Book Title: Praudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 21
________________ 3. तृतीयस्य मि: 3/141 4. 14 तृतीयस्य (तृतीय) 6/1 मि: (मि) 1/1 तृतीय (पुरुष के प्रत्यय) के स्थान पर मि (होता है) । वर्तमान काल में तीन पुरुषों में से तृतीय पुरुष (उत्तम पुरुष) के एकवचन के प्रत्यय (मि, इ) के स्थान पर मि होता है। [(मि, इ) मि] (हस + मि) • हसमि (वर्तमान काल, तृतीय पुरुष (उत्तम पुरुष) एकवचन) (ठा + मि) = ठामि ( हो + मि) = होमि नोट: हेमचन्द्र की वृत्ति के अनुसार कहीं-कहीं अकारान्त क्रिया से परे 'मि' में स्थित 'इ' का लोप हो जाता है और म का अनुस्वार हो जाता है(हस + मि) = हसं (वर्तमानकाल, उत्तमपुरुष, एकवचन) बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे 3/142 बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे (बहुषु) + (आद्यस्य ) ] न्ति न्ते इरे बहुषु (बहु) 7/3 आद्यस्य (आद्य) 6 / 1 न्ति (न्ति) 1/1 न्ते (न्ते) 1/1 इरे (इरे) 1/1 प्रथम (अन्य ) पुरुष के बहुवचन में न्ति, न्ते इरे (होते हैं) । वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष) के बहुवचन में (अन्ति, अन्ते के स्थान पर), न्ति, न्ते और इरे होते हैं । [ (अन्ति, अन्ते) न्ति, न्ते, इरे] (हस +न्ति, न्ते, इरे) = हसन्ति, हसन्ते, हसिरे (वर्तमानकाल, प्रथम पुरुष ( अन्य पुरुष ). बहुवचन) (ठा + न्ति, न्ते, इरे) = ठान्ति → ठन्ति ठान्ते → ठन्ते, ठाइरे (संयुक्ताक्षर से पूर्व दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है, सूत्र - 1/84 ) । Jain Education International प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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