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प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश-रचना सौरभ
(भाग-2)
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
माणुज्जीवी जोवो जैन विद्या संस्थान श्री महावीर जी.
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
राजस्थान
For Private Personal use only
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प्रौढ प्राकृत अपभ्रंश-रचना सौरभ
(भाग-2)
डॉ. कमलचन्द सोगाणी (सेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर)
M
.
जानुज्जीयो जोवो जैन विद्या संस्थान mश्री महावीर जी.
प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी
_जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
राजस्थान
जनाव
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- प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी श्री महावीरजी-322220 (राजस्थान)
- प्राप्ति-स्थान 1. जैनविद्या संस्थान, श्री महावीरजी 2. साहित्य विक्रय केन्द्र दिगम्बर जैन नसियां भट्टारकजी सवाई रामसिंह रोड़ जयपुर-302 004
- प्रथम बार, 2002, 500
D मूल्य
पुस्तकालय संस्करण 100/विद्यार्थी संस्करण 80/
- मुद्रक
मदरलैण्ड प्रिन्टिंग प्रेस 6-7, गीता भवन, आदर्श नगर जयपुर-302 004
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अनुक्रमणिका
पाठ सं.
पृष्ठ सं.
विषय आरम्भिक व प्रकाशकीय
1-12
क्रिया-सूत्र विवेचन (भूमिका) प्राकृत के क्रिया-कृदन्त सूत्र
13-38
शौरसेनी प्राकृत के क्रिया-कृदन्त सूत्र
39-40
अपभ्रंश के क्रिया-कृदन्त सूत्र
41-47
2. क्रियारूप
प्राकृत के क्रियारूप
48-62
अपभ्रंश के क्रियारूप
63-69
परिशिष्ट-1 सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम परिशिष्ट-2 सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण
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आरम्भिक व प्रकाशकीय
'प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश - रचना सौरभ भाग-2' अपभ्रंश अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। अतः हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर भारतीय भाषाओं के इतिहास के अध्ययन के लिए प्राकृत व अपभ्रंश का अध्ययन आवश्यक |
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' जयपुर द्वारा मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से प्राकृत व अपभ्रंश का अध्यापन किया जाता है। इसी प्राकृत व अपभ्रंश को सीखने-समझने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर ही 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' द्वारा 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग-1' 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है । इसी क्रम में 'प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश-रचना सौरभ भाग-2' प्रकाशित है।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग -1 में अपभ्रंश के संज्ञा व सर्वनाम के सूत्रों को समझाया गया है तथा प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग - 1 में प्राकृत के संज्ञा व सर्वनाम सूत्रों को समझाया गया है। प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश - रचना सौरभ भाग -2 में प्राकृत व अपभ्रंश के क्रिया- कृदन्तों के संस्कृत भाषा में लिखे सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों का विश्लेषण ऐसी शैली से किया गया है जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही उन्हें समझ
♦
सकें।
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सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है-1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि–विच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई हैं, 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, 4. सूत्रों
का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं।
आशा है कि प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश-रचना सौरभ भाग-2 के प्रकाशन से प्राकृत व अपभ्रंश के अध्ययन-अध्यापन को गति मिल सकेगी और 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' अपने उद्देश्य की पूर्ति में द्रुतगति से अग्रसर हो सकेगी।
पुस्तक-प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैण्ड प्रिन्टिंग प्रेस धन्यवादाह हैं।
मंत्री
नरेन्द्र पाटनी नरेशकुमार सेठी
अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी देगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति श्रेयांसनाथ मोक्ष दिवस
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा वीर निर्वाण संवत् 2528
22.8.2002
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पाठ-1
क्रिया- सूत्र विवेचन भूमिका – यह गौरव की बात है कि हेमचन्द्राचार्य ने प्राकृत की व्याकरण लिखी। उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की । प्राकृत व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत व्याकरण की पद्धति के अनुरूप संस्कृत भाषा में सूत्र लिखे गये। किन्तु सूत्रों का आधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि प्राकृत व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता है। संस्कृत के बहुत ही सामान्य ज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं। हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी प्राकृत व्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है।
अगले पृष्ठों में हम प्राकृत व अपभ्रंश व्याकरण के क्रिया-कृदन्त के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं। सूत्रों को समझने के लिए स्वर सन्धि, व्यंजनसन्धि तथा : विसर्गसन्धि के सामान्य ज्ञान की आवश्यकता है। साथ ही संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों का ज्ञान भी होना चाहिए तथा उनके विभिन्न कालों, पुरुषों व वचनों के प्रत्यय-संकेतों को समझना चाहिए। इन्हीं के साथ ही संस्कृत-कृदन्तों के प्रत्यय-संकेतों को भी जानना चाहिए। काल रचना की दृष्टि से प्राकृत में वर्तमान काल, भूतकाल, भविष्यत्काल, विधि एवं आज्ञा तथा क्रियातिपत्ति सूचक प्रयोग मिलते हैं । तीन पुरुष व दो वचन होते हैं। पुरुष-अन्य पुरुष (प्रथम पुरुष), मध्यम पुरुष व उत्तम पुरुष। वचन – एकवचन व बहुवचन । सूत्रों में विवेचित कृदन्त पाँच प्रकार के हैं- सम्बन्धक कृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया), हेत्वर्थक कृदन्त, वर्तमानकालिक कृदन्त, भूतकालिक कृदन्त एवं विधि कृदन्त । क्रिया का प्रयोग तीन प्रकार से होता है- 1. कर्तृ वाच्य, 2. कर्मवाच्य और 3. भाववाच्य । इनके भी प्रत्यय संकेत समझे जाने चाहिए। साथ ही प्रेरणार्थक क्रिया के प्रत्यय संकेतों को जानना चाहिए। इस प्रकार क्रिया-सूत्रों को समझने के लिए निम्नलिखित प्रत्यय-ज्ञान आवश्यक :
1. सन्धि के नियमों के लिए परिशिष्ट देखें।
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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संस्कृत में क्रियाओं के प्रत्यय
वर्तमान काल लट् (क)
अन्ति थ
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
441 v
लट् (ख)... · इत (आते)
इथे (आथे)
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष .
अन्ते (अते)
से इ (ए)
वहे
महे
भूतकाल सामान्य भूतकाल लुङ् (क) ताम् तम्
उः (अन्)
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
अम्
अन्त
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
अत अथाः
लुङ (ख) एताम् एथाम् आवहि
अध्वम् आमहि
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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अनधतन भूतकाल
लङ् (क) ताम् तम्
अन्
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
अम
- प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
लङ (ख)
इताम् (आताम) अन्त (अत) इथाम् (आथाम्) ध्वम्
थाः इ
वहि
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
(इ) थ अ
(इ) म
परोक्ष भूतकाल लिट् (क)
अतुः अथुः (इ) व लिट् (ख)
आते आथे
(इ) वहे भविष्यत्काल सामान्य भविष्य
लृट् (क)
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
(इ) से ।
(इ) ध्वे (इ) महे
ए
स्यतः
स्यन्ति
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
स्यति स्यसि स्यामि
स्यथः
स्यथ
स्यावः
स्यामः
--प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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प्रथम पुरुष
मध्यम पुरुष
उत्तम पुरुष
प्रथम पुरुष
मध्यम पुरुष
उत्तम पुरुष
प्रथम पुरुष
मध्यम पुरुष
उत्तम पुरुष
प्रथम पुरुष
मध्यम पुरुष
उत्तम पुरुष
प्रथम पुरुष
मध्यम पुरुष
उत्तम पुरुष
स्यते
स्यसे
स्ये
ता
तासि
तास्मि
तु
हि
आनि
लृट् (ख)
स्येते
येथे
स्यावहे
ताम्
स्व
अनद्यतन भविष्य
लुट् (क)
तारौ
तास्थः
तास्वः
लुट् (ख)
तारौ
तासाथे
तास्वहे
ता
तासे
ताहे
आज्ञा - विधिलिङ् - आशीर्लिङ्
आज्ञा, लोट् (क)
स्यन्ते
स्यध्वे
स्यामहे
तारः
तास्थ
'तास्मः
तार:
. ताध्वे
तास्महे
ताम्
तम्
आव
लोट् (ख)
इताम् (आताम् ) अन्ताम् (अताम् )
इथाम् (आथाम्)
ध्वम्
आवहै
आम
अन्तु
त
आम
प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश रचना सौरभ
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विधिलिङ् (क)
ईताम्
ईत्
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
ईतम् ईव
ईयम्
अथवा (क)
यात्
याताम्
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
याः
यातम्
यात
याम
याम
याव विधिलिङ् (ख)
ईयाताम्
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
ईरन् ईध्वम् ईमहि
ईयाथाम्
ईवहि आशीर्लिङ् (क)
यास्ताम् यास्तम्
यात्
यासुः
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष
याः
यास्त
उत्तम पुरुष
यासम्
यास्व
यास्म
सीरन्
प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष
सीष्ठ सीष्ठाः सीय
(ख) सीयास्ताम् सीयास्थाम् सीवहि
सीध्वम् सीमहि
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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स्यन्
स्यः
स्यत
स्याम
स्यन्त
स्यध्वम् स्यामहि
क्रियातिपत्ति
लुङ् (क) प्रथम पुरुष स्यत्
स्यताम् मध्यम पुरुष
स्यतम् उत्तम पुरुष स्यम् स्याव
लुङ् (ख) प्रथम पुरुष . रयत स्येताम् मध्यम पुरुष स्यथाः
स्येथाम् उत्तम पुरुष स्ये
स्यावहि भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय क्त (त → अ) वर्तमानकालिक कृदन्त के प्रत्यय 1. शतृ (अत्) 2. शानच् (आन्, मान) सम्बन्धक कृदन्त के प्रत्यय क्त्वा (त्वा) हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय तुमुन् (तुम्) विधि कृदन्त के प्रत्यय तव्य, अनीयर (अनीय)
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कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय
क्य = य प्रेरणार्थक धातु बनाने के लिए प्रयुक्त प्रत्यय णिच् (अय्) इनमें से हलन्त शब्दों के रूप भूभृत्' की तरह, अकारान्त शब्दों के रूप ‘राम' की तरह, इकारान्त के 'हरि' की तरह, उकारान्त के 'गुरु' की तरह, आकारान्त के ‘गोपा' की तरह, ईकारान्त के 'स्त्री' की तरह चलेंगे। इसी प्रकार शेष शब्दों के रूपों को संस्कृत व्याकरण से समझ लेना चाहिए। सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि विच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई हैं, 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं। अगले पृष्ठों में क्रिया, कृदन्तों से सम्बन्धित सूत्र दिये गये हैं। इन सूत्रो से निम्न प्रकार के क्रियाशब्दों के रूप निर्मित हो सकेंगे(क) अकारान्त क्रिया -- हस आदि। (ख) आकारान्त क्रिया - ठा आदि । (ग) ओकारान्त क्रिया - हो आदि। सूत्रों के आधार से समस्त अकारान्त क्रियाओं के रूप 'हस' की भांति, आकारान्त क्रियाओं के रूप 'ठा' की भांति व ओकारान्त क्रियाओं के रूप 'हो' की भांति बना लेने चाहिए।
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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सूत्रों को समझाते समय कुछ गणितीय चिह्नों का प्रयोग किया गया है, जिन्हें संकेत सूची में समझाया गया है।
1. हरि शब्द
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन हरयः
हरिः
प्रथमा द्वितीया तृतीया
हरीन्
हरिम् हरिणा हरये हरेः
चतुर्थी
पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन 2. भूभृत् शब्द
हरी हरिभ्याम् हरिभ्याम् हरिभ्याम् हो : होः हे हरी
हरिभिः हरिभ्यः हरिभ्यः हरीणाम् हरिषु । हे हरयः
हरौ
हे हरे
एकवचन
द्विवचन भूभृतौ
भूभृत्
प्रथमा द्वितीया
भूभृतौ
तृतीया
भूभृतम् भूभृता भूभृते
चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन
भूभृतः
बहुवचन भूभृतः भूभृतः भूभृद्भिः भूभृद्भ्यः भूभृद्भ्यः भूभृताम् भूभृत्सु हे भूभृतः
भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृतोः भूभृतोः हे भूभृतौ
.
भूभृतः भूभृति हे भूभृत्
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3. गोपा शब्द
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
संबोधन
4. राम शब्द
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
संबोधन
एकवचन
गोपाः
गोपाम
गोपा
गोपे
गोपः
गोपः
गोपि
हे गोपाः
एकवचन
रामः
रामम्
रामेण
रामाय
रामात्
रामस्य
रामे
हे राम
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
द्विवचन
गोप
गोपौ
गोपाभ्याम्
गोपाभ्याम्
गोपाभ्याम्
गोपोः
गोपोः
हे गोपौ
द्विवचन
रामौ
रामौ
रामाभ्याम्
रामाभ्याम्
रामाभ्याम्
रामयोः
रामयोः
हे रामौ
बहुवचन
गोपाः
गोपः
गोपाभिः
गोपाभ्यः
गोपाभ्यः
गोपाम्
गोपा
हे गोपाः
बहुवचन
रामा:
रामान्
रामैः
रामेभ्यः
रामेभ्यः
jo
रामाणाम्
रामेषु
हे रामाः
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5. स्त्री शब्द
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन
प्रथमा
स्त्री
स्त्रियः
द्वितीया
तृतीया
स्त्रियम् स्त्रिया स्त्रियै स्त्रियाः
स्त्रियो स्त्रियो स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् स्त्रियोः स्त्रियोः हे स्त्रियौ
चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन 6. गुरु शब्द
स्त्रियः स्त्रीभिः स्त्रीभ्यः स्त्रीभ्यः स्त्रीणाम् स्त्रीषु हे स्त्रियः
स्त्रियाः
स्त्रियाम् हे स्त्रि
एकवचन
द्विवचन
बहुवचन
प्रथमा द्वितीया
गुरु: गुरुम् गुरुणा गुरवे
तृतीया
चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन
गुरू गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुर्वोः
गुरवः गुरुन् गुरुभिः गुरुभ्यः गुरुभ्यः गुरूणाम् गुरुषु हे गुरवः
गुरोः गुरोः
गुर्वोः
हे गुरो
हे गुरू
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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सर्वो
सर्वे
सौं
7. सर्व एकवचन द्विवचन
बहुवचन प्रथमा
सर्वः द्वितीया सर्वम्
सर्वान् तृतीया सर्वेण सर्वाभ्याम् सर्वैः सर्वस्मै सर्वाभ्याम्
सर्वेभ्यः पंचमी सर्वस्मात्
सर्वाभ्याम् षष्ठी
सर्वस्य सर्वयोः सर्वेषाम् सप्तमी सर्वस्मिन् सर्वयोः 8. प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी, डॉ. कपिलदेव द्विवेदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी।
चतुर्थी
सर्वेभ्यः
सर्वेषु
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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अ = अव्यय
( ) - इस प्रकार के कोष्ठक में मूल शब्द रखा गया है।
{()+()+()
..}
इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न शब्दों में संधि का द्योतक है। यहां अन्दर के कोष्ठकों में मूल शब्द ही रखे गए हैं।
{0-0-0
.}
इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' 'चिह्न समास का द्योतक है
जहां कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/12/1... आदि) ही लिखी है वहां उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है
1 / 1 - प्रथमा / एकवचन 1/2 - प्रथमा / द्विवचन
1 / 3 - प्रथमा / बहुवचन 2/1 - द्वितीया / एकवचन
2 / 2 - द्वितीया/ द्विवचन
2 / 3 - द्वितीया / बहुवचन
3 / 1 - तृतीया / एकवचन
3 / 2 - तृतीया / द्विवचन
3 / 3 - तृतीया / बहुवचन
4 / 1 - चतुर्थी / एकवचन
4/2 - चतुर्थी / द्विवचन
4/3 - चतुर्थी / बहुवचन
12
संकेत सूची
;
5 / 1 - पंचमी / एकवचन
5 / 2 - पंचमी / द्विवचन
5/3 - पंचमी / बहुवचन 6/1 - षष्ठी / एकवचन 6/2 - षष्ठी / द्विवचन
6 / 3 - षष्ठी / बहुवचन
7 / 1 - सप्तमी / एकवचन
7 / 2 - सप्तमी / द्विवचन
7/3 - सप्तमी / बहुवचन
8/1 - संबोधन / एकवचन
8 / 2 - संबोधन / द्विवचन
8 / 3 - संबोधन / बहुवचन
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
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क्रिया- कृदन्त-सूत्र 1. त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ 3/139
त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ { (ति) + (आदीनाम्) + (आद्यत्रयस्य) + (आद्यस्य) + (इच्) + (एचौ)। {(ति)- (आदि) 6/3} आद्यत्रयस्य {(आद्य)- (त्रय)6/1} आद्यस्य (आद्य) 6/1{(इच्) - (एच) 1/2} तीन (पुरुषों) में से प्रथम (पुरुष) (अन्य पुरुष) के एकवचन के (प्रत्यय) ति आदि के स्थान पर इच् → इ और एच् → ए (होते हैं)। वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष) के एकवचन के प्रत्यय ति आदि के स्थान पर इ और ए होते हैं। [(ति आदि)→ इ.ए] (हस + इ, ए) = हसइ, हसए (वर्तमान काल, प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष). एकवचन) (ठा + इ. ए) = ठाइ (ठाए रूप नहीं बनेगा, सूत्र - 3/145) (हो + इ. ए) = होइ (होए रूप नहीं बनेगा, सूत्र -- 3/145) द्वितीयस्य सि से 3/140 द्वितीयस्य (द्वितीय) 6/1 सि (सि) 1/1 से (से) 1/1 द्वितीय (पुरुष के प्रत्यय) के स्थान पर सि, से (होते हैं)। वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से द्वितीय पुरुष (मध्यम पुरुष) के एकवचन के प्रत्यय (सि, से) के स्थान पर सि. से होते हैं। [(सि, से)-→ सि. से] (हस + सि, से) = हससि, हससे (वर्तमान काल, द्वितीय पुरुष (मध्यम पुरुष), एकवचन) (ठा + सि, से) = ठासि (ठासे रूप नहीं बनेगा, सूत्र-3/145) (हो + सि, से) = होसि (होसे रूप नहीं बनेगा, सूत्र--3/145)
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3. तृतीयस्य मि: 3/141
4.
