________________
पाठ 10
अभ्यास
(1) विशाल पर्वत वहां देखा गया ।(2)संपत्ति स्थिर नहीं होती है । (3)वह मनोहर रथ में बैठी। (4) तुम्हारे बिना घर सूना है। (5) गंगा पवित्र नदी कहो जाती है । (6) यदि तुम्हारा मन चंचल है, तो तुम उसको रोको । (7) जीव अकेला सुख व दुःख को भोगता है। (8) मेरी पुत्री व्रतों को धारण करनेवाली है और धैर्यवान भी है। (9) काले पक्षी आकाश में उड़ते हुए देखे गए। (10) जो दासी विनयवान होती है, वह आज्ञाकारी होती है । (11) योगी ध्यान से अपूर्व प्रानन्द प्राप्त करता है । (12) वह मुनि के दुर्लभ वचनों को सुनकर अपना कल्याण करता है । (13) मेरी बहिन के द्वारा सफेद साड़ी खरीदी गई। (14) जो सास कंजूस होती है, वह बहू के साथ झगड़ा करती है। (15) जिसका शरीर दुबला है, वह दूध अधिक पीवे । (16) जो निर्मल ध्यान ध्याता है, वह विमल केवलज्ञान पाता है । (17) जिसकी दृष्टि उज्ज्वल होती है, उसकी कीर्ति जगत में फैलती है । (18) तुम मधुर फल खायो। (19) जब तक तुम्हारी वाणी तीखी रहेगी, तब तक तुम प्रशंसा नहीