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3. फलु एत्तिउ पंच-महन्वयहो । (34.6 प.च.)
-पंच महाव्रत का इतना फल (है)। 4. भणु एत्तिएण कालेण काई । चन्दण हिहे चरियई ण वि सुयाई। (45.3 प.च.) -कहो, इतने काल तक क्या (तुम्हारे द्वारा) चन्द्रनखा का आचरण नहीं
सुना गया। 5. एत्तियई कियइं साहसइं जइ वि । (45.1 प.च.)
-यद्यपि इतना साहस किया गया । 6. किं को वि अत्थि एत्तियह मज्झे । (45.2 प. च.)
इतनों के बीच में क्या कोई है ? 7. एत्तिय-मत्तें अन्मुद्धरणउ'..."महु । (35.15 प.च.)
-इतने मात्र से मेरे उद्धार हुमा । 8. एत्तिय वि तो वि तउ थाउ बुद्धि करहि सन्धि । (58.2 प.च.)
-(यदि) तुम्हारी इतनी भी बुद्धि है तो सन्धि करलो । 9. एउ जेत्तिउ रक्खणु गयवरासु । तेत्तिउ जे पुणु वि थिउ रहवरासु । (16.15 प.च.) -महागज (समूह) का यह जितना रक्षण (था) उतना ही फिर रथसमूह
का था। 10. जेत्तिउ दणु दुज्जउ संभवइ । तेत्तिउ पहरन्त जसु ममइ । (71.13 प.च.)
-जितना दैत्य दुर्जय होता है, उतना ही प्रहार करने वालों का यश फैलता
11. केत्तिउ भीसगत्तु वणिज्जइ। (11.10 प.च.)
-कितनी भीषणता वर्णन की गई है ? 12. जग्गहो जग्गहो केत्तिउ सुग्रहो । (50.7 प.च.)
-(तुम) जागो, जागो, कितना सोते हो ? 13. किर केत्तिय सहाय वणे सीहहो । (67.9 प.च.) ___ -जंगल में सिंह का (कौन) कितना सहायक (होता है) ?
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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