14
तृतीयस्य (तृतीय) 6/1 मि: (मि) 1/1
तृतीय (पुरुष के प्रत्यय) के स्थान पर मि (होता है) ।
वर्तमान काल में तीन पुरुषों में से तृतीय पुरुष (उत्तम पुरुष) के एकवचन के प्रत्यय (मि, इ) के स्थान पर मि होता है। [(मि, इ) मि]
(हस + मि)
• हसमि (वर्तमान काल, तृतीय पुरुष (उत्तम पुरुष) एकवचन) (ठा + मि) = ठामि
( हो + मि) = होमि
नोट: हेमचन्द्र की वृत्ति के अनुसार कहीं-कहीं अकारान्त क्रिया से परे 'मि' में स्थित 'इ' का लोप हो जाता है और म का अनुस्वार हो जाता है(हस + मि) = हसं (वर्तमानकाल, उत्तमपुरुष, एकवचन) बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे 3/142
बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे (बहुषु) + (आद्यस्य ) ] न्ति न्ते इरे बहुषु (बहु) 7/3 आद्यस्य (आद्य) 6 / 1 न्ति (न्ति) 1/1 न्ते (न्ते) 1/1 इरे (इरे) 1/1
प्रथम (अन्य ) पुरुष के बहुवचन में न्ति, न्ते इरे (होते हैं) । वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष) के बहुवचन में (अन्ति, अन्ते के स्थान पर), न्ति, न्ते और इरे होते हैं । [ (अन्ति, अन्ते) न्ति, न्ते, इरे]
(हस +न्ति, न्ते, इरे) = हसन्ति, हसन्ते, हसिरे (वर्तमानकाल, प्रथम पुरुष ( अन्य पुरुष ). बहुवचन)
(ठा + न्ति, न्ते, इरे) = ठान्ति → ठन्ति ठान्ते → ठन्ते, ठाइरे
(संयुक्ताक्षर से पूर्व दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है, सूत्र - 1/84 ) ।
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5.
(हो + न्ति, न्ते, इरे) = होन्ति, होन्ते, होइरे नोट - हेमचन्द्र की इस सूत्र की वृत्ति के अनुसार कभी-- कभी अन्य पुरुष एकवचन में भी 'इरे' प्रत्यय की प्राप्ति देखी जाती है। जैसे - सूसइरे गाम - चिक्खल्लो। मध्यमस्येत्था - हचौ 3/143 मध्यमस्येत्था - हचौ (मध्यमस्य) + (इत्था)} हचौ मध्यमस्य (मध्यम) 6/1 (इत्था) – (हच्) 1/2} मध्यमपुरुष (बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर इत्था और हच् → ह (होते हैं)। वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से मध्यम पुरुष बहुवचन के प्रत्यय थ, ध्वे के स्थान पर इत्था और ह होते हैं। [(थ, ध्वे) → इत्था, ह] (हस + इत्था, ह) = हसित्था, हसह (वर्तमानकाल, मध्यम पुरुष, बहुवचन) (ठा + इत्था, ह) = ठाइत्था, ठाह (हो + इत्था, ह) = होइत्था, होह तृतीयस्य मो-मु-मा : 3/144 तृतीयस्य (तृतीय) 6/1 (मो) – (मु) – (म) 1/3) तृतीय पुरुष (बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर मो, मु, म (होते हैं)। वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से तृतीय पुरुष (उत्तम पुरुष) के बहुवचन के प्रत्यय (मः, महे) के स्थान पर मो, मु, म होते हैं। [(मः, महे) → मो, मु, म] (हस + मो, मु, म) = हसमो, हसमु, हसम (वर्तमान काल, तृतीय पुरुष (उत्तम पुरुष), बहुवचन) (ठा + मो, मु, म) = ठामो, ठामु, ठाम (हो + मो, मु, म) = होमो, होमु, होम
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7. अत एवैच् से 3/145
अत एवैच से (अतः) + (एव) + (एच)] से अतः (अत्) 5/1 एव = ही एच (एच) 1/1 से (से) 1/1 अकारान्त से परे ही एच् → ए (और) से (होते हैं) (आकारान्त, ओकारान्त आदि से परे नहीं)। केवल अकारान्त क्रिया से परे ही ए (अन्य पुरुष एकवचन का प्रत्यय) और से (मध्यम पुरुष एकवचन का प्रत्यय) होते हैं । आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं से परे ए और से प्रत्ययों का प्रयोग नहीं किया जाता है। (हस + ए) = हसए (अन्य पुरुष, एकवचन) (ठा + ए) = ठाए नहीं बनेगा। (हो + ए) = होए नहीं बनेगा। (हरस + से ) = हससे (मध्यम पुरुष, एकवचन) (ठा + से) = ठासे नहीं बनेगा। (हो + से) = होसे नहीं बनेगा। सिनास्तेः सिः 3/146 सिनास्तेः सिः (सिना) + (अस्तेः)} सिः सिना (सि) 3/1 अस्तेः (अस्ति) 6/1 सिः (सि) 1/1 . सि (मध्यम पुरुष एकवचन के प्रत्यय) सहित अस्तित्ववाचक अस के स्थान पर सि ही (होता है)। अस् क्रिया के वर्तमानकाल में मध्यमपुरुष एकवचन के प्रत्यय सि परे होने पर सि सहित सि रूप ही बनेगा। (अस् + सि) = सि (वर्तमानकाल, मध्यम पुरुष, एकवचन)
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9. मि. मो-मै --हि-म्हो-म्हा वा 3/147
मि-मो-मै-हि-म्हो-म्हा वा मि- मो-- {(मैः) +(म्हि)} --म्हो - ((म्हाः) + (वा)} (मि)-- (भो)-- (म) 3/3} {(म्हि)-(म्हो)- (म्ह) 1/3} वा = विकल्प से मि (उत्तमपुरुष एकवचन के प्रत्यय), मो, म (उत्तमपुरुष, बहुवचन के प्रत्यय) सहित (अस् के स्थान पर) विकल्प से (क्रमशः) म्हि. म्हो, म्ह (होते हैं)। वर्तमानकाल में उत्तमपुरुष के एकवचन के प्रत्यय मि, उत्तमपुरुष के बहुवचन के प्रत्यय मो व म सहित अस् क्रिया का क्रमशः म्हि, म्हो और म्ह होते हैं । (अस् + मि) = म्हि (वर्तमानकाल, उत्तम पुरुष एकवचन) (अस् + मो) = म्हो (वर्तमानकाल, उत्तम पुरुष, बहुवचन)
(अस् + म) = म्ह (वर्तमानकाल, उत्तम पुरुष, बहुवचन) 10. अत्थिस्त्यादिना 3/148
अत्थिस्त्यादिना (अत्थिः) + (ति) + (आदिना)} अत्थिः (अत्थि) 1/1 (ति) - (आदि) 3/1} (वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों व दोनों वचनो में) ति आदि सहित (अस्') अस्थि (होता है)। अस् क्रिया के वर्तमानकाल के तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में ति आदि सहित अस्थि होता है। (अस् + ति आदि) = अत्थि (वर्तमान काल के तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में)
अस (वर्तमानकाल) एकवचन
बहुवचन अस्थि
अस्थि अस्थि
अस्थि अत्थि
अस्थि
مي مي مي
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11. णेरदेदावावे 3/149
णेरदेदावावे (णेः) + (अत्) + (एत्) + (आव) + (आवे)} णे: (णि) 6/(अत्) - (एत्) - (आव) – (आवे) 1/1} णि (प्रेरणार्थक प्रत्यय) के स्थान पर अत् → अ, एत् → ए. आव (और) आवे (होते हैं)। किसी भी क्रिया को प्रेरणार्थक बनाने के लिए उसमें अ, ए, आव, आवे प्रत्यय जोड़े जाते हैं। [(णि) → अ. ए. आव, आवे] (हस+अ.ए, आव, आवे) = हास, हासे, हसाव, हसावे
(सूत्र 3/153 से अ व ए प्रत्यय
लगने पर आदि 'अ' का 'आ' हुआ है) 12. गुर्वादेरविर्वा 3/150
गुर्वादेरवि (गुरु) + (आदेः) + (अविः) + (वा)} (गुरु) + (आदि) 6/1]' अविः (अवि) 1/1 वा = विकल्प से । आदि (स्वर) में गुरु (दीर्घ) होने पर विकल्प से अवि (होता है)। आदि (स्वर) में गुरु (दीर्घ) होने पर प्रेरणार्थक प्रत्यय (णि) के स्थान पर विकल्प से अवि होता है। रूस + अवि = रूसवि (रुसाना)
रूस, रूसे, रूसाव, रूसावे (सूत्र – 3/149) 13. भ्रमे राडो वा 3/151
भ्रमे राडो वा {(भ्रमेः) + (आडः) + (वा)} 1. यहाँ पर षष्ठी का प्रयोग सप्तमी के अर्थ में हुआ है।
इस सूत्र की हेमचन्द्र की व्याख्या के अनुसार आदि स्वर गुरुवाली धातुओं में किसी भी प्रकार के प्रेरणार्थक प्रत्यय को नहीं जोड़ करके भी प्रेरणार्थक अर्थ प्रदर्शित कर दिया जाता है। जैसे --सोसिअं =सुखाया हुआ।
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भ्रमेः (भ्रमि) 5/1 आडः (आड) 1/1 वा = विकल्प से . भ्रमि → भ्रम→भम से परे (प्रेरणार्थक प्रत्यय णि के स्थान पर) विकल्प से आड (होता है) [(णि) → आड] भम से परे प्रेरणार्थक प्रत्यय णि के स्थान पर विकल्प से आड होता है।
(भम + आड) = भमाड 14. लुगावी – क्त - भाव – कर्मसु 3/152
लुगावी -क्त-भाव-कर्मसु (लुक) + (आवी)} -क्त-भाव-कर्मसु {(लुक्) -(आवि) 1/2} {(क्त)-(भाव)-(कर्म)7/3} क्त→त→अ (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय), भाववाच्य (और) कर्मवाच्य (के प्रत्यय) परे होने पर (प्रेरणार्थक प्रत्यय के स्थान पर) लोप (०' प्रत्यय) (और) आवि (प्रत्यय लगेंगे)। क्त→त→अ (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय), भाववाच्य और कर्मवाच्य के प्रत्यय (इज्ज, ईअ) परे होने पर प्रेरणार्थक प्रत्यय के स्थान पर लोप (o' प्रत्यय)
और आवि प्रत्यय लगेंगे। [(त)→ अ; (य)→ इज्ज, ईअ: (णि)→ 0. आवि] भूतकालिक कृदन्त (हस + '0' + अ)= (हास +अ)= हासिअ (सूत्र 3/153 से आदि 'अ' का 'आ' हुआ है।) (हस + आवि + अ)%3D (हसावि+अ) = हसाविअ कर्मवाच्य (कर + 0 + इज्ज, ईअ) = (कार + इज्ज, ईअ) = कारिज्ज, कारीअ (सूत्र 3/153 से आदि 'अ' का 'आ' हुआ है) (कर+आवि+ इज्ज, ईअ)= (करावि + इज्ज, ईअ)= कराविज्ज, करावीअ भाववाच्य (हस +0+ इज्ज, ईअ) = (हास+इज्ज, ईअ) = हासिज्ज, हासीअ ' (हस + आवि+ इज्ज, ईअ) = (हसावि+ इज्ज, ईअ) = हसाविज्ज, हसावीअ
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15. अदेल्लुक्यादेरत आः 3/153
अदेल्लुक्यादेरत आः (अत्) + (एत) + (लुकि) + (आदेः) + (अतः) + (आ.)} {(अत्) - (एत्) - (लुक) 7/1} आदेः (आदि) 6/1 अतः(अत्) 6/1 आ: (आ) 1/ (प्रेरणार्थक प्रत्ययों में से) अत्→ अ, एत् → ए. लोप (0) प्रत्यय परे होने पर आदि अत् → अ का आ (होता है)। प्रेरणार्थक प्रत्ययों में से अ. ए. '0' प्रत्यय परे होने पर आदि अत् → अ का अ होता है। (हस + अ) = हस → हास (हस + ए) = हसे' → हासे (हस + '0') = हस → हास नोट - इस सूत्र की व्याख्या के अनुसार कुछ व्याकरणकार आवे और आदि प्रत्ययों का सद्भाव होने पर भी आदि 'अ का 'आ' होना स्वीकार करते हैं
जैसे -करावे → कारावे, करावि → कारावि। 16. मौ वा 3/154
मौ (मि)7/1 वा = विकल्प से मि परे होने पर (अन्त्य 'अ' का) विकल्प से (आ होता है)। अकारान्त क्रियाओं से परे मि होने पर अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'आ' होता है। (हस+मि) = हसमि, हसामि (वर्तमान काल, उत्तम पुरुष, एकवचन)
(देखें सूत्र - 3/141) 17. इच्च मो-मु-मे वा 3/155
इच्च मो-मु-मे वा (इत्) + (च) इत् (इत्) 1/1 च = और (मो) ---- (मु) -- (म) 7/1] वा= विकल्प से
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मा, मु, ( उत्तम पुरुष बहुवचन के प्रत्यय) परे होने पर (क्रिया के अन्त्य अ' का) विकल्प से इत् इ और (आ होता है) ।
अकारान्त क्रियाओं से परे उत्तम पुरुष, बहुवचन के प्रत्यय मो, मु, म होने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'इ' और 'आ' होता है।
( हस + मो, मु, म )
हसामो, हसामु, हसाम (वर्तमान काल, उत्तम पुरुष, हसिमो, हसिमु, हसिम बहुवचन)
18. क्ते 3/156
क्ते (क्त) 7/1
क्त त अ परे होने पर (अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है)।
त
अ (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय) परे होने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है।
(हस + अ ) हसिअ (भूतकालिक कृदन्त )
=
19. एच्च क्त्वा तुम्
तव्य - भविष्यत्सु 3 / 157
एच्च क्त्वा - तुम् -तव्य - भविष्यत्सु ((एत्) + (च) ] क्त्वा तुम् - तव्य - भविष्यत्सु
―
एत् (एत्) 1/1 च = और ( ( क्त्वा) - (तुम्) - (तव्य ) -- (भविष्यत्) 7/3} क्त्वा → त्वा (सम्बन्धक भूतकृदन्त के प्रत्यय) तुम् (हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय), तव्य (विधि कृदन्त के प्रत्यय) तथा भविष्यत्काल बोधक प्रत्यय परे होने पर (अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का ) 'ए' और (इ' होता है) । (त्वा) → उं, अ, ऊण, उआण (सम्बन्धक भूतकृदन्त के प्रत्यय), (तुम्) → उं ( हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय, ), (तव्य ) → अव्व (विधिकृदन्त के प्रत्यय) तथा भविष्यत्काल- बोधक (स्यति, स्यते आदि हि आदि ) प्रत्यय परे होने पर अकारान्त क्रिया के अन्त में स्थित 'अ' का 'ए' और 'इ' होता है।
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(हस + उं, अ, ऊण, उआण) = हसिउं, हसिअ, हसिऊण, हसिउआण,
हसेउ, हसेअ, हसेऊण, हसेउआण
(सम्बन्धक भूतकृदन्त) (देखें सूत्र -2/146) (हस + इय, दूण, त्ता)= हसिय, हसिदूण, हसित्ता' (सं. कृ. शौरसेनी प्राकृत
(देखें सूत्र -4/271) (हस + उं) = हसिउं, हसेउ (हे. कृ.) (हस + अव्व) = हसिअव्व, हसेअव्व (वि. कृ.)
