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तव्य (चाहिए अर्थ) के स्थान पर इएव्वउं, एव्वउं और एवा होते हैं। (तव्य) → इएव्वउं. एव्वउं, एवा}
(कर + इएव्वउं. एव्वउं, एवा) = करिएव्वउं, करेव्वउ, करेवा (विधि कृदन्त) 55. क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः 4/439
क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः (क्त्वः) + (इ)} क्त्वः (क्त्वा) 6/1 (इ) - (इउ)-(इवि)-(अवि) 1/3} क्त्वा के स्थान पर इ. इउ, इवि, अवि (होते हैं)। क्त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर इ. इउ, इवि और अवि होते हैं। {(क्त्वा ) → इ. इउ, इवि, अवि)
(कर + इ. इउ, इवि, अवि) - करि, करिउ, करिवि, करवि (संबंधक कृदन्त) 56. एप्प्येप्पिण्वेव्येविणवः 4/440
एप्प्येप्पिण्वेव्येविणवः {(एप्पि) + (एप्पिणु) + (एवि) + (एविणवः)} {(एप्पि) - (एप्पिणु) - (एवि) - (एविणु) 1/3] (क्त्वा के स्थान पर) एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु (होते हैं)। क्त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर एप्पि, एप्पिणु, एवि और एविणु होते हैं । (क्त्वा) → एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु} (कर + एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु) = करेप्पि, करेप्पिणु, करेवि, करेविणु
(संबंधक कृदन्त) 57. तुम एवमणाणहमणहिं च 4/441
तुम एवमणाणहमणहिं च (तुमः) + (एवम्) + (अण) + (अणहम्) + (अणहिं)}च
प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ
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