. मानव के अयोग्य जीव २५१. पूर्वांग का परिमाण २५२. पूर्व का परिमाण
२५३. लवणशिखा का परिमाण २५४. अंगुल-प्रमाण
२५५. तमस्काय
२५६. अनंत-षट्क
२५७. अष्टांगनिमित्त २५८. मानोन्मानप्रमाण
२५९. भक्ष्य-भोजन
२६०. षड्गुण-हानि - वृद्धि २६१. असंहरणीय
२६२. अन्तद्वप
२६३. जीवाजीव का अल्पबहुत्व २६४. युगप्रधान संख्या
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मुनि के सत्तावीस गुण । श्रावक के इक्कीस गुण । तिर्यंच स्त्री की उत्कृष्ट गर्भस्थिति ।
मनुष्य स्त्री की उत्कृष्ट गर्भस्थिति । गर्भ की स्वकाय स्थिति ।
गर्भस्थित जीव का आहार ।
स्त्री सम्बन्धी रज व पुरुष सम्बन्धी वीर्य के संयोग में कितने समय बाद गर्भोत्पत्ति होती है 1
द्वार नामावली
एक साथ गर्भ में कितने पुत्र हो सकते हैं ?
एक पुत्र के कितने पिता हो सकते हैं ?
कितने वर्ष के बाद स्त्री गर्भधारण के अयोग्य बनती है तथा कितनी उम हो जाने के बाद पुरुष निवीर्य बन जाता है ? शरीरस्थित शुक्र, रज, आज, रीढ़ की हड्डियाँ तथा पसलियों का परिमाण |
प्राप्त सम्यक्त्व, चारित्र अदि उत्तमगुणों का नाश हो जाने के बाद वे पुन: कितने समय में उपलब्ध हो सकते हैं ? यह बताना । कौन-कौन जीव मरकर मनुष्य नहीं बनते ।
पूर्वाग संख्या का स्वरूप । पूर्व का परिमाण ।
लवण - समुद्र की शिखा का परिमाण ।
उत्सेधांगुल, आत्मांगुल व प्रमाणांगुल का प्रमाण ।
तमस्काय का स्वरूप ।
छः अनन्त वस्तुयें ।
निमित्त के आठ अंग ।
मान, उन्मान व प्रमाण का स्वरूप ।
अठारह प्रकार के भक्ष्य - गुडधानादि तथा भोज्य - ओदनादि । वस्तु की षड्गुण हानि - वृद्धि का स्वरूप ।
देवादि भी जिनका अपहरण नहीं कर सकते ऐसे जीव । अन्तरद्वीपों का वर्णन ।
जीव- अजीव का अल्पबहुत्व ।
भगवान महावीर के शासन में होने वाले युगप्रधान - आचार्यों की
संख्या ।
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