भविष्यत्काल एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसिहिमि, हसे हिमि, हसिहामि, हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु
हसेहामि हसिस्सामि, हसेस्सामि, हसे हिमु, हसिहिम, ह से हिम हसिस्सं, हसेस्सं, हसिस्सिमि' हसिस्सामो, हसे स्सामो (देखें सूत्र - 3/166-167, हसिस्सामु, हसेस्सामु, हसिस्साम 3/169, 3/275)
हसेस्साम, हसिहामो, हसेहामो हसिहामु, हसेहामु, हसिहाम हसेहाम, हसिहिस्सा, हसेहिस्सा हसिहित्था, हसेहित्था, हसिस्सिमो
1.
व्याकरण के नियमानुसार हसेत्ता व हसेदूण रूप भी बनने चाहिए परन्तु हेमचन्द्र की इस सूत्र की वृत्ति में इन रूपों का उल्लेख नहीं है। शौरसेनी प्राकृत का भविष्यत्काल बोधक प्रत्यय 'स्सि' लगने पर क्रिया के अन्त्य अ का सिर्फ 'इ' होता है। . ...
2.
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मध्यमपुरुष हसिहिसि, हसेहिसि, हसिहिसे,
हसे हिसे, हसिस्सिसि, हसिस्सिसे
अन्यपुरुष
(देखें सूत्र - 3 / 166, 4/275) हसिस्ससि, हसेस्ससि, हसिस्ससे, हसेससे'
1.
हसिस्सिमु हसिस्सिम
(देखें सूत्र - 3 / 166-168,
4/275)
हसिहिह, हसेहिह, हसिहित्था, हसिस्सिह,
हसे हित्था,
हसिस्सिइत्था, हसिस्सिध
(देखें सूत्र - 3 / 166, 4/268,
4/275)
हसिस्सह,
हसेस्सह,
हसिस्सइत्था, हसेस्सइत्था,
हसिस्सध, हसेस्सध' हसिहिन्ति, हसेहिन्ति, हसिहिन्ते,
हसिहिइ, हसे हिइ, हसिहिए, हसे हिए, हसिस्सिदि हसिस्सिदे ' (देखें सूत्र - 3 / 166, 4 / 273,
हसे हिन्ते, हसिहिइरे, हसेहिइरे हसिस्सिन्ति, हसिस्सिन्ते,
4/275)
हसिस्सिइरे
हसिस्सइ, हसेस्सइ, हसिस्सए, (देखें सूत्र - 3 / 166, 4/275) हसेस्सए '
हसिस्सन्ति,
हसेस्सन्ति,
हसिस्सन्ते,
हसेस्सन्ते,
हसिस्सइरे, हसेस्सइरे'
भविष्यत्काल के मध्यम पुरुष एकवचन बहुवचन तथा अन्य पुरुष एकवचन, बहुवचन में 'रस' प्रत्यय भी क्रिया में जोड़ा जाता है। इस प्रत्यय को जोड़ने के बाद वर्तमानकाल के पुरुषवाचक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं । पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ - 7581
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20. वर्तमाना-पंचमी-शतृषु वा 3/158
{(वर्तमाना) - (पंचमी) - (शत) 7/3} वा = विकल्प से (अकारान्त क्रियाओं में) वर्तमानकाल (के पुरुषवाचक प्रत्यय), पंचमी (आज्ञार्थक, विधि -- अर्थक पुरुषवाचक प्रत्यय) तथा शतृ (वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से (क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' होता है)। वर्तमानकाल के पुरुषवाचक प्रत्यय, आज्ञार्थक या विधि- अर्थक पुरुषवाचक प्रत्यय तथा वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय परे रहने पर अकारान्त क्रियाओं के अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' होता है।
वर्तमानकाल एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसमि, हसेमि
हसमो, हसमु, हसम, (सूत्र-3/141)
हसेमो, हसेमु, हसेम
(सूत्र - 3/144) मध्यमपुरुष हससि, हससे,
हसह, हसित्था, हसध, हसेसि, हसेसे
हसेह, हसेइत्था, हसेध (सूत्र - 3/140) (सूत्र-3/143,4/268) अन्यपुरुष हसइ, हसदि,
हसन्ति, हसन्ते, हसिरे हसेइ, हसेदि
हसेन्ति, हसेन्ते, हसेइरे (सूत्र-3/139, 4/273) (सूत्र – 3/142)
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विधि एवं आज्ञा एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसमु, हसेमु (सूत्र-3/173) हसमो, हसेमो (सत्र - 3/176) मध्यमपुरुष हससु, हसहि,
हसह, हसेह (सूत्र -- 3/176) हसेसु, हसेहि
(सूत्र – 3/173-174) अन्यपुरुष हसउ, हसेउ (सूत्र - 3/173) हसन्तु, हसेन्तु (सूत्र - 3/176)
वर्तमान कृदन्त हसन्त, हसमाण
हसेन्त, हसेमाण (सूत्र - 3/181) 21. ज्जा - ज्जे 3/159 . (ज्जा) – (ज्ज)7/1}
ज्जा और ज्ज (प्रत्यय) परे होने पर (क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' होता है)। वर्तमानकाल, भविष्यत्काल, आज्ञार्थक व विध्यर्थक के सभी प्रकार के पुरुषवाचक प्रत्ययों के स्थान पर प्राप्त होनेवाले ज्जा व ज्ज प्रत्यय के परे रहने पर अकारान्त क्रियाओं के अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होती है।
(देखें सूत्र – 3/177) 22. ईअ - इज्जौ क्यस्य 3/160
{(ईअ) – (इज्ज) 1/2} क्यस्य (क्य) 6/1 क्य (य) = (कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय) के स्थान पर ईअ और इज्ज (होते हैं)। [(य) → ईअ, इज्ज] य (कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय) के स्थान पर ईअ और इज्ज होते हैं। ये प्रत्यय क्रिया व कालबोधक प्रत्यय के बीच लगाये जाते हैं।
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(हस + इज्ज /ईअ) = हसिज्जइ/हसीअइ (वर्तमानकाल का भाववाच्य) (कर + इज्ज /ईअ) = करिज्जइ / करीअइ (वर्तमानकाल का कर्मवाच्य) नोट - हेमचन्द की वृत्ति के अनुसार कभी-कभी ईअ व इज्ज' की प्राप्ति के बिना भी कर्मवाच्य - भाववाच्य के रूप बन जाते हैं। जैसे - मए नवेज्ज या
मए नविज्जेज्ज (मुझसे नमा जाता है।) 23. सी ही हीअ भूतार्थस्य 3/162
सी ही हीअ भूतार्थस्य सी ही {(हीअः) + (भूतार्थस्य)} सी (सी) 1/1 ही (ही) 1/1 हीअ : (हीअ) 1/1 भूतार्थस्य (भूतार्थ) 6/1 (अकारान्त क्रियाओं के अतिरिक्त (स्वरान्त) आकारान्त, ओकारान्त क्रियाओं से परे) भूतार्थबोधक प्रत्ययों (त्, अत आदि) के स्थान पर (तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में) सी, ही और हीअ (होते हैं)। अकारान्त क्रियाओं के अतिरिक्त आकारान्त, ओकारान्त क्रियाओं से परे भूतार्थ बोधक प्रत्ययों (त्, अत आदि) के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनो वचनों में सी, ही और ही होते हैं। [(त्, अत आदि) → सी, ही, हीअ]
भूतकाल (ठा) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष
ठासी, ठाही, ठाहीअ ठासी, ठाही, ठाहीअ मध्यमपुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ ठासी, ठाही, ठाहीअ अन्यपुरुष
ठासी, ठाही, ठाहीअठासी, ठाही, ठाहीअ
भूतकाल (हो) उत्तमपुरुष
होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ मध्यमपुरुष होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ अन्यपुरुष • होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ
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24. व्यञ्जनादीअ: 3 / 163
व्यञ्जनादीअः {(व्यञ्जनात्) + (ईअ:)}
व्यञ्जनात् (व्यञ्जन) 5/1 ईअ: (ईअ) 1/1
व्यञ्जनान्त (अकारान्त) क्रियाओं से परे (भूतार्थबोधक प्रत्ययों) (त्, अत आदि) (के स्थान पर) ईअ (होता है) ।
अकारान्त क्रियाओं से परे भूतार्थबोधक प्रत्ययों (त्, अत आदि) के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में 'ईअ' प्रत्यय होता है। [ (त्, अत आदि) ईअ]
→
भूतकाल (हस )
उत्तमपुरुष
मध्यमपुरुष
अन्यपुरुष
25. तेनास्तेरास्यहेसी 3 / 164
एकवचन
हसीअ
हसीअ
हसीअ
उत्तमपुरुष
मध्यमपुरुष
अन्यपुरुष
तेनास्ते रास्य सी (तेन) + (अस्ते :) + (आसि) + (अहेसी ) ]
तेन (त) 3 / 1 अस्तेः (अस्ति) 6/1 आसि (आसि) 1 / 1 अहेसी (अहेसी) 1/1 (तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में ) उसके सहित (अर्थात् भूतार्थबोधक प्रत्ययों सहित) अस्तित्ववाचक अस् के स्थान पर आसि और अहेसी होते हैं । भूतार्थबोधक प्रत्ययों के साथ अस् के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में आसि और अहेसी होते हैं। [ (अस् + त्, अंत आदि) आसि, अहेसी ]
अस (भूतकाल )
एकवचन
आसि, असी
आसि, अहेसी
आसि, अहेसी
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बहुवचन
हसीअ
हसीअ
हसीअ
बहुवचन
आसि, अहेसी
आसि, अहेस
आसि, अहेसी
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26. ज्जात्सप्तम्या इर्वा 3/165
ज्जात्सप्तम्या इर्वा (ज्जात्) + (सप्तम्याः) + (इ:) + (वा)} ज्जात् (ज्ज) 5/1 सप्तम्याः (सप्तमी) 5/1 इ: (इ) 1/1 वा = विकल्प से (क्रिया से परे ) सप्तमी अर्थक (विधिअर्थक प्रत्यय) ज्ज से परे विकल्प से 'इ'. (होता है)।
विधि (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसेज्जइ
हसेज्जइ मध्यमपुरुष हसेज्जइ
हसेज्जइ अन्यपुरुष हसेज्जइ
हसेज्जइ (सूत्र-3/158 से क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' हुआ है)
विधि (ठा) उत्तमपुरुष ठज्जइ
ठज्जइ मध्यमपुरुष ठज्जइ
ठज्जइ अन्यपुरुष ठज्जइ
ठज्जइ (सूत्र-1/84 के अनुसार संयुक्ताक्षर से पूर्व दीर्घ स्वर हो तो वह हृस्व हो जाता है।)
विधि (हो) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष होज्जइ
होज्जइ मध्यमपुरुष
होज्जइ अन्यपुरुष
होज्जइ
होज्जइ
होज्जइ
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27. भविष्यति हिरादि: 3/166
भविष्यति हिरादिः भविष्यति (हिः) + (आदिः) }
भविष्यति (भविष्यत्) 7/1 हि: (हि) 1/1 आदिः (आदि) 1 / 1 वि भविष्यत् काल में (क्रिया से परे ) सर्वप्रथम 'हि' (जोड़ा जाता है ) । भविष्यत्काल में क्रिया से परे भविष्यअर्थक प्रत्यय स्यति, स्यते आदि के स्थान पर सर्वप्रथम 'हि' प्रत्यय जोड़ा जाता है, तत्पश्चात् वर्तमानकाल के पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं । (रूपावली के लिए देखें सूत्र - 3 / 157 )
28. मि - मो - मु- मे स्सा हा नवा 3 / 167
{(मि) – (मो) – (मु) – (म) 7/1] स्सा (स्सा) 1 / 1 हा (हा) 1/1 न वा = विकल्प से
(क्रिया से परे ) मि (वर्तमानकाल, उत्तम पुरुष एकवचन का प्रत्यय), मो, मु, म (उ. पु. बहु. के प्रत्यय) होने पर (भविष्यत्काल में) विकल्प से स्सा, हा (होते हैं) । भविष्यत्काल में क्रिया से परे मि, मो, मु, म होने पर उनके पूर्व विकल्प से 'स्सा' और 'हा' होते हैं।
(रूपावली के लिए देखें सूत्र - 3 / 157)
29. मो - मु-मानां हिस्सा हित्था 3 / 168
मो - मु-मानां हिस्सा हित्था भो - मु - [ (मानाम्) + (हिस्सा)] हित्था {(मो) – (मु) – (म) 6/3] हिस्सा ( हिस्सा) 1 / 1 हित्था ( हित्था ) 1/1 मो. मु, म के स्थान पर (विकल्प से) हिस्सा हित्था (होते हैं) । भविष्यत्काल में क्रिया से परे हिमो, हिमु, हिम (सूत्र 3 / 157), स्सामो, स्सामु, स्साम, हामो, हामु, हाम (सूत्र 3 / 157) के स्थान पर विकल्प से 'हिस्सा' और 'हित्था जोड़े जाते हैं ।
प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश रचना सौरभ
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(हस + हिस्सा, हित्था) = हसिहिस्सा, हसिहित्था,
हसेहिस्सा, हसे हित्था,
(भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, बहुवचन) (नोट - सूत्र 3/157 से अन्त्य अ का 'इ' व 'ए' हुआ है) 30. मे: स्सं 3/169
मेः (मि) 6/1 स्सं (स्स) 1/1 मि के स्थान पर (विकल्प से) स्सं (होता है)। भविष्यत्काल में क्रिया से परे हिमि (सूत्र 3/157), स्सामि, हामि (सूत्र 3/157) के स्थान पर विकल्प से ‘स्सं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। (हस + स्स) = हसिस्स, हसेस्सं
(भविष्यत्काल, उत्तम पुरुष, एकवचन) । 31. दु सु मु विध्यादिष्वेकस्मिस्त्रयाणाम् 3/173
दु सु मु विध्यादिष्वेकस्मिंस्त्रयाणाम् दु सु मु (विधि) + (आदिषु) + . (एकस्मिन्) + (त्रयाणाम्)} 'दु (दु) 1/1 सु (सु) 1/1 मु(मु) 1/1 (विधि) + (आदि) 7/3} एकस्मिन् (एक)7/1 त्रयाणाम् (त्रय) 6/3 विधि आदि में तीनों ('पुरुषों' अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष) के एकवचन में (क्रमशः) दु→ उ, सु, मु (होते हैं)। विधि, आज्ञा एवं आशीषबोधक प्रत्ययों (तु, ताम् आदि) के स्थान पर अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष के एकवचन में क्रमशः उ, सु, मु. होते हैं । {(तु.ताम् आदि)→ उ. सु. मु} (हस+उ) = हसउ, हसेउ (विधि, अन्य पुरुष, एकवचन) (हस+सु) = हससु, हसेसु (विधि, म. पु. एकवचन) (हस+मु) = हसमु, हसे मु (विधि, उ. पु. एकवचन) (सूत्र 3/158 से तीनों पुरुषों में अन्त्य 'अ' का ‘ए’ हुआ है)।
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32. सोर्हिर्वा 3/174
सोहिर्वा (सोः) --- (हि:) वा सोः (सु) 6/1 हि: (हि) 1/1 वा = विकल्प रस सु (मध्यम पुरुष, एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से हि (भी) (होता है)। विधि, आज्ञा एवं आशीष अर्थ में 'सु' (मध्यम पुरुष, एकवचन के प्रत्यय के स्थान पर) विकल्प से 'हि' भी होता है। (हस+सु) = (हस + हि) = हसहि, हसेहि (विधि, मध्यम पुरुष, एकवचन)
(सूत्र 3/158 से अन्त्य 'अ' का 'ए' हुआ है) 33. अत इज्जस्विज्जहीज्जे --- लुको वा 3/175
अत इज्जस्विज्जहीज्जे – लुको वा (अतः) + (इज्जसु) + (इज्जहि) - (इज्जे) + (लुक:) + (वा)} अतः (अत्) 5/1 (इज्ज सु) - (इज्जहि) --- (इज्जे) -- (लुक) 1/3} वा = विकल्पसे (विधि आदि में) अकारान्त क्रियाओं से परे (म. पु. एकवचन के प्रत्यय सु के स्थान पर) विकल्प से इज्जसु, इज्जहि. इज़्जे व लोप ('०' प्रत्यय) (होते हैं)। विधि, आज्ञा एवं आशीष अर्थ में अकारान्त क्रियाओं से परे सु (मध्यम पुरुष, एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से इज्जसु, इज्जहि, इज्जे व लोप ('0' प्रत्यय) होते हैं। (हस + सु) = (हस + इज्जसु, इज्जहि, इज्जे, '0' प्रत्यय) = हरोज्जसु.
