Book Title: Praudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
(हस+स+इ, ए) = हसिसइ, हसेसइ, हसिसए, हसेसए .
(भविष्यत्काल, अन्य पुरुष, एकवचन) (हस + स + हिं) = हसिसहिं, हसेसहिं (भविष्यत्काल, अन्यपुरुष
बहुवचन) (हस + स + हि) = . हसिसहि, हसेसहि (भविष्यत्काल, मध्यमपुरुष
एकवचन) (हस + स + हु) = हसिसहु, हसेसहु (भविष्यत्काल, मध्यमपुरुष,
बहुवचन) (हस + स + उं) = हसिसउं, हसेस (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष
एकवचन) (हस + स + हुं) = हसिसहुं, हसेसहुँ (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष,
बहुवचन) वैकल्पिक पक्ष- हसिहिइ, हसिहिए, हसेहिइ, हसेहिए. (भवि.अ. पु. एक)
हसिहिन्ति, हसिहिन्ते, हसिहिइरे हसेहिन्ति, हसे हिन्ते, हसेहिइरे (भवि. अ. पु. बहु.) हसिहिसि, हसिहिसे, हसे हिसि, हसेहिसे (भवि. म.पु एक.) हसिहिह, हसिहित्था, हसे हिह, हसे हित्था (भवि. म.पु.बहु.) हसिहिमि, हसेहिमि (भवि. उ. पु. एक.) हसिहिमो, हसिहिमु, हसिहिम, हसे हिमो, हसे हिमु, हसे हिम (भवि. उ.पु.बहु.)
(सूत्र-3/157) 54. तव्यस्य इएव्वउं एव्वउं एवा 4/438
तव्यस्य (तव्य)6/1 इएव्वउं (इएव्वउं)1/1 एव्वउं (एव्वउं)1/1 एवा (एवा)1/1 तव्य के स्थान पर इएव्वउं, एव्वउं और एवा होते हैं।
44
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96