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________________ आरम्भिक व प्रकाशकीय 'प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश - रचना सौरभ भाग-2' अपभ्रंश अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्रोत बनी। अतः हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर भारतीय भाषाओं के इतिहास के अध्ययन के लिए प्राकृत व अपभ्रंश का अध्ययन आवश्यक | दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' जयपुर द्वारा मुख्यतः पत्राचार के माध्यम से प्राकृत व अपभ्रंश का अध्यापन किया जाता है। इसी प्राकृत व अपभ्रंश को सीखने-समझने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर ही 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' द्वारा 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग-1' 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग-1' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है । इसी क्रम में 'प्रौढ प्राकृत- अपभ्रंश-रचना सौरभ भाग-2' प्रकाशित है। प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग -1 में अपभ्रंश के संज्ञा व सर्वनाम के सूत्रों को समझाया गया है तथा प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ भाग - 1 में प्राकृत के संज्ञा व सर्वनाम सूत्रों को समझाया गया है। प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश - रचना सौरभ भाग -2 में प्राकृत व अपभ्रंश के क्रिया- कृदन्तों के संस्कृत भाषा में लिखे सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों का विश्लेषण ऐसी शैली से किया गया है जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही उन्हें समझ ♦ सकें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002699
Book TitlePraudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2002
Total Pages96
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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