हसेज्जहि,
हसेज्जे, हस (विधि, मध्यम पुरुष, एकवचन)
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34. बहुषु न्तु ह मो 3/176
बहुषु न्तु ह मो बहुषु न्तु (हः) + (मो)} बहुषु (बहु) 7/3 न्तु (न्तु) 1/1 हः (ह) 1/1 मो (मो) 1/1 (विधि आदि के प्रत्ययों के स्थान पर) (तीनों पुरुषों के) बहुवचन में (क्रमशः) न्तु, ह, मो (होते हैं)। विधि, आज्ञा एवं आशीष बोधक प्रत्ययों (अन्तु, अन्ताम् आदि) के स्थान पर अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष के बहुवचन में क्रमशः न्तु, ह, मो होते हैं। (अन्तु, अन्ताम् आदि)→ न्तु, ह, मो} (हस + न्तु) = हसन्तु. हसेन्तु (विधि, अन्य पु. बहु.) (हस + ह) = हसह, हसेह (विधि, म. पु. बहु) (हस + मो) = हसमो, हसेमो (विधि, उ. पु. बहु.)
(सूत्र 3/158 से तीनों पुरुषों में अन्त्य 'अ' का ‘ए’ हुआ है) 35. वर्तमाना - भविष्यन्त्योश्च ज्ज ज्जा वा 3/177
वर्तमाना - भविष्यन्त्योश्च ज्ज ज्जा वा (वर्तमाना) + (भविष्यन्त्योः) + (च)} {(ज्जः) + (ज्जा)} वा (वर्तमाना) - (भविष्यन्ति)7/2} च =और ज्जः (ज्ज) 1/1 ज्जा (ज्जा) 1/1 वा = विकल्प से वर्तमान, भविष्यत्काल और (विधि में) (तीनों पुरुषों व दोनों वचनों के प्रत्ययों के स्थान पर) विकल्प से ज्ज (और) ज्जा (होते हैं)। वर्तमानकाल, भविष्यत्काल और विधि आदि में तीनों पुरुषोंव दोनों वचनों के प्रत्ययों के स्थान पर विकल्प से ज्ज और ज्जा होते हैं।
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वर्तमानकाल एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्यपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा
विधि एवं आज्ञा उत्तमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्यपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज हसेज्जा
भविष्यत्काल उत्तमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्यपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा (सूत्र 3/159 से अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का ‘ए’ हुआ है) (हो + ज्ज, ज्जा) = होज्ज, होज्जा (ठा+ज्ज, ज्जा) = ठाज्ज→ठज्ज, ठाज्जा → ठज्जा आकारान्त, ओकारान्त क्रियाओं के इसी प्रकार तीनों काल, तीनों पुरुष व
दोनों वचनों के रूप बना लेने चाहिए। 36. मध्ये च स्वरान्ताद्वा 3/178
मध्ये च स्वरान्ताद्वा मध्ये च (स्वरान्तात्) + (वा)} मध्ये (मध्य) 7/1 च = और स्वरान्तात् (स्वरान्त) 5/1 वा = विकल्प से स्वरान्त (अकारान्त के अतिरिक्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं) से
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परे (वर्तमान, भविष्यत् व विधिबोधक प्रत्ययों के) मध्य में विकल्प से (ज्ज, ज्जा प्रत्यय जुड़ते हैं)।
अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त, ओकारान्त आदि स्वरान्त क्रियाओं से परे वर्तमानकाल, भविष्यत्काल व विधि आदि के प्रत्ययों के मध्य में विकल्प से ज्ज, ज्जा प्रत्यय होते हैं
उत्तमपुरुष
वर्तमानकाल (हो)
एकवचन
होज्जमि, होज्जामि
मध्यमपुरुष होज्जसि, होज्जासि,
होज्जसे, होज्जासे
अन्यपुरुष होज्जइ, होज्जाइ,
होज्जए, होज्जाए,
उत्तमपुरुष होज्जमु, होज्जामु मध्यमपुरुष होज्जहि होज्जाहि,
विधि एवं आज्ञा (हो)
होज्जसु होज्जासु
अन्यपुरुष होज्जउ, होज्जाउ
बहुवचन
होज्जमो, होज्जामो,
होज्जमु, होज्जामु
होज्जम, होज्जाम
होज्जइत्था / होज्जित्था,
हो जाइत्था,
होज्जह, होज्जाह
होज्जन्ति, होज्जान्ति,
होज्जन्ते, होज्जान्ते
होज्जइरे, होज्जाइरे
होज्जमो, होज्जामो
होज्जह, होज्जाह
होज्जन्तु होज्जान्तु
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बहुवचन
भविष्यत्काल (हो) एकवचन उत्तमपुरुष होज्जहिमि, होज्जाहिमि, होज्जहिमो, होज्जाहिमो,
होज्जस्सामि, होज्जास्सामि होज्जहिम, होज्जाहिम, होज्जहामि, होज्जाहामि, होज्जहिम, होज्जाहिम, होज्जस्सिमि, होज्जास्सिमि होज्जस्सामो, होज्जास्सामो,
होज्जस्सामु, होज्जास्सामु. होज्जस्साम, होज्जास्साम, होज्जस्सिमो, होज्जास्सिमो. होज्जस्सिमु, होज्जास्सिमु होज्जस्सिम, होज्जास्सिम होज्जहामो, होज्जाहामो, होज्जहामु, होज्जाहामु,
होज्जहाम, होज्जाहाम मध्यमपुरुष होज्जहिसि, होज्जाहिसि होज्जहिह, होज्जाहिह, होज्जहिसे, होज्जाहिसे होज्जहिध, होज्जाहिध
होज्जहित्था, होज्जाहित्था अन्यपुरुष होज्जहिइ, होज्जाहिइ. होज्जहिन्ति, होज्जाहिन्ति
होज्जहिए, होज्जाहिए, होज्जहिन्ते, होज्जाहिन्ते, होज्जस्सिदि, होज्जास्सिदि होज्जइरे, होज्जाइरे,
होज्जस्सिन्ति, होज्जास्सिन्ति होज्जस्सिन्ते, होज्जास्सिन्ते होज्जस्सिइरे, होज्जास्सिइरे
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37. क्रियातिपत्तेः 3/179
क्रियातिपत्तेः (क्रियातिपत्ति) 6/1 क्रियातिपत्ति (स्यत्, स्यत आदि) के स्थान पर (तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में
ज्ज, ज्जा प्रत्यय होते हैं)। क्रियातिपत्ति (यदि ऐसा होता तो ऐसा हो जाता) के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में ज्ज, ज्जा प्रत्ययों की प्राप्ति हो जाती है। {(स्यत् , स्यत आदि)→ज्ज, ज्जा}
क्रियातिपत्ति एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्यपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा
(सूत्र 3/159 से अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'ए' हुआ है) 38. न्त – माणौ' 3/180
(न्त)- (माण) 1/2} (क्रियातिपत्ति के स्थान पर) न्त और माण (होते हैं)। क्रियातिपत्ति के स्थान पर न्त और माण क्रिया में जुड़ते हैं। बेचरदास दोशी के अनुसार प्रथमा विभक्ति में इनका प्रयोग होता है। (स्यत्, स्यत आदि) → न्तो, माणो, न्तं, माणं, न्ती, माणी आदि) एकवचन
बहुवचन पुल्लिंग हसन्तो, हसमाणो, हसन्ता, हसमाणा नपुंसकलिंग हसन्तं, हसमाणं, हसन्ताई, हसमाणाई स्त्रीलिंग हसन्ती, हसमाणी, हसन्तीओ, हसमाणीओ,
हसन्ता, हसमाणा हसन्ताओ, हसमाणाओ हेमचन्द्र की वृत्ति – क्रियातिपत्तेः स्थाने न्तमाणौ आदेशो भवतः । होन्तो, होमाणो । अभविष्यदित्यर्थः।
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क्रियातिपत्ति
हस
एक वचन बहुवचन उत्तमपुरुष हसन्तो, हसन्ती हसन्ता, हसन्तीओ, मध्यमपुरुष हसन्तो, हसन्ती हसन्ता, हसन्तीओ, अन्यपुरुष हसन्तो, हसन्तं हसन्ता, हसन्ताई हसन्ती
हसन्तीओ इसी प्रकार हसमाण के रूप चलेंगे। 39. शत्रानशः 3/181
शत्रानशः (शत) + (आनशः)} {(शत) - (आनश्) 6/1} शतृ (अत्) और आनश् (आन या मान) के स्थान पर (न्त और माण) (होते हैं)। शतृ और आनश् (वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर न्त और माण होते हैं। इनमें संज्ञाओं के समान ही विभक्ति बोधक प्रत्ययों की संयोजना की जाती है। ये विशेषण की भांति कार्य करते हैं। {(अत्) → न्त, (आन या मान) → माण} (हस + न्त, माण) = हसन्त, हसमाण हँसता हुआ राजा = हसन्तो नरिन्दो (पुल्लिंग) खिलता हुआ कमल = विअसन्तं कमलं (नपुंसकलिंग)
हँसती हुई महिला = हसन्ता महिला (स्त्रीलिंग) 40. ई च स्त्रियाम् 3/182
ई (ई) 1/1 च = और स्त्रियाम् (स्त्री) 7/1 स्त्रीलिंग में (वर्तमान कृदन्त के प्रत्ययों के स्थान पर) ई और न्ता, माणा, न्ती माणी होते हैं।
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वर्तमान कृदन्त के प्रत्ययों के स्थान पर स्त्रीलिंग में ई और न्ता, माणा, न्ती,
माणी होते हैं ।
हँसती हुई
38
-
(सूत्र 3 / 32 के अनुसार स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' और 'आ' प्रत्ययों का प्रयोग होता है इसीलिए हसन्ती, हसमाणी, हसन्ता, हसमाणा रूप बने हैं ।) 41. क्त्वस्तुमत्तूण - तुआणा: 2 / 146
हंसन्ता, हसमाणा, हसई,
हसन्ती, हसमाणी
क्त्वस्तुमत्तूण – तुआणाः {क्त्वः) + (तुम्) + (अत्) + (तूण) - (तुआणाः) ] क्त्वः (क्त्वा) 6/1 {(तुम् ) – (अत्) - (तूण) – (तुआण) 1/3}
क्त्वा के स्थान पर तुं → उं, अत् → अ, तूण ऊण, तुआण उआण (होते हैं) ।
क्त्वा (संबंधक भूत कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर उं, अ. ऊण, उआण होते हैं ।
(हस + / उं)
हसिउं, हसे उं
(हस + अ )
हसिअ हसेअ
(हस + ऊण)
हसिऊण, हसेऊण, हसिऊणं, हसेऊणं
(हस + उआण)
हसिउआण, हसे उआण, हसिउआणं, हसे उआणं
नोट - सूत्र संख्या 3/157 से अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'इ' व 'ए' हुआ है एवं सूत्र 1/27 से ऊण व उआण प्रत्ययों पर विकल्प से अनुस्वार की प्राप्ति हुई है ।
=
-
=3
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शौरसेनी प्राकृत के क्रिया
42. इह होर्हस्य 4 / 268
हचोर्हस्य इह - ( ( हचो :) + (हस्य ) }
कृदन्त सूत्र
इह -
{(इह ) - (हच्) 6 / 2] हस्य (ह) 6/1
इह और हच् के ह का (विकल्प से ध हो जाता है) ।
इह (अव्यय) और हच् ह (वर्तमानकाल, मध्यम पुरुष, बहुवचन का प्रत्यय) केह का (शौरसेनी प्राकृत में) विकल्प से ध हो जाता है।
इह
इध (यहाँ पर)
हसह
हसघ (वर्तमानकाल, मध्यमपुरुष, बहुवचन)
43. क्त्व इय - दूणौ 4/271
क्त्व इय
दूणौ ( ( क्त्वः) + (इय) } - दूणौ
क्त्व: (क्त्वा ) 6/1 {(इय) - ( दूण) 1/2 }
क्त्वा →त्वा के स्थान पर (विकल्प से) इय और दूण (होते हैं) ।
क्त्वा →त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर (शौरसेनी प्राकृत में) विकल्प से इय और दूण होते हैं । वैकल्पिक पक्ष होने से त्ता प्रत्यय भी होता है।
( क्त्वा) इय, दूण, त्ता
(हस + इय, दूण,त्ता ) = हसिय, हसिदूण, हसित्ता (सं. कृ.)
