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(27) वीसोवसग्ग पच्चय बहुय । (1.3 प.च.)
-बीस उपसर्ग और बहुत से प्रत्यय (नहीं सुने गए)। (28) बावीस दिवस पालेवि सव्वु । (ज.च. 4.28)
-बाईस दिन तक सब का पालन करके (-शरीर का त्याग किया)। (29) इय चउवीस वि परम-जिण पणवेप्पिणु भावें । (1.1 प.च.)
-इस प्रकार चौबीस परम जिनों को भावपूर्वक प्रणाम करके (मैं रामायण
लिखता हूँ)। (30) वत्तीस-सुरिन्द-कियाहिसेय । (1.9 प.च.)
-बत्तीस इन्द्रों द्वारा अभिषेक किया गया। (31) वेयडढहो सेढिहिं जाइँ ताई। पण्णास व सट्ठि वि पुरवराई। (16.11
प.च.)
- विजया पर्वत की श्रेणी पर जो पचास या साठ श्रेष्ठ नगर हैं... । (32) पुणु असीहि लक्खिज्जइ ससहरु । (2.3 प.च.)
-फिर प्रस्सी (लाख योजन) पर चन्द्रमा देखा जाता है। (33) गवरणवइ-उवरे सहसेक्क-मूलु । (1.11 प.च.)
-जो एक हजार (योजन) गहरा और निन्यानवे हजार (योजन) ऊंचा है। (34) अट्ठाणवइ सहास कमेप्पिणु भडारउ रिसह सिंहासणे ठविउ ।(2.3 प.च.)
-अट्ठानवे हजार (योजन) चलकर आदरणीय ऋषभ को सिंहासन पर
स्थापित कर दिया। (35) सत्तहि जोयण सहि तहितिउ । सण्णवइहिं तारायण-पन्तिउ । (2.3
प.च.)
--वहां से सात सौ छियानवे योजन दूर तारागणों की पंक्ति थी। (36) परिणेप्पिणु कण्णहँ छ वि सहास । (10.7 प.च.)
-छह हजार कन्याओं को परणकर (रावण अपने घर गया)। (37) अट्ठोत्तर-सहास-लक्खण-धरे । (2.1 प.च.)
- (ऋषभ) एक हजार पाठ लक्षणों से युक्त (थे)।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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