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(हस + हिस्सा, हित्था) = हसिहिस्सा, हसिहित्था,
हसेहिस्सा, हसे हित्था,
(भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, बहुवचन) (नोट - सूत्र 3/157 से अन्त्य अ का 'इ' व 'ए' हुआ है) 30. मे: स्सं 3/169
मेः (मि) 6/1 स्सं (स्स) 1/1 मि के स्थान पर (विकल्प से) स्सं (होता है)। भविष्यत्काल में क्रिया से परे हिमि (सूत्र 3/157), स्सामि, हामि (सूत्र 3/157) के स्थान पर विकल्प से ‘स्सं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। (हस + स्स) = हसिस्स, हसेस्सं
(भविष्यत्काल, उत्तम पुरुष, एकवचन) । 31. दु सु मु विध्यादिष्वेकस्मिस्त्रयाणाम् 3/173
दु सु मु विध्यादिष्वेकस्मिंस्त्रयाणाम् दु सु मु (विधि) + (आदिषु) + . (एकस्मिन्) + (त्रयाणाम्)} 'दु (दु) 1/1 सु (सु) 1/1 मु(मु) 1/1 (विधि) + (आदि) 7/3} एकस्मिन् (एक)7/1 त्रयाणाम् (त्रय) 6/3 विधि आदि में तीनों ('पुरुषों' अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष) के एकवचन में (क्रमशः) दु→ उ, सु, मु (होते हैं)। विधि, आज्ञा एवं आशीषबोधक प्रत्ययों (तु, ताम् आदि) के स्थान पर अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष के एकवचन में क्रमशः उ, सु, मु. होते हैं । {(तु.ताम् आदि)→ उ. सु. मु} (हस+उ) = हसउ, हसेउ (विधि, अन्य पुरुष, एकवचन) (हस+सु) = हससु, हसेसु (विधि, म. पु. एकवचन) (हस+मु) = हसमु, हसे मु (विधि, उ. पु. एकवचन) (सूत्र 3/158 से तीनों पुरुषों में अन्त्य 'अ' का ‘ए’ हुआ है)।
प्रौढ प्राकृत--अपभ्रंश रचना सौरभ
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