44. दिरिचेचो : 4/273
दिरिचेचो : {(दिः) + (इच्) + (एचो : ) }
दिः (दि) 1/1 ((इच्) – (एच्) 6/2}
-
इच् → इ एच्→ ए के स्थान पर दि (की प्राप्ति होती है) ।
इ. ए (वर्तमान काल, अन्य पुरुष एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर शौरसेनी में 'दि' प्रत्यय की प्राप्ति होती है।
(हस + इ. ए) = (हस + दि) = हसदि (वर्तमानकाल, अन्यपुरुष, एकवचन)
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45. अतो देश्च 4/274 ,
अतो देश्च {(अतः) + (देः) + (च)} अतः (अत्) 5/1 दे: (दे) 1/1 च = और अकारान्त से परे (इ, ए के स्थान पर) दे और (दि होते हैं)। अकारान्त क्रियाओं से परे इ. ए (अन्य पुरुष एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर दि और दे होते हैं । अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त, ओकारान्त क्रियाओं में केवल 'दि' प्रत्यय की प्राप्ति होती है 'दे' की नहीं। (हस + इ. ए) = (हस + दे, दि)= हसदे, हसदि (वर्तमानकाल, अन्य पुरुष,
एकवचन) 46. भविष्यति स्सिः 4/275
भविष्यति (भविष्यत्) 7/1 स्सिः (स्सि) 1/1 (शौरसेनी प्राकृत में) भविष्यत्काल में (क्रिया में) स्सि (प्रत्यय जोड़ा जाता है फिर वर्तमानकाल के प्रत्यय जोड़े जाते हैं)। शौरसेनी प्राकृत में भविष्यत्काल में क्रिया में स्सि प्रत्यय जोड़ा जाता है। तत्पश्चात् वर्तमानकाल के पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते
(हस + स्सि + दि, दे) = हसिस्सिदि, हसिस्सिदे (भवि.अन्य
पुरुष, एकवचन) (हस + स्सि + न्ति, न्ते, इरे) = हसिस्सिन्ति, हसिस्सिन्ते,
हसिस्सिइरे (भवि, अ. ब.) (हस + स्सि + सि, से) = हसिस्सिसि, हसिस्सिसे (भवि. म.
एक.) . (हस + स्सि + ह, इत्था, ध) = हसिस्सिह, हसिस्सिइत्था,
हसिस्सिध (भवि. म. बहु.)
40
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(हस + स्सि + मि) (हस + स्सि + मो, मु, म)
=
हसिस्सिमि (भवि. उ. एक.) हसिस्सिमो, हसिस्सिमु, हसिस्सिम (भवि. उ. बहु.)
अपभ्रंश के क्रिया-कृदन्त सूत्र - 47. त्यादेराद्य-त्रयस्य बहुत्वे हिं न वा 4/382
त्यादेराद्य - त्रयस्य बहुत्वे हिं न वा (ति) + (आदेः) + (आद्य) - (त्रयस्य)} (ति) - (आदि) 6/1} आद्यत्रयस्य (आद्यत्रय) 6/1 बहुत्वे (बहुत्व) 7/1 हिं (हिं) 1/1 न वा = विकल्प से ति आदि के स्थान पर तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष के बहुवचन में (अन्ति,
अन्ते प्रत्ययों के स्थान पर) विकल्प से हिं (होता है)। . वर्तमानकाल में ति आदि के स्थान पर तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष (अन्य
पुरुष) के बहुवचन में अन्ति, अन्ते प्रत्ययों के स्थान पर विकल्प से हिं होता है। {(अन्ति, अन्ते) → हिं} (हस + हिं) = हसहिं (वर्तमानकाल, प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष) बहुवचन)
वैकल्पिक पक्ष - हसन्ति, हसन्ते, हसिरे (सूत्र – 3/142) 48. मध्य-त्रयस्याद्यस्य हि: 4/383
मध्य-त्रयस्याद्यस्य हिः (मध्य)-(त्रयस्य) + (आद्यस्य)} हिः {(मध्य) - (त्रय) 6/1} आद्यस्य (आद्य) 6/1 हि: (हि) 1/1 तीन पुरुषों में से मध्यम पुरुष के एकवचन के (प्रत्यय सि आदि के) स्थान पर हि (होता है)।
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वर्तमानकाल में तीन पुरुषों में से मध्यम पुरुष के एकवचन के प्रत्यय (सि
आदि) के स्थान पर हि होता है । (सि आदि)
(हस + हि) = हसहि (वर्तमानकाल, मध्यमपुरुष, एकवचन) वैकल्पिक पक्ष - हससि, हससे ( सूत्र - 3 / 140 )
49. बहुत्वे हु: 4/ 384
42
हि}
बहुत्वे (बहुत्व) 7/1 'हु: (हु) 1 /1
(तीन पुरुषों में से ) ( मध्यमपुरुष के ) बहुवचन में (विकल्प से) हु (होता है) । वर्तमान काल में तीन पुरुषों में से (मध्यमपुरुष के) बहुवचन में विकल्प से हु होता है ।
वर्तमान काल में तीन पुरुषों में से मध्यमपुरुष के बहुवचन में (थ, ध्वे के स्थान पर) विकल्प से हु होता है । (थ, ध्वे) → हु}
( हस + हु) = हसहु ( वर्तमानकाल, मध्यमपुरुष, बहुवचन) वैकल्पिक पक्ष हसह, हसित्था (सूत्र - 3 / 143)
50. अन्त्य
त्रयस्याद्यस्य उं 4/385
→
अन्त्य
त्रयस्याद्यस्य उं [(अन्त्य) - ( त्रयस्य) + (आद्यस्य)] उं ((अन्त्य) - (त्रय) 6/1] आद्यस्य (आद्य) 6/1 उं (उं) 1/1
(तीन पुरुषों में से ) अन्तिम तीसरे पुरुष के एकवचन के (प्रत्यय के) स्थान पर (विकल्प से) उं (होता है) ।
तीन पुरुषों में से अन्तिम तीसरे पुरुष के (उत्तम पुरुष) के एकवचन के (मि, इ) प्रत्ययों के स्थान पर विकल्प से उं (होता है)। {(मि., इ) → उं
(हस + उं) = हसउं (वर्तमानकाल, उत्तमपुरुष, एकवचन)
वैकल्पिक पक्ष - हसमि, हसामि, हसेमि । ( सूत्र - 3 / 141, 3 / 154, 3/158)
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51. बहुत्वे हुं 4/386
बहुत्त्वे (बहुत्व) 7/1 हुं (हुं)1/1 (तीन पुरुषों में से) (उत्तमपुरुष के) बहुवचन में (विकल्प से) हुं (होता है)। तीन पुरुषों में से उत्तम पुरुष के बहुवचन के प्रत्यय (मः, महे) के स्थान पर विकल्प से हुं (होता है)। (मः, महे) → हुं} (हस + हुं) = हसहं (वर्तमानकाल, उत्तमपुरुष, बहुवचन)
वैकल्पिक पक्ष - हसमो, हसमु, हसम। (सूत्र - 3/144) 52. हि - स्वयोरिदुदेत् 4/387
हि - स्वयोरिदुदेत् (स्वयोः) + (इत्) + (उत्) + (एत)} (हि) - (स्व) 6/2} इत् (इत्) 1/1 उत् (उत्) 1/1 एत् (एत्) 1/1 (विधि एवं आज्ञा के) (मध्यमपुरुष एकवचन के) हि और स्व (प्रत्ययों) के स्थान पर (विकल्प से ) इत् -→ इ, उत् → उ, एत् → ए (होते हैं)। विधि एवं आज्ञा में मध्यमपुरुष एकवचन में हि और स्व प्रत्ययों के स्थान पर विकल्प से इ, उ और ए होते हैं। (हि, स्व) → इ.उ, ए} (हस + हि, स्व) = (हस + इ, उ, ए) = हसि, हसु, हसे (विधि एवं आज्ञा, मध्यमपुरुष, एकवचन)
वैकल्पिक पक्ष – हसहि, हससु, हस । (सूत्र - 3/173,174) 53. वत्सर्यति-स्यस्य सः 4/388
वत्सर्यति (वत्सर्यत्) 7/1 स्यस्य (स्य) 6/1 सः (स) 1/1 भविष्यत्काल में स्य (भविष्यत्काल के प्रत्यय) के स्थान पर विकल्प से स होता है। (तत्पश्चात् वर्तमानकाल के पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं)। {(स्य) → स} और अकारान्त क्रिया के अन्त्य अ का इ और ए हो जाता है। (सूत्र-3/157)
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(हस+स+इ, ए) = हसिसइ, हसेसइ, हसिसए, हसेसए .
(भविष्यत्काल, अन्य पुरुष, एकवचन) (हस + स + हिं) = हसिसहिं, हसेसहिं (भविष्यत्काल, अन्यपुरुष
बहुवचन) (हस + स + हि) = . हसिसहि, हसेसहि (भविष्यत्काल, मध्यमपुरुष
एकवचन) (हस + स + हु) = हसिसहु, हसेसहु (भविष्यत्काल, मध्यमपुरुष,
बहुवचन) (हस + स + उं) = हसिसउं, हसेस (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष
एकवचन) (हस + स + हुं) = हसिसहुं, हसेसहुँ (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष,
बहुवचन) वैकल्पिक पक्ष- हसिहिइ, हसिहिए, हसेहिइ, हसेहिए. (भवि.अ. पु. एक)
हसिहिन्ति, हसिहिन्ते, हसिहिइरे हसेहिन्ति, हसे हिन्ते, हसेहिइरे (भवि. अ. पु. बहु.) हसिहिसि, हसिहिसे, हसे हिसि, हसेहिसे (भवि. म.पु एक.) हसिहिह, हसिहित्था, हसे हिह, हसे हित्था (भवि. म.पु.बहु.) हसिहिमि, हसेहिमि (भवि. उ. पु. एक.) हसिहिमो, हसिहिमु, हसिहिम, हसे हिमो, हसे हिमु, हसे हिम (भवि. उ.पु.बहु.)
(सूत्र-3/157) 54. तव्यस्य इएव्वउं एव्वउं एवा 4/438
तव्यस्य (तव्य)6/1 इएव्वउं (इएव्वउं)1/1 एव्वउं (एव्वउं)1/1 एवा (एवा)1/1 तव्य के स्थान पर इएव्वउं, एव्वउं और एवा होते हैं।
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तव्य (चाहिए अर्थ) के स्थान पर इएव्वउं, एव्वउं और एवा होते हैं। (तव्य) → इएव्वउं. एव्वउं, एवा}
(कर + इएव्वउं. एव्वउं, एवा) = करिएव्वउं, करेव्वउ, करेवा (विधि कृदन्त) 55. क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः 4/439
क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः (क्त्वः) + (इ)} क्त्वः (क्त्वा) 6/1 (इ) - (इउ)-(इवि)-(अवि) 1/3} क्त्वा के स्थान पर इ. इउ, इवि, अवि (होते हैं)। क्त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर इ. इउ, इवि और अवि होते हैं। {(क्त्वा ) → इ. इउ, इवि, अवि)
(कर + इ. इउ, इवि, अवि) - करि, करिउ, करिवि, करवि (संबंधक कृदन्त) 56. एप्प्येप्पिण्वेव्येविणवः 4/440
एप्प्येप्पिण्वेव्येविणवः {(एप्पि) + (एप्पिणु) + (एवि) + (एविणवः)} {(एप्पि) - (एप्पिणु) - (एवि) - (एविणु) 1/3] (क्त्वा के स्थान पर) एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु (होते हैं)। क्त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर एप्पि, एप्पिणु, एवि और एविणु होते हैं । (क्त्वा) → एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु} (कर + एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु) = करेप्पि, करेप्पिणु, करेवि, करेविणु
(संबंधक कृदन्त) 57. तुम एवमणाणहमणहिं च 4/441
तुम एवमणाणहमणहिं च (तुमः) + (एवम्) + (अण) + (अणहम्) + (अणहिं)}च
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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तुमः (तुम्) 6/1 एवम् (एवम्) 1/1 अण (अण) 1/1 अणहम् (अणहम्) 1/1 अणहिं (अणहिं) 1/1 च = और तुम् → तुं के स्थान पर एवं, अण, अणहं, अणहिं और (एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु होते हैं) तुं (हेत्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर एवं, अण, अणहं. अणहिं और एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु होते हैं। (तुं) → एवं, अण, अणहं, अणहिं, एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु (कर + एवं, अण, अणहं, अणहिं, एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु)
करेवं, करण, करणह, करणहि. करेप्पि, करे प्पिणु,
करेवि, करेविणु (हेत्वर्थक कृदन्त) 58. गमेरेप्पिण्वेप्प्योरेलुंग वा 4/442 , गमेरे प्पिण्वेप्प्योरेलुंग वा (गमेः) + (एप्पिणु) + (एप्प्योः) + (ए:) + (लुक)+ .. (वा)} गमेः (गमि) 5/1 (एप्पिणु) – (एप्पि) 7/2 } ए: (ए) 6/1 लुक् (लुक्) 1/1 वा= विकल्प से गमि -→ गम्' धातु से परे एप्पिणु, एप्पि प्रत्यय होने पर विकल्प से (प्रत्ययों के आदि स्वर) ए का लोप होता है। गमि → गम् से परे एप्पिणु, एप्पि प्रत्यय होने पर विकल्प से इन प्रत्ययों के (आदि स्वर) ए का लोप हो जाता है। गम् + एप्पिणु = गम्पिणु, गमेप्पिणु
गम् + एप्पि = गम्पि, गमेप्पि (संबंधक कृदन्त) 1. गमि→गम् के लिए देखें, संस्कृत अंग्रेजी कोश, मोनियर विलियम, पृष्ठ-348।
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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59. स्वरादनतो वा 4/240
स्वरादनतो वा (स्वरात्) + (अन्) + (अतः) + (वा)} स्वरात् (स्वर) 5/1 अन् (अ) = नहीं अतः (अत्) 5/1 वा- विकल्प से स्वर से परे (धातु के अन्त में) विकल्प से (अ, विकरण लगता है') अकारान्त से परे नहीं। अकारान्त को छोड़कर अन्य स्वरवाली (धातु) से परे अन्त में विकल्प से विकरण 'अ लगता है। जैसे- ठा → ठाइ या ठाअइ
झा → झाइ या झाअइ नोट - 1. पूर्व सूत्रानुसार (4/239) व्यञ्जनान्त धातुओं के अन्त में 'अ' विकरण लगता है।
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एकवचन
उत्तम पुरुष हसमि (3/141),
हसामि (3/154).
हसेमि (3/158), हसं (3/141 की वृत्ति), हसेज्ज, हसेज्जा
पाठ 2
प्राकृत के क्रियारूप वर्तमान काल
अकारान्त क्रिया (हस )
(3/177,3/159)
मध्यम पुरुष हससि, हससे (3/140), हसेस, हसेसे (3/158), हसेज्ज, हसेज्जा (3/177,3/159)
अन्य पुरुष हसइ, हसए (3/139), हसदि, हसदे
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(4/273, 4/274), हसेइ, हसेदि (3/158). हसेज्ज, हसेज्जा
(3/177,3/159)
बहुवचन हसमो, हसमु, हसम, (3/144) हसामो, हसामु, हसाम,
हसिमो, हसिमु, हसिम (3/155). हसेमो, हसेमु, हसेम (3/158), हसेज्ज, हसेज्जा
(3/177,3/159),
हसह, हसित्था, हसध
(3/143, 4/268),
हसेह, हसेइत्था, हसेध (3/158), हसेज्ज, हसेज्जा
(3/177,3/159),
हसन्ति, हसन्ते, हसिरे (3/142), हसेन्ति, हसेन्ते, हसेइरे (3/158). हसेज्ज, हसेज्जा (3/177,3/159)
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वर्तमानकाल
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एक वचन
बहुवचन
उत्तम पुरुष मि (3/141,3/154,3/158), मो, मु, म (3/144,3/155,3/158).
- (3/141 की वृत्ति), ज्ज, ज्जा (3/177,3/159) ज्ज, ज्जा (3/177,3/159)
मध्यम पुरुष सि, से (3/140, 3/158)
ज्ज, ज्जा (3/177, 159)
ह, इत्था , ध (3/143,3/158,4/268), ज्ज, ज्जा, (3/177, 159).
अन्य पुरुष इ, ए (3/139)
दि, दे (4/273, 4/274, 3/158), ज्ज, ज्जा (3/177,3/159)
न्ति, न्ते, इरे (3/142,3/158), ज्ज, ज्जा (3/177, 159)
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. वर्तमान आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो) एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष ठामि (3/141).
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177, 1/84). ठाज्जमि,ठाज्जामि
(3/178, 3/141, 1/84) मध्यमपुरुष ठासि (3/140).
