Book Title: Praudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 46
________________ शौरसेनी प्राकृत के क्रिया 42. इह होर्हस्य 4 / 268 हचोर्हस्य इह - ( ( हचो :) + (हस्य ) } कृदन्त सूत्र इह - {(इह ) - (हच्) 6 / 2] हस्य (ह) 6/1 इह और हच् के ह का (विकल्प से ध हो जाता है) । इह (अव्यय) और हच् ह (वर्तमानकाल, मध्यम पुरुष, बहुवचन का प्रत्यय) केह का (शौरसेनी प्राकृत में) विकल्प से ध हो जाता है। इह इध (यहाँ पर) हसह हसघ (वर्तमानकाल, मध्यमपुरुष, बहुवचन) 43. क्त्व इय - दूणौ 4/271 क्त्व इय दूणौ ( ( क्त्वः) + (इय) } - दूणौ क्त्व: (क्त्वा ) 6/1 {(इय) - ( दूण) 1/2 } क्त्वा →त्वा के स्थान पर (विकल्प से) इय और दूण (होते हैं) । क्त्वा →त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर (शौरसेनी प्राकृत में) विकल्प से इय और दूण होते हैं । वैकल्पिक पक्ष होने से त्ता प्रत्यय भी होता है। ( क्त्वा) इय, दूण, त्ता (हस + इय, दूण,त्ता ) = हसिय, हसिदूण, हसित्ता (सं. कृ.) 44. दिरिचेचो : 4/273 दिरिचेचो : {(दिः) + (इच्) + (एचो : ) } दिः (दि) 1/1 ((इच्) – (एच्) 6/2} - इच् → इ एच्→ ए के स्थान पर दि (की प्राप्ति होती है) । इ. ए (वर्तमान काल, अन्य पुरुष एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर शौरसेनी में 'दि' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। (हस + इ. ए) = (हस + दि) = हसदि (वर्तमानकाल, अन्यपुरुष, एकवचन) प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only 39 www.jainelibrary.org

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