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11. णेरदेदावावे 3/149
णेरदेदावावे (णेः) + (अत्) + (एत्) + (आव) + (आवे)} णे: (णि) 6/(अत्) - (एत्) - (आव) – (आवे) 1/1} णि (प्रेरणार्थक प्रत्यय) के स्थान पर अत् → अ, एत् → ए. आव (और) आवे (होते हैं)। किसी भी क्रिया को प्रेरणार्थक बनाने के लिए उसमें अ, ए, आव, आवे प्रत्यय जोड़े जाते हैं। [(णि) → अ. ए. आव, आवे] (हस+अ.ए, आव, आवे) = हास, हासे, हसाव, हसावे
(सूत्र 3/153 से अ व ए प्रत्यय
लगने पर आदि 'अ' का 'आ' हुआ है) 12. गुर्वादेरविर्वा 3/150
गुर्वादेरवि (गुरु) + (आदेः) + (अविः) + (वा)} (गुरु) + (आदि) 6/1]' अविः (अवि) 1/1 वा = विकल्प से । आदि (स्वर) में गुरु (दीर्घ) होने पर विकल्प से अवि (होता है)। आदि (स्वर) में गुरु (दीर्घ) होने पर प्रेरणार्थक प्रत्यय (णि) के स्थान पर विकल्प से अवि होता है। रूस + अवि = रूसवि (रुसाना)
रूस, रूसे, रूसाव, रूसावे (सूत्र – 3/149) 13. भ्रमे राडो वा 3/151
भ्रमे राडो वा {(भ्रमेः) + (आडः) + (वा)} 1. यहाँ पर षष्ठी का प्रयोग सप्तमी के अर्थ में हुआ है।
इस सूत्र की हेमचन्द्र की व्याख्या के अनुसार आदि स्वर गुरुवाली धातुओं में किसी भी प्रकार के प्रेरणार्थक प्रत्यय को नहीं जोड़ करके भी प्रेरणार्थक अर्थ प्रदर्शित कर दिया जाता है। जैसे --सोसिअं =सुखाया हुआ।
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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