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177). ठाज्जसि, ठाज्जसे ठाज्जासि, ठाज्जासे (3/178, 3/140)
ठामो, ठामु, ठाम (3/144), ठाज्ज, ठाज्जा (3/177). ठाज्जमो, ठाज्जमु, ठाज्जम ठाज्जामो, ठाज्जामु, ठाज्जाम (3/178, 3/144) ठाह, ठाइत्था, ठाध (3/143,4/268) ठाज्ज, ठाज्जा (3/377) ठाज्जह, ठाज्जइत्था, ठाज्जध, ठाज्जाह, ठाज्जाइत्था, ठाज्जाध (3/178,3/143.4/268)
अन्यपुरुष ठाइ, ठादि (3/139,4/273). ठन्ति, ठन्ते, ठाइरे (3/142,1/84).
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177). ठाज्ज, ठाज्जा (3/177). ठाज्जइ, ठाज्जए
ठाज्जन्ति, ठाज्जन्ते, ठाज्जइरे, ठाज्जाइ,ठाज्जाए ठाज्जान्ति, ठाज्जान्ते, ठाज्जाइरे
(3/178,3/139) (3/178, 3/142) नोट- सूत्र 1/84 के अनुसार संयुक्ताक्षर से पूर्व दीर्घ स्वर हो तो वह हृस्व हो
जाता है । ठाज्ज→ ठज्ज, ठाज्जा → ठज्जा । इसी प्रकार अन्य रूप बना लेने चाहिए। इसके अतिरिक्त आकारान्त, ओकारान्त धातुओं को बिना हस्व किये अर्थात् 'अ' विकरण लगाकर भी रूप बनाये जा सकते हैं । जैसे-ठाअज्ज (देखें सूत्र - 4/240)
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वर्तमानकाल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष मि (3/141).
ज्ज, ज्जा, (3/177), ज्जमि, ज्जामि (3/178)
मो, मु, म (3/144), ज्ज, ज्जा (3/177), ज्जमो, ज्जमु. ज्जम. ज्जामो, ज्जामु. ज्जाम (3/178)
मध्यमपुरुष सि (3/140),
ज्ज, ज्जा (3/177), ज्जसि, ज्जसे ज्जासि, ज्जासे (3/178)
ह, इत्था, ध (3/143. 4/268). ज्ज, ज्जा (3/177) ज्जह, ज्जइत्था, ज्जध, ज्जाह.. ज्जाइत्था, ज्जाध, (3/178, 3/143,4/268)
अन्यपुरुष इ,दि (3/139,4/273),
ज्ज, ज्जा (3/177). ज्जइ, ज्जए ज्जाइ, ज्जाए (3/178: 3/139)
न्ति, न्ते, इरे (3/142). ज्ज, ज्जा (3/177). ज्जन्ति, ज्जन्ते, ज्जइरे, ज्जान्ति, ज्जान्ते; ज्जाइरे (3/178,3/142)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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विधि एवं आज्ञा . अकारान्त क्रिया (हस)
एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष हसमु (3/173),
हसेमु (3/158), हसेज्ज, हसेज्जा (3/177,3/159) हसेज्जइ, हसेज्जाइ (3/165; 3/159)
हसमो (3/176), हसेमो (3/158). हसेज्ज, हसेज्जा (3/177,3/159). हसेज्जइ, हसेज्जाइ (3/165,3/159)
मध्यमपुरुष हससु (3/173). हसह (3/176). हसहि(3/174).
हसेह (3/158). हसेसु, हसेहि (3/158) हसेज्ज, हसेज्जा, हसेज्जसु, हसेज्जहि, हसेज्जे, (3/177,3/159) हस (3/175).
हसेज्जइ, हसेज्जाइ हसेज्ज, हसेज्जा
(3/165,3/159) (3/177,3/159) हसेज्जइ, हसेज्जाइ (3/165, 3/159)
अन्यपुरुष हसउ (3/173),
हसेउ (3/158), हसेज्ज, हसेज्जा (3/177,3/159) हसेज्जइ, हसेज्जाइ (3/165, 3/159)
हसन्तु (3/176), हसेन्तु (3/158) हसेज्ज, हसेज्जा (3/177,3/159) हसेज्जइ, हसेज्जाइ (3/165.3/159)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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विधि एवं आज्ञा अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन
एकवचन
उत्तमपुरुष मु (3/173.3/158), मो (3/176,3/158).
ज्ज, ज्जा (3/177,3/159). ज्ज, ज्जा (3/177,3/159), ज्जइ, ज्जाइ
ज्जइ, ज्जाइ (3/165, 3/159) (3/165,3/159).
मध्यमपुरुष सु,हि (3/173,3/174, ह (3/176. 3/158). 3/158).
ज्ज, ज्जा, (3/177,3/159) इज्जसु, इज्जहि, इज्जे, '0' ज्जइ, ज्जाइ (3/165, 3/159) (शून्य प्रत्यय) (3/175).
ज, ज्जा (3/177,3/159). . ज्जइ. ज्जाइ (3/165, 3/159)
अन्यपुरुष उ (3/173, 3/158), न्तु (3/176,3/158),
ज्ज, ज्जा (3/177,3/159). ज्ज, ज्जा (3/177,3/159), ज्जइ, ज्जाइ
ज्जइ, ज्जाइ (3/165. 3/159) (3/165, 3/159)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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विधि एवं आज्ञा
आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो)
बहुवचन
एकवचन
उत्तमपुरुष ठामु (3/173).
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177),
54
ठाज्जमु, ठाज्जामु
(3/178, 3/173), ठाज्जइ, ठाज्जाइ (3/165)
मध्यमपुरुष ठासु, ठाहि (3/173,3/174). ठाह (3/176).
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177),
ठाज्जसु, ठाज्जासु, ठाज्जहि ठाज्जाहि
(3/178,3/173,3/174). ठाज्जइ, ठाज्जाइ (3/165),
अन्यपुरुष ठाउ (3/173),
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जउ, ठाज्जाउ (3/178), ठाज्जइ, ठाज्जाइ (3/165)
ठामो (3/176),
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जमो, ठाज्जामो
(3/178,3/176).
ठाज्जइ, ठाज्जाइ (3/165)
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जह, ठाज्जाह f
(3/178,3/176) ठाज्जइ, ठाज्जाइ (3/165)
नोट- सूत्र 1/84 के अनुसार संयुक्ताक्षार से पूर्व दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो
→
ठज्जमु, ठाज्जामु
ठज्जामु । इसी प्रकार अन्य
जाता है। ठाज्ज रूप बना लेने चाहिए ।
ठान्तु ठन्तु ( 3 / 176). ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जन्तु, ठाज्जान्तु (3/178). ठाज्जइ, ठाज्जाइ (3/165)
प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश रचना सौरभ
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विधि एवं आज्ञा आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष मु (3/173).
ज्ज, ज्जा (3/177). ज्जमु, ज्जामु (3/178,3/173) ज्जइ. ज्जाइ (3/165)
मो (3/176). ज्ज, ज्जा (3/177). ज्जमो, ज्जामो (3/178.3/176 ज्जइ. ज्जाइ (3/165)
मध्यमपुरुष सु. हि (3/173,3/174). ह (3/176),
ज्ज, ज्जा (3/177), ज्ज, ज्जा (3/177), ज्जसु. ज्जासु, ज्जहि, ज्जाहि ज्जह, ज्जाह (3/178.3/176). (3/178.3/173,3/174). ज्जइ, ज्जाइ (3/165) ज्जइ, ज्जाइ (3/165)
अन्यपुरुष उ (3/173).
ज्ज, ज्जा (3/177). ज्जउ, ज्जाउ (3/178). ज्जइ, ज्जाइ (3/165)
न्तु (3/176), ज्ज, ज्जा (3/177), ज्जन्तु, ज्जान्तु (3/178), ज्जइ, ज्जाइ (3/165)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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भूतकाल
अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसीअ (3/163) हसीअ (3/163) मध्यमपुरुष हसीअ (3/163) हसीअ (3/163) अन्यपुरुष हसीअ (3/163) हसीअ (3/163)
भूतकाल
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष ईअ (3/163)
ईअ (3/163) मध्यमपुरुष ईअ (3/163)
ईअ (3/163) अन्यपुरुष ईअ (3/163)
ईअ (3/163)
भूतकाल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ (3/162) ठासी, ठाही, ठाहीअ (3/162) मध्यमपुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ (3/162) ठासी, ठाही, ठाहीअ (3/162) अन्यपुरुष ठासी, ठाही, ठाहीअ (3/162) ठासी, ठाही, ठाहीअ (3/162)
भूतकाल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन उत्तमपुरुष सी, ही, हीअ (3/162) मध्यमपुरुष सी, ही, हीअ (3/162) अन्यपुरुष सी, ही, हीअ (3/162)
बहुवचन सी, ही, हीअ (3/162) सी, ही, हीअ (3/162) सी, ही, हीअ (3/162)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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भविष्यत्काल
अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसिहिमि, हसिस्सामि, हसिहिमो, हसिहिमु, हसिहिम, हसिहामि
हसेहिमो, हसेहिमु, हसेहिम (3/166,3/167,3/141), (3/166,3/157,3/144). हसेहिमि, हसेहामि, हसिरसामो, हसिस्सामु, हसिस्साम, हसेस्सामि, (3/157). हसेस्सामो, हसेस्सामु, हसेरसाम, हसिस्सिमि (4/275) हसिहामो, हसिहामु, हसिहाम, हसिस्सं, हसेस्सं
हसेहामो, हसेहामु, हसेहाम (3/169,3/157) (3/167,3/157,3/144)
हसिस्सिमो, हसिस्सिमु, हसिस्सिम (4/275). हंसिहिस्सा, हसिहित्था, हसेहिस्सा, हसेहित्था (3/168, 3/157).
मध्यमपुरुष हसिहिसि, हसिहिसे, हसेहिसि, हसिहिह, हसिहित्था, हसेहिह, हसेहिसे
हसेहित्था (3/166,3/157.3/140). (3/166,3/157,3/143) हसिस्सिसि, हसिस्सिसे हसिस्सिध, हसिस्सिइत्था,
हसिस्सिह (4/275)
(4/275,4/268) अन्यपुरुष हसिहिइ, हसिहिए,हसेहिइ, हसिहिन्ति,हसिहिन्ते,हसिहिइरे, हसेहिए
हसेहिन्ति, हसेहिन्ते, हसेहिइरे (3/166,3/157,3/139) (3/166,3/157,3/142) हसिस्सिदि, हसिस्सिदे हसिस्सिन्ति, हसिस्सिन्ते, (4/275,4/273) हसिस्सिइरे (4/275)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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भविष्यत्काल अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
बहुवचन
एकवचन
उत्तमपुरुष हिमि, स्सामि, हामि
(3/166,3/167.3/157. 3/141), स्सिमि (4/275), स्सं (3/169, 3/157) (पूर्ण प्रत्यय)
हिमो,हिमु, हिम, स्सामो, स्सामु.स्साम. हामो, हामु, हाम (3/166,3/167,3/157.3/144). स्सिमो, स्सिमु, स्सिम (4/275). हिस्सा, हित्था (3/168,3/157) (पूर्ण प्रत्यय)
मध्यमपुरुष हिसि, हिसे
(3/166.3/157,3/140), स्सिसि, स्सिसे (4/275)
हिह, हित्था (3/166,3/157,3/143), स्सिध, स्सिइत्था, स्सिह (4/268,4/275)
.
+/
अन्यपुरुष हिइ. हिए
(3/166,3/157,3/139), स्सिदि, स्सिदे (4/275,4/273)
हिन्ति, हिन्ते, हिइरे (3/166, 3/157,3/142). स्सिन्ति, स्सिन्ते, स्सिइरे (4/275)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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भविष्यत्काल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो)
एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष ठाहिमि (3/166,3/141). ठाहिमो, ठाहिमु, ताहिम ठास्सामि,ठाहामि
(3/166, 3/144). (3/167,3/141). ठास्सामो, ठास्सामु, ठास्साम, ठास्सिमि(4/275). ठाहामो, ठाहामु, ठाहाम ठास्सं (3/169). (3/167, 3/144) ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठास्सिमो, ठास्सिमु, ठास्सिम ठाज्जहिमि,ठाज्जाहिमि, (4/275), ठाज्जस्सामि, ठाज्जास्सामि, ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जहामि, ठाज्जाहामि, ठाज्जहिमो,ठाज्जहिमु, ठाउजहिम, ठाज्जस्सिमि.ठाज्जास्सिमि ठाज्जाहिमो,ठाज्जाहिम (3/178)
ठाज्जाहिम, ठाज्जस्सामो, ठाज्जस्सामु ठाज्जस्साम, ठाज्जास्सामो, ठाज्जास्सामु. ठाज्जास्साम, ठाज्जहामो,ठाज्जहामु, ठाज्जहाम, ठाज्जाहामो,ठाज्जाहामु, ठाज्जाहाम, ठाज्जस्सिमो,ठाज्जस्सिमु. ठाज्जस्सिम, ठाज्जास्सिमो,ठाज्जास्सिमु. ठाज्जास्सिम (3/178),
ठाहिस्सा, ठाहित्था (3/168) नोट- सूत्र 1/84 के अनुसार संयुक्ताक्षार से पूर्व दीर्घ स्वर हो तो वह हृस्व हो
जाता है । ठाज्जहिमि → ठज्जहिमि । इसी प्रकार अन्य रूप बना लेने चाहिए।
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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मध्यमपुरुष ठाहिसि (3/177,3/140), ठारिससि (4/275),
ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जहिसि ठाज्जाहिसि, ठाज्जहिसे, ठाज्जाहिसे, (3/178).
ठाज्जरिससि, ठाज्जास्सिसि, ठाज्जस्सिसे, ठाज्जास्सिसे
(4/275)
अन्यपुरुष ठाहिइ (3/166,3/139),
ठाहिदि (3/166,4/273). ठास्सिदि (4/275,4/273), ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जहिइ, ठाज्जाहिंइ, ठाज्जहिए, ठाज्जाहिए, ठाज्जस्सिदि, ठाज्जास्सिदि (3/178)
60
ठाहिह, ठाहित्था (3/166,3/143), ठाहिध (3/166, 4/268). ठारिसह, ठास्सिइत्था, ठारिसध (4/275, 3/143,4/268)
ठाज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जहिह, ठाज्जाहिह, ठाज्जहित्था, ठाज्जाहित्था, ठाज्जस्सिध, ठाज्जास्सिध (3/178)
ठाहिन्ति, ठाहिन्ते, ठाहिरे या
ठाहिइरे (3/166,3/142), ठास्सिन्ति, ठास्सिन्ते, ठास्सिइरे (4/275, 3/142). ठाज्ज, ठाज्जा (3/177), ठाज्जहिन्ति, ठाज्जाहिन्ति,. ठाज्जहिन्ते, ठाज्जाहिन्ते, ठाज्जहिइरे, ठाज्जाहिइरे, ठाज्जस्सिन्ति, ठाज्जास्सिन्ति, ठाज्जस्सिन्ते, ठाज्जास्सिन्ते,
ठाज्जस्सिइरे, ठाज्जास्सिइरे
(3/178)
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
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भविष्यत्काल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) . एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हिमि,स्सामि, हामि हिमो, हिमु, हिम (3/166,3/144),
(3/166,3/167,3/141). स्सामो, स्सामु, स्साम, हामो, हामु, स्सिमि (4/275). 'हाम (3/167,3/144), स्सं (3/169).
स्सिमो, स्सिमु, स्सिम (4/275), ज्ज, ज्जा (3/177). ज्ज, ज्जा (3/177), ज्जहिमि, ज्जाहिमि, ज्जहिमो, ज्जाहिमो, ज्जस्सामि, ज्जास्सामि, ज्जहिम्, ज्जाहिम, ज्जहामि, ज्जाहामि, ज्जहिम,ज्जाहिम, ज्जस्सिमि, ज्जास्सिमि ज्जस्सामो, ज्जास्सामो, (3/178)
ज्जस्सामु, ज्जास्सामु. ज्जस्साम, ज्जास्साम, ज्जहामो, ज्जाहामो, ज्जहामु, ज्जाहामु. ज्जहाम, ज्जाहाम, ज्जस्सिमो, ज्जास्सिमो, ज्जस्सिमु, ज्जास्सिमु, ज्जस्सिम, ज्जास्सिम (3/178)
हिस्सा, हित्था (3/168) मध्यमपुरुष हिसि (3/177,3/140), हिह, हित्था (3/166, 3/143).
स्सिसि (4/275), हिध (3/166,4/268) ज्ज, ज्जा (3/177), स्सिह, स्सिइत्था, स्सिध ज्जहिसि, ज्जाहिसि (3/178). (4/275,3/143,4/268) ज्जस्सिसि, ज्जास्सिसि, ज्ज, ज्जा (3/177). ज्जस्सिसे, ज्जास्सिसे ज्जहिह, ज्जाहिह, (4/275)
ज्जहित्था,ज्जाहित्था,
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ज्जस्सिध, ज्जास्सिध (3/178) अन्यपुरुष हिइ (3/166, 3/139), हिन्ति, हिन्ते, हिरे या हिइरे
हिदि (3/166,4/273), (3/166,3/142). स्सिदि (4/275,4/273), स्सिन्ति, स्सिन्ते, स्सिइरे ज्ज, ज्जा (3/177). (4/275,3/142). ज्जहिइ. ज्जाहिइ, ठाज्ज, ठाज्जा (3/177). ज्जहिए, ज्जाहिए ज्जहिन्ति, ज्जाहिन्ति, ज्जस्सिदि, ज्जास्सिदि ज्जहिन्ते, ज्जाहिन्ते (3/178)
ज्जहिइरे, ज्जाहिइरे, ज्जस्सिन्ति, ज्जास्सिन्ति, ज्जस्सिन्ते,ज्जास्सिन्ते,
ज्जस्सिइरे, ज्जास्सिइरे. (3/178) क्रियातिपत्ति अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त क्रिया एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसेज्ज,हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा (3/179,3/159) (3/179.3/159)
हसन्त, हसमाण (3/180) - हसन्त, हसमाण (3/180) मध्यमपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा
हसेज्ज, हसेज्जा (3/179,3/159)
(3/179,3/159) हसन्त, हसमाण-(3/180) हसन्त, हसमाण (3/180) अन्यपुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा
(3/179,3/159) (3/179,3/159) हसन्त, हसमाण (3/180) हसन्त, हसमाण (3/180)
प्रौट प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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क्रियातिपत्ति अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष ज्ज, ज्जा (3/179,3/159) ज्ज, ज्जा (3/179,3/159)
___न्त, माण (3/180) न्त, माण (3/180) .
मध्यमपुरुष ज्ज, ज्जा (3/179,3/159) ज्ज, ज्जा (3/179,3/159)
न्त, माण (3/180) न्त, माण (3/180
अन्यपुरुष ज्ज, ज्जा (3/179, 3/159) ज्ज, ज्जा (3/179.3/159)
न्त, माण (3/180) न्त, माण (3/180)
अपभ्रंश के क्रियारूप
वर्तमानकाल अकारान्त क्रिया- (हस)
एकवचन
बहुवचन
हसहं (4/386), हसमो, हसमु, हसम (3/144)
उत्तमपुरुष हसउं (4/385). .. हसमि, हसामि, हसेमि
(3/141,3/154, 3/158) मध्यमपुरुष हसहि (4/383).
हससि, हससे (3/140) अन्यपुरुष हसइ, हसए (3/139).
हसेइ (3/158)
हसहु (4/384). हसह, हसित्था (3/143) हसहिं (4/382) हसन्ति, हसन्ते, हसिरे (3/142)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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वर्तमानकाल
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष उं (4/385).
हुं (4/386), मि (3/141, 3/154/3/158) मो, मु, म (3/144) मध्यमपुरुष हि (4/384).
हु (4/384), सि, से (3/140). ह, इत्था (3/143) अन्यपुरुष इ. ए (3/139,3/158) हिं (4/382),
न्ति, न्ते, इरे (3/142) वर्तमानकाल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो) एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष ठाउं (4/385).
ठामि (3/141)
ठाहुं (4/386), ठामो, ठामु, ठाम (3/144)
मध्यमपुरुष ठाहि (4/384).
ठासि (3/140)
ठाहु (4/384). ठाह, ठाइत्था (3/143)
अन्यपुरुष ठाइ (3/139)
ठाहिं (4/382) ठान्ति→ठन्ति,ठान्ते→ठन्ते, ठाइरे (3/142)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
64 .
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वर्तमानकाल आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष उं (4/385).
हुं (4/386). मि (3/141)
मो, मु, म (3/144) मध्यमपुरुष हि (4/384).
हु (4/384), ह, इत्था (3/143) सि (3/140) अन्यपुरुष इ (3/139)
हिं (4/382), न्ति, न्ते, इरे (3/142) विधि एवं आज्ञा
अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसमु (3/173), हसमो (3/176), हसेमु (3/158)
हसेमो (3/158) मध्यमपुरुष हसि, हसु, हसे (4/387), हसह (3/176), हसेह (3/158)
हसहि,हससु, हस (3/173-174) अन्यपुरुष हसउ (3/173). हसन्तु (3/176). हसेउ (3/158) हसेन्तु (3/158)
विधि एवं आज्ञा अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष मु (3/173)
मो (3/176, 3/158) मध्यमपुरुष इ, उ, ए (4/387), ह (3/176, 3/158)
हि, सु, 'शून्य' (3/173-174) अन्यपुरुष उ (3/173, 3/158) न्तु (3/176, 3/158)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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विधि एवं आज्ञा आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो) एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष ठामु (3/173)
ठामो (3/176)
ठाह (3/176)
मध्यमपुरुष ठाइ, ठाए, ठाउ (4/387),
ठाहि, ठासु (3/173-174)
अन्यपुरुष ठाउ (3/173)
ठान्तु → ठन्तु (3/176).
विधि एवं आज्ञा आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
बहुवचन
उत्तमपुरुष मु (3/173)
मो (3/176)
मध्यमपुरुष इ, ए, उ (4/387),
हि,सु (3/173-174)
ह (3/176)
अन्यपुरुष उ (3/173)
न्तु (3/176)
प्रौढ प्राकृत--अपभ्रंश रचना सौर
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भविष्यत्काल अकारान्त क्रिया (हस )
एकवचन
उत्तमपुरुष हसिसउं, हसेसउं (4/388 )
हसिहिमि, हसेहिमि (3/157)
बहुवचन हसिसहुं, हसेसहुं (4/388), हसिहिमो, हसिहिमु, हसिहिम, हसे हिमो, हसेहिमु, हसे हिम (3/157)
मध्यमपुरुष हसिसहि, हसेसहि (4/388 ), हसिसहु, हसेसहु (3/388), हसिहिसि, हसिहिसे, हसेहिसि, हसिहिह, हसिहित्था,
हसेहिसे (3/157)
अन्यपुरुष हसिसइ, हसेसइ, हसिसए,
हसेस (4/388), हसिहिइ, हसिहिए, हसेहिइ, हसेहिए (3/157)
एकवचन उत्तमपुरुष सउं (4/388),
feft (3/157)
मध्यमपुरुष सहि (4/388),
हिसि, हिसे (3/157)
भविष्यत्काल
अकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
अन्यपुरुष सइ, सए (4/388)
हिइ, हिए ( 3 / 157)
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
हसेहिह हसेहित्था, ( 3 / 157) हसिसहिं, हसेसहिं (4/388), हसिहिन्ति, हसिहिन्ते, हसिहिइरे, हसेहिन्ति, हसे हिन्ते, हसेहिइरे (3/157)
+
बहुवचन
सहुं (4/388 ). हिमो, हिमु, हिम (3/157)
सह (4/388 ), हिह. हित्था (3/157) सहिं (4/388 ). हिन्ति, हिन्ते, हिरे (3/157)
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भविष्यत्काल
आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (ठा, हो )
एकवचन
उत्तमपुरुष ठासउं, ठासमि (4/388,4/385). ठाहिउं, ठाहिमि (3/166,4/385, 3/141)
मध्यमपुरुष ठासहि ठाससि
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अन्यपुरुष ठासइ (4/388),
(4/388,4/384, 3/140), ठाहिहि ठाहिसि
(3/166,4/384, 3/140)
ठाहिइ (3/166, 3/139)
बहुवचन
ठास, ठासमो, ठासमु, ठासम (4/388,4/386, 3/144) ठाहिहुं ठाहिमो ठाहिमु, ठाहिम (3/166, 4/386, 3/144)
ठासहु, ठासह, ठासइत्था (4/388,4/384, 3/143) ठाहि, ठाहिह, ठाहित्था (3/166, 4/384, 3/143)
ठासहिं, ठासन्ति, ठासन्ते, ठासइरे (4/388, 4/382, 3/142), ठाहिहिं ठ हिन्ति, ठाहिन्ते, ठाहिइरे (3/166,4/382, 3/142)
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
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भविष्यत्काल आकारान्त,ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय)
एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष सउं, समि (4/388, 4/385), सहुं, समो, समु, सम हिउं, हिमि
(4/388,4/386,3/144), (3/166,4/385,3/141) हिहं, हिमो, हिमु, हिम
(3/166.4/385, 3/144).
मध्यमपुरुष सहि, ससि
सह, सह, सइत्था (4/388, 4/385,3/140), (4/388,4/384,3/143), हिहि, हिसि
हिहु, हिह, हित्था (3/166,4/384,3/140) (3/166,4/384, 3/143)
अन्यपुरुष सइ (4/388), हिइ
(3/166, 3/139)
सहिं, सन्ति, सन्ते, सइरे (4/388,4/382, 3/142) हिहिं, हिन्ति, हिन्ते, हिइरे (3/166,4/382, 3/142)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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परिशिष्ट - 1 सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम
स्वर सन्धि 1. यदि इ, उ, ऋ के बाद भिन्न स्वर अ, आ, ए आदि आवे तो इ के स्थान पर य, उ के स्थान पर व और ऋ के स्थान पर र हो जाता है
ति + आदीनाम् = त्यादीनाम् (सूत्र - 3/139) बहुषु + आद्यस्य = बहुवाद्यस्य (सूत्र - 3/142) इज्जसु - इज्जहि = इज्जस्विजहि (सूत्र -3/175) गुरु + आदेः = गुवां देः (सूत्र -3/150)
शत् + आनशः = शत्रानशः (सूत्र -3/181) 2. यदि अ, आ के बाद इ आवे तो दोनों के स्थान पर ए और बाद में ए आवे तो दोनों के स्थान पर ऐ हो जाता है
आद्यस्य + इच् = आद्यस्यच् (सूत्र -3/139) . मध्यमस्य + इत्था = मध्यमस्यत्था (सूत्र -3/143)
एव + एच् = एवैच् (सूत्र- 3/145) 3. यदि अ, आ के बाद अ या आ आवे तो दोनों के स्थान पर आ और इ, ई के बाद इ, ई आवे तो दोनों के स्थान पर ई हो जाता है
आव + आवे = आवावे (सूत्र - 3/149) इज्जहि + इज्जे = इज्जहीज्जे (सूत्र- 3/175) सिना+अस्तेः = सिनास्तेः (सूत्र - 3/146) तेन + अस्तेः = तेनास्तेः (सूत्र -3/164)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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________________
व्यंजन सन्धि
4.
यदि त् के आगे आ, ई, ए आदि हो तो त् के स्थान पर द और क् के आगे आ
आवे तो क् के स्थान पर ग् हो जाता है
5.
6.
7.
रत् + एत् = णेरदेत् (सूत्र - 3/149)
णेरदेत् + आव = णेरदेदाव (सूत्र - 3 / 149 )
व्यञ्जनात् + ईअ = व्यञ्जनादीअ (सूत्र - 3 / 163)
लुक् + आवी = लुगावी (सूत्र - 3 / 152)
यदि त् के आगे च् हो तो पूर्ववाला त् भी च् हो जाता है---- इत् + च इच्च (सूत्र - 3 / 155 )
एत् + च = एच्च (सूत्र - 3 / 157 )
पदान्तम् के आगे कोई व्यञ्जन हो तो म का अनुस्वार (-) हो जाता है-मानाम् + हिस्सा = मानां हिस्सा (सूत्र - 3 / 168)
यदि त वर्ग के बाद ल आवे तो त भी ल हो जाता है
त्
अदेत् + लुकि = अदेल्लुकि (सूत्र -3/153)
पद के अन्तिम न् को स् होता है और न् के स् होने पर उससे पहले
8.
जाता है
एकस्मिन् + त्रयाणाम्
एकस्मिंस्त्रयाणाम् (सूत्र - 3/173)
विसर्ग सन्धि
9.
यदि विसर्ग से पहले अ या आ के अतिरिक्त इ, ए ओ आदि स्वर हों और विसर्ग के बाद अ आदि स्वर अथवा म्, व्, ह आदि व्यंजन हों तो विसर्ग का र हो जाता है
णेः + अत् = णेरत् (सूत्र - 3 / 149 )
भ्रमेः + आडः = = भ्रमेराड: (सूत्र - 3 / 151)
प्रौढ प्राकृत--अपभ्रंश रचना सौरभ
लग
(ii)
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________________
मै: + म्हि = मै हि (सूत्र - 3 / 147) अवि: + वा = अविर्वा (सूत्र - 3 / 150) सोः + हि सोर्हि (सूत्र - 3/174) अस्तेः + आसि अस्तेरासि (सूत्र - 3 /164)
=
गमेः + एप्पिणु = गमेरेपिणु (सूत्र - 4/442)
यदि विसर्ग से पहले अ या आ और बाद में कोई स्वर अथवा व् भ् म्, ज्आदि
10.
हों तो विसर्ग का लोप हो जाता है
12.
है
(iii)
ज्जः + ज्जा = ज्ज ज्जा (सूत्र- 3 /177)
11.
यदि विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग के बाद व् द् आदि हों तो अ और विसर्ग मिलकर ओ हो जाता है
=
अतः + एवैच् = अत एवैच् (सूत्र - 3/145)
म्हा: + वा = म्हा वा (सूत्र - 3 / 147)
सप्तम्याः + ई = सप्तम्या ई (सूत्र - 3 / 165 )
हीअ + भूतार्थस्य = हीअ भूतार्थस्य ( सूत्र - 3/162)
हः + मो = ह मो (सूत्र - 3/176)
आडः + वा ==
आडो वा (सूत्र - 3 / 151)
अतः + देश्च = अतो देश्च (सूत्र - 3 / 274)
यदि विसर्ग के बाद त् हो तो विसर्ग के स्थान पर स् और च् हो तो श् हो जाता
क्त्वः + तुम् = क्त्वस्तुम् (सूत्र - 2 /146) (क्रम संख्या - 41 )
अत्थिः + ति = अत्थिस्ति (सूत्र - 3 / 148 )
भविष्यन्त्योः + च = भविष्यन्त्योश्च ( सूत्र - 3 /177)
प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश रचना सौरभ
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________________
शब्दानुसरण
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
1,2
हरि राम
राम
परिशिष्ट -2 सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण क्र. सं. सूत्र सं. सूत्र
सन्धि-नियम सूत्र-शब्द मूलशब्द, विभक्ति 1.3/139 त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेचौ
ति ति (ति)+ (आदीनाम) + (आद्यत्रयस्य) +
आदीनाम् (आदि) 6/3 (आद्यस्य) + (इच) + (एचौ)}
आद्यत्रयस्य (आद्य त्रय) 6/1 आद्यस्य (आद्य) 6/1 इच् (इच)
एचौ (एच) 1/2 2.3/140 द्वितीयस्य सि से
द्वितीयस्य (द्वितीय) 6/1 सि
(सि) 1/1
से (से) 1/1 3. 3/141 तृतीयस्य मिः
तृतीयस्य (तृतीय) 6/1
(मि) 1/1
भूभृत्
राम परम्परानुसरण परम्परानुसरण
राम हरि
4.3/142
बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे (बुहुषु) + (आद्यस्य)
आद्यस्य
राम
(बहु)7/3 (आद्य) 6/1 (न्ति) 1/1 (न्ते) 1/1 (इरे) 1/1
(iv)
परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
इरे
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
राम
5. 3/143 मध्यमस्येत्था-हचौ
[(मध्यमस्य) + (इत्था)}
मध्यमस्य इत्था हचौ
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
(मध्यम)6/1 (इत्था ) (हच्) 1/2
भूभृत्
6. 3/144 तृतीयस्य मो-मु-माः
तृतीयस्य
(तृतीय) 6/1
(मो)
(म) 1/3
राम
7.3/145
अत एवैच से {(अतः) + (एव) + (एच)}
10.2
भूभृत्
(अत्)5/1 (एव) (एच) 1/1 (से) 1/1
भूभृत परम्परानुसरण
8. 3/146 सिनास्तेः सिः
(सिना) + (अस्तेः)}
(सि)3/1 (अस्ति ) 6/1 (सि)1/1
सिः
9.3/147
मि-मो-मै-हि-म्हो-म्हा वा {(मै:) + (म्हि)} {(म्हाः) + (वा)}
9,10
मि
(मो) (म)3/3
राम
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
राम
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
(म्ह) 1/3 (वा)
12,1
10. 3/148 अत्थिस्त्यादिना
{(अत्थिः ) + (ति) + (आदिना)
12.1
अत्थिः
(अत्थि ) 1/1
ति
आदिना
(आदि)3/1
9,43
11. 3/149 णेरदेदावावे
(णेः) + (अत्) + (एत्) + (आव) + (आवे)}
7
एत्
(णि) 6/1 (अत्) (एत) (आव) (आवे) 1/1
आव
परम्परानुसरण
12. 3/150 गुर्वादेरविर्वा
{(गुरु) + (आदेः) + (अवि:) + (वा)}
19
गुरु
आदेः
अविः
(आदि) 6/1 (अवि) 1/1
हरि
वा
(वा)
.
(vi)
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
(vii)
9,11
मति
13. 3/151 भ्रमे राडो वा
{(भ्रमः) + (आडः) + (वा)}
भ्रमे: आड: वा
(भ्रमि) 5/1 (आड) 1/1 (वा)
राम
14. 3/152 लुगावी-क्त-भाव-कर्मसु
{(लुल)+(आवी)}
4
लुन् आवी
हरि
क्त
(लुक) (आवि) 1/2 (क्त) (भाव) (कर्म)7/3
भाव
लमसु
कर्मन्
4.7.1.9.10
अत्
15. 3/153 अदेल्लुक्यादेरत आः
{(अत्) + (एत) + (लुकि) + (आदेः)+ (अतः) + (आ.)}
(अत्) (एत) (लुक) 7/1 (आदि)6/1 (अत्) 6/1 (आ)1/1
भूभृत्
हरि
भूभृत् गोपा
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
16. 3/154 मौ वा
हरि
(मि)7/1 (वा)
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
5
17.3/155 इच्च मो-मु-मे वा
{(इत) + (च)}
भूभृत्
(इत्) 1/1 (च) (मो)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
(म)7/1
राम
18. 3/156 क्ते
क्ते
राम
(क्त)7/1 (एत) 1/1
19. 3/157 एच्च क्त्वा-तुम्-तव्य- भविष्यत्सु
(एत) + (च)}
भूभृत्
क्त्वा
तुम् तव्य भविष्यत्सु
भूभृत्
20. 3/158 वर्तमाना - पञ्चमी- शतृषु वा
वर्तमाना पञ्चमी
(क्त्वा ) (तुम) (तव्य) (भविष्यत्) 7/3 (वर्तमाना) (पञ्चमी) (शत) 7/3 (वा)
(ज्जा) _ (ज्ज)7/1
शतृषु
पितृ
वा
21. 3/159 ज्जा-ज्जे
(viii)
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
(ix)
22.3/160 ई अ - इज्जौ क्यस्य
23.3/162 सी ही हीअ भूतार्थस्य ((हीअ:) + (भूतार्थस्य)}
24. 3/162 व्यञ्जनादीअ:
{(व्यञ्जनात्) + (ईअ:)
25.3/164 तेनास्तेरास्यहेसी
((तेन) + (अस्तेः) + (आसि) + (अहेसी)]
26. 3/165 ज्जात् सप्तम्या इर्वा
{(ज्जात्) - (सप्तम्याः) + (इः) + (वा)}
10
3,9,1
10,9
ईअ इज्जौ
क्यस्य
सी
ही
हीअ:
भूतार्थस्य
व्यञ्जनात्
ईअ
तेन
अस्तेः
आसि
अहेसी
ज्जात्
सप्तम्याः
his Fo
इः
वा
(331)
(इज्ज) 1/2
(क्य) 6/1
(सी) 1/1
(ही) 1/1
(हीअ) 1/1
(भूतार्थ) 6/1
(व्यञ्जन) 5/1 (ईअ) 1/1
(a) 3/1
(अस्ति) 6/1
(आसि) 1/1
( आहेसी) 1/1
(ज्ज) 5/1
(सप्तमी) 5/1
(3) 1/1
(वा)
राम
राम
नदी
नदी
राम
राम
राम
राम
राम
हरि
वारि
नदी
राम
स्त्री
हरि
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
(x)
27. 3/166 भविष्यति हिरादिः
{(हि) + (आदिः)}
28. 3/167 मि- मो - मु-मे-स्सा हा न वा
29.3/168 मो - मु-मानां हिस्सा हित्था ((मानाम्) + (हिस्सा ) }
30. 3/169 मे: स्सं
9
6
भविष्यति
हि: आदिः
च च
मु
मे
स्सा
हा
न
वा
मु
मानाम्
हिस्सा
हित्था
(भविष्यत्) 7/1 (हि) 1/1 (आदि) 1/1
CEBEEEEE EEE
(मि)
(मो)
(मु)
(4) 7/1 (स्सा) 1/1
(हा) 1/1
(न)
(वा)
(मो)
(4)6/3
(हिस्सा) 1/1
(feren) 1/1
(मि) 6/1 (स्सं) 1/1
भूभृत् हरि
हरि
राम
लता
लता
राम
लता
लता
हरि
परम्परानुसरण
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश रचना सौरभ
(xi)
31.3/173 दुसुमु विध्यादिष्वे कस्मिंस्त्रयाणाम् ((विधि) + (आदिषु) + (एकस्मिन्) + (त्रयाणाम्)}
32.3/174 सोर्हिर्वा
((सो: ) + (हि.) + (वा) ]
33. 3/175 अत इज्जस्विज्जहीज्जे-लुको वा
{(अतः) + (इज्जसु) + (इज्जहि) + (इज्जे) - (लुकः) + (वा)}
34. 3 / 176 बहुषु न्तु ह मो
{(हः) + (मो)}
1,8
9
10,1,3,11
10
दु
सु
मु विधि
आदिषु
एकस्मिन्
त्रयाणाम्
सोः
हि:
वा
अतः
इज्जसु
इज्जहि
इज्जे
लुक:
वा
बहुषु
न्तु
his tr
(दु) 1/1
(सु) 1/1
(मु) 1/1
(विधि)
(आदि) 7/3
(एक) 7/1
(त्रय) 6/3
()6/1
(हि) 1/1
(वा)
(अत्) 5/1
(इज्जसु) (इज्जहि)
(इज्जे)
(लुक) 1/3
(वा)
(बहु) 7/3
(न्तु) 1/1
(ह) 1/1 (मो) 1/1
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
परम्परानुसरण
हरि
एक
राम
गुरु
हरि
भूभृत्
भूभृत्
गुरु
परम्परानुसरण
राम
परम्परानुसरण
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
(xii)
35.3/177 वर्तमाना- भविष्यन्त्योश्च ज्जज्जा वा {(भविष्यन्त्योः)+(च)} {(ज्जः) + (ज्जा)}
36. 3 / 178 मध्ये च स्वरान्ताद्वा
{(स्वरान्तात्) + (वा)}
37 3/179 क्रियातिपत्तेः
38.3/180 न्त – माणौ
39. 3 / 181 शत्रानश:
{(शतृ) + (आनश:)].
12,10
4
1
वर्तमाना
(वर्तमाना) भविष्यन्त्योः (भविष्यन्ति) 7/2
च
ज्जः
ज्जा
वा
मध्ये
च
स्वरान्तात्
वा
न्त
माणौ
च
(ज्ज) 1/1
(ज्जा) 1/1
(वा)
क्रियातिपत्तेः (क्रियातिपत्ति) 6/1
शतृ आनश:
(मध्य) 7/1
(च)
(स्वरान्त) 5/1
(वा)
(न्त)
(माण) 1/2
(शतृ)
(आनश) 6/1
हरि
राम
लता
राम
राम
हरि
राम
भूभृत्
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
40. 3/182 ई च स्त्रियाम्
नदी
(xiii)
(ई) 1/1 (च) (स्त्री) 7/1
स्त्रियाम्
12
- गोपा
41. 2/146 क्त्वस्तुमत्तूण - तुआणाः
((क्त्वः) + (तुम्) + (अत्) + (तूण)
क्त्वः . तुम्
अत्
(क्त्वा )6/1 (तुम्) । (अत्) (तूण) (तुआण) 1/3
तूण तुआणाः
राम
शौरसेनी प्राकृत के क्रिया-कृदन्त सूत्र
42. 4/268 इह-हचोर्हस्य
{(हचोः) + (हस्य)}
भूभृत्
राम
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
(इह) (हच) 6/2 (ह) 6/1 (क्त्वा) 6/1 (इय) (दूण) 1/2
10
क्त्वः
गोपा
43. 4/271 क्त्व इय-दूणौ
(क्त्वः ) + (इय))
राम
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रौढ प्राकृत--अपभ्रंश रचना सौरभ
(xiv)
44. 4/273 दिरिचेचोः
((दिः) + (इच) + (एचो:) }
45. 4/274 अतो देश्च
{(अतः) + (देः) + (च)}
46. 4 / 275 भविष्यति स्सिः
अपभ्रंश के क्रिया-कृदन्त सूत्र
47. 4/382 त्यादेराद्य-त्रयस्य बहुत्वे हिं न वा
{(ति) + (आदेः) + (आद्य)]
9
11, 12
1,9
दिः
इच्
एचो:
अतः
च
भविष्यति
स्सिः
4
आदेः
आद्य
त्रयस्य
बहुत्वे
हिं
te 16
न वा
(दि) 1/1
(इच)
(एच) 6/2
(अत्) 5/1
(दे) 1/1
(च)
(भविष्यत्) 7/1 (स्सि) 1/1
(ति)
(3mfa) 6/1
(आद्य)
(त्रय) 6/1
(बहुत्व) 7/1
(हिं) 1/1
नवा
हरि
भूभृत्
भूभृत्
परम्परानुसरण
भूभृत् हरि
हरि
राम
राम
परम्परानुसरण
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
(xv)
प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ
48. 4 / 383 मध्य-त्रयस्याद्यस्य हि
((त्रयस्य) + (आद्यस्य ) }
49. 4/384 बहुत्वे हुः
50. 4 / 385 अन्त्य - त्रयस्याद्यस्य उं
{(त्रयस्य) + (आद्यस्य ) }
51. 4/386 बहुत्वे हुं
52. 4/387 हि- स्वयोरिदुदेत्
{(स्वयोः) + इत्) + (उत्) + (एत्)]
3
3
9,4
मध्य
त्रयस्य
आद्यस्य
हि:
बहुत्वे
हुः
अन्त्य
त्रयस्य
आद्यस्य
बहुत्वे
GOL.
(2.
स्वयोः
इत्
उत्
एत्
मध्य
(त्रय) 6/1
(3TTET) 6/1
(हि) 1/1
(बहुत्व) 7/1
(हु) 1/1
(अन्त्य)
(त्रय) 6/1
(3TTET) 6/1
(उं) 1/1
( बहुत्व) 7/1
() 1/1
(हि)
(स्व) 6/2
(इत्) 1/1
(उत्) 1/1
(एत) 1/1
राम
राम
हरि
राम
गुरु
राम
राम
परम्परानुसरण
राम
परम्परानुसरण
राम
भूभृत्
भूभृत्
भभूत
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
53. 4/388 वत्सर्यति-स्यस्य सः
भूभृत्
वत्सर्यति स्यस्य सः
(वत्सर्यत्) 7/1 (स्य) 6/1 (स) 1/1
राम
राम
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
54. 4/438 तव्यस्य इएव्वउं एव्वउं एवा
तव्यस्य
इएव्वउ एव्वउ
(तव्य) 6/1 (इएव्वउं) 1/1 (एव्वउं) 1/1 (एवा) 1/1 (क्त्वा ) 6/1
राम परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
एवा
10
क्त्वः
।।
गोपा
55. 4/439 क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः
{(क्त्वः ) + (इ)]
इउ
इवि अवयः
1
56. 4/440 एप्प्येप्पिण्वेव्येविणवः
{(एप्पि) + (एप्पिणु) + (एवि) + (एविणवः)
एप्पि एप्पिणु एवि एविणवः
(इउ) (इवि) (अवि) 1/3 (एप्पि) (एप्पिणु) (एवि) (एविणु) 1/3
गुरु
(xvi)
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
10,3
तुमः
(xvii)
57.4/441 तुम एवमणाणहमणहिं च
(तुमः) + (एवम्) + (अण) + (अणहम्)+ (अणहिं)}
एवम् . अण
(तुम्)6/1 (एवम्) 1/1 (अण)1/1 (अणहम्) 1/1 (अणहिं)1/1 (च)
भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण
अणहम्
अणहिं
च
9,1,4
हरि
58. 4/442 गमेरेप्पिण्वेप्प्योरेलुंग वा ।
(गमेः) + (एप्पिणु) + (एप्प्योः ) + (ए:) + (लुक्) + (वा)}
एप्पिणु
एप्पयोः
(गमि) 5/1 (एप्पिणु) (एप्पि)7/2 (ए) 6/1 (लुक) 1/1 (वा) (स्वर)5/1
हरि परम्परानुसरण
लुक
भूभृत्
वा
4,11
स्वरात्
राम
स्वरादनतो वा {(स्वरात) + (अन् ) + (अतः)+ (वा)} .
अन्
(अन्)
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
अतः वा
(अत् ) 5/1 (वा)
भूभृत्
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
1. हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, भाग 1-2
2. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण
3. अभिनव प्राकृत व्याकरण
सहायक पुस्तकें एवं कोश
4. प्राकृत मार्गोपदेशिका
5. प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी
6.
8.
पाइअ - सद्द - महण्णवो
7. अप्रभ्रंश - हिन्दी कोश, भाग 1-2
Apabhramsa of Hemacandra
9. Introduction to
Ardha-Magadhi
10. कातन्त्र व्याकरण
11. प्राकृत - प्रबोध
12. बृहद् अनुवाद - चन्द्रिका
: व्याख्याता - श्री प्यारचन्द जी महाराज (श्री जैन दिवाकर - दिव्य ज्योति कार्यालय, मेवाड़ी बाजार, ब्यावर ) ।
: डॉ. आर. पिशल
(बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना ) ।
: डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (तारा पब्लिकेशन, वाराणसी) ।
: पं. बेचरदास जीवराज दोशी (मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली) ।
: डॉ. कपिलदेव द्विवेदी (विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी) ।
: पं. हरगोविन्ददास विक्रमचन्द सेठ (प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी) ।
: डॉ. नरेशकुमार
( इण्डो - विजन प्रा. लि. II A 220, नेहरू नगर, गाजियाबाद ) ।
: Dr. Kantilal Baldevram Vyas (Prakrit Text Society, Ahmedabad)
A. M. Ghatage (School and College Book Stall, Kolhapur)
: गणिनी आर्यिका ज्ञानमती
(दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर, मेरठ) ।
: डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री
( चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी - 1) |
: चक्रधर नोटियाल 'हंस' (मोतीलाल बनवारीदास नारायण, फेज 1, (दिल्ली) ।
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #96
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________________ www.ainelibre