Book Title: Praudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 34
________________ 24. व्यञ्जनादीअ: 3 / 163 व्यञ्जनादीअः {(व्यञ्जनात्) + (ईअ:)} व्यञ्जनात् (व्यञ्जन) 5/1 ईअ: (ईअ) 1/1 व्यञ्जनान्त (अकारान्त) क्रियाओं से परे (भूतार्थबोधक प्रत्ययों) (त्, अत आदि) (के स्थान पर) ईअ (होता है) । अकारान्त क्रियाओं से परे भूतार्थबोधक प्रत्ययों (त्, अत आदि) के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में 'ईअ' प्रत्यय होता है। [ (त्, अत आदि) ईअ] → भूतकाल (हस ) उत्तमपुरुष मध्यमपुरुष अन्यपुरुष 25. तेनास्तेरास्यहेसी 3 / 164 एकवचन हसीअ हसीअ हसीअ उत्तमपुरुष मध्यमपुरुष अन्यपुरुष तेनास्ते रास्य सी (तेन) + (अस्ते :) + (आसि) + (अहेसी ) ] तेन (त) 3 / 1 अस्तेः (अस्ति) 6/1 आसि (आसि) 1 / 1 अहेसी (अहेसी) 1/1 (तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में ) उसके सहित (अर्थात् भूतार्थबोधक प्रत्ययों सहित) अस्तित्ववाचक अस् के स्थान पर आसि और अहेसी होते हैं । भूतार्थबोधक प्रत्ययों के साथ अस् के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में आसि और अहेसी होते हैं। [ (अस् + त्, अंत आदि) आसि, अहेसी ] अस (भूतकाल ) Jain Education International एकवचन आसि, असी आसि, अहेसी आसि, अहेसी प्रौढ प्राकृत - अपभ्रंश रचना सौरभ बहुवचन हसीअ हसीअ हसीअ बहुवचन आसि, अहेसी आसि, अहेस आसि, अहेसी For Private & Personal Use Only 27 www.jainelibrary.org

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