Book Title: Praudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 26
________________ भ्रमेः (भ्रमि) 5/1 आडः (आड) 1/1 वा = विकल्प से . भ्रमि → भ्रम→भम से परे (प्रेरणार्थक प्रत्यय णि के स्थान पर) विकल्प से आड (होता है) [(णि) → आड] भम से परे प्रेरणार्थक प्रत्यय णि के स्थान पर विकल्प से आड होता है। (भम + आड) = भमाड 14. लुगावी – क्त - भाव – कर्मसु 3/152 लुगावी -क्त-भाव-कर्मसु (लुक) + (आवी)} -क्त-भाव-कर्मसु {(लुक्) -(आवि) 1/2} {(क्त)-(भाव)-(कर्म)7/3} क्त→त→अ (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय), भाववाच्य (और) कर्मवाच्य (के प्रत्यय) परे होने पर (प्रेरणार्थक प्रत्यय के स्थान पर) लोप (०' प्रत्यय) (और) आवि (प्रत्यय लगेंगे)। क्त→त→अ (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय), भाववाच्य और कर्मवाच्य के प्रत्यय (इज्ज, ईअ) परे होने पर प्रेरणार्थक प्रत्यय के स्थान पर लोप (o' प्रत्यय) और आवि प्रत्यय लगेंगे। [(त)→ अ; (य)→ इज्ज, ईअ: (णि)→ 0. आवि] भूतकालिक कृदन्त (हस + '0' + अ)= (हास +अ)= हासिअ (सूत्र 3/153 से आदि 'अ' का 'आ' हुआ है।) (हस + आवि + अ)%3D (हसावि+अ) = हसाविअ कर्मवाच्य (कर + 0 + इज्ज, ईअ) = (कार + इज्ज, ईअ) = कारिज्ज, कारीअ (सूत्र 3/153 से आदि 'अ' का 'आ' हुआ है) (कर+आवि+ इज्ज, ईअ)= (करावि + इज्ज, ईअ)= कराविज्ज, करावीअ भाववाच्य (हस +0+ इज्ज, ईअ) = (हास+इज्ज, ईअ) = हासिज्ज, हासीअ ' (हस + आवि+ इज्ज, ईअ) = (हसावि+ इज्ज, ईअ) = हसाविज्ज, हसावीअ प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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