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________________ (हस + स्सि + मि) (हस + स्सि + मो, मु, म) = हसिस्सिमि (भवि. उ. एक.) हसिस्सिमो, हसिस्सिमु, हसिस्सिम (भवि. उ. बहु.) अपभ्रंश के क्रिया-कृदन्त सूत्र - 47. त्यादेराद्य-त्रयस्य बहुत्वे हिं न वा 4/382 त्यादेराद्य - त्रयस्य बहुत्वे हिं न वा (ति) + (आदेः) + (आद्य) - (त्रयस्य)} (ति) - (आदि) 6/1} आद्यत्रयस्य (आद्यत्रय) 6/1 बहुत्वे (बहुत्व) 7/1 हिं (हिं) 1/1 न वा = विकल्प से ति आदि के स्थान पर तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष के बहुवचन में (अन्ति, अन्ते प्रत्ययों के स्थान पर) विकल्प से हिं (होता है)। . वर्तमानकाल में ति आदि के स्थान पर तीन पुरुषों में से प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष) के बहुवचन में अन्ति, अन्ते प्रत्ययों के स्थान पर विकल्प से हिं होता है। {(अन्ति, अन्ते) → हिं} (हस + हिं) = हसहिं (वर्तमानकाल, प्रथम पुरुष (अन्य पुरुष) बहुवचन) वैकल्पिक पक्ष - हसन्ति, हसन्ते, हसिरे (सूत्र – 3/142) 48. मध्य-त्रयस्याद्यस्य हि: 4/383 मध्य-त्रयस्याद्यस्य हिः (मध्य)-(त्रयस्य) + (आद्यस्य)} हिः {(मध्य) - (त्रय) 6/1} आद्यस्य (आद्य) 6/1 हि: (हि) 1/1 तीन पुरुषों में से मध्यम पुरुष के एकवचन के (प्रत्यय सि आदि के) स्थान पर हि (होता है)। प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002699
Book TitlePraudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2002
Total Pages96
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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