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(2) 1. को वि भणइ मुहे पण्णु ण लायमि । जाम्व ण रुण्ड-णिवहु णच्चावमि ।
(59.4 प.च.) --कोई कहता है मैं (तब तक) मुंह में पान नहीं लूंगा, जब तक घड़ समूह
को नहीं नचाता हूँ। 2. अम्हेहिं पुणु जुज्झेवउ समरे । ताव तिट्ठ णयरे । (30.3 प.च.)
-हमारे द्वारा फिर युद्ध में लड़ा जायेगा, तब तक नगर में ठहरो। 3. तिलहं तिलत्तणु ताउं पर जाउं न नेह गलन्ति । (4.406 हे.प्रा.व्या.)
-तिलों का तिलपना तभी तक पूर्ण रूप से (है), जब तक तेल नहीं
निकलता है। 4 जाम ण पत्त वत्त भत्तारहो । ताम णि वित्ति मज्झ आहारहो। (50.10
प.च.) - जब तक पति के समाचार उपलब्ध नहीं हुए, तब तक मेरी आहार से
निवृत्ति (थी)। 5. ताम ण जामि अज्जु जाम ण रोसविउ मई दसाणणो ।(51.1 प.च )
-जब तक मेरे द्वारा रावण क्रोधित नहीं किया गया, तब तक मैं आज
नहीं जाऊंगा। 6. जाव ण सुण मि वत्त भत्तारहो । ताव णिवित्ति मज्झ आहारहो । ( 38.19
प.च.) -जब तक (मैं) पति की कथा नहीं सुनती हूँ, तब तक मेरी आहार से निवृत्ति रहेगी।
(3) 1. समउ कुमार प्रज्ज वि रावण सन्धि करे । (58.1 प.च.)
-हे रावण ! (तुम) प्राज भी कुमार (लक्ष्मण) के साथ सन्धि करो । 2. जइ भरहहो होहि सुभिच्चु प्रज्जु तो प्रज्जु वि लइ अप्पणउ रज्जु ।
(30.9 प.च.) -यदि (तुम) आज भरत के अच्छे दास होते हो तो आज ही अपना राज्य
ले लो। 3. सुणु कते कल्ले काई करमि । (62.10 प.च.)
-हे सुन्दरी ! सुनो, कल (मैं) क्या करूँगा ?
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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