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कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय
क्य = य प्रेरणार्थक धातु बनाने के लिए प्रयुक्त प्रत्यय णिच् (अय्) इनमें से हलन्त शब्दों के रूप भूभृत्' की तरह, अकारान्त शब्दों के रूप ‘राम' की तरह, इकारान्त के 'हरि' की तरह, उकारान्त के 'गुरु' की तरह, आकारान्त के ‘गोपा' की तरह, ईकारान्त के 'स्त्री' की तरह चलेंगे। इसी प्रकार शेष शब्दों के रूपों को संस्कृत व्याकरण से समझ लेना चाहिए। सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि विच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई हैं, 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं। अगले पृष्ठों में क्रिया, कृदन्तों से सम्बन्धित सूत्र दिये गये हैं। इन सूत्रो से निम्न प्रकार के क्रियाशब्दों के रूप निर्मित हो सकेंगे(क) अकारान्त क्रिया -- हस आदि। (ख) आकारान्त क्रिया - ठा आदि । (ग) ओकारान्त क्रिया - हो आदि। सूत्रों के आधार से समस्त अकारान्त क्रियाओं के रूप 'हस' की भांति, आकारान्त क्रियाओं के रूप 'ठा' की भांति व ओकारान्त क्रियाओं के रूप 'हो' की भांति बना लेने चाहिए।
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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