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(हस + उं, अ, ऊण, उआण) = हसिउं, हसिअ, हसिऊण, हसिउआण,
हसेउ, हसेअ, हसेऊण, हसेउआण
(सम्बन्धक भूतकृदन्त) (देखें सूत्र -2/146) (हस + इय, दूण, त्ता)= हसिय, हसिदूण, हसित्ता' (सं. कृ. शौरसेनी प्राकृत
(देखें सूत्र -4/271) (हस + उं) = हसिउं, हसेउ (हे. कृ.) (हस + अव्व) = हसिअव्व, हसेअव्व (वि. कृ.)
भविष्यत्काल एकवचन
बहुवचन उत्तमपुरुष हसिहिमि, हसे हिमि, हसिहामि, हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु
हसेहामि हसिस्सामि, हसेस्सामि, हसे हिमु, हसिहिम, ह से हिम हसिस्सं, हसेस्सं, हसिस्सिमि' हसिस्सामो, हसे स्सामो (देखें सूत्र - 3/166-167, हसिस्सामु, हसेस्सामु, हसिस्साम 3/169, 3/275)
हसेस्साम, हसिहामो, हसेहामो हसिहामु, हसेहामु, हसिहाम हसेहाम, हसिहिस्सा, हसेहिस्सा हसिहित्था, हसेहित्था, हसिस्सिमो
1.
व्याकरण के नियमानुसार हसेत्ता व हसेदूण रूप भी बनने चाहिए परन्तु हेमचन्द्र की इस सूत्र की वृत्ति में इन रूपों का उल्लेख नहीं है। शौरसेनी प्राकृत का भविष्यत्काल बोधक प्रत्यय 'स्सि' लगने पर क्रिया के अन्त्य अ का सिर्फ 'इ' होता है। . ...
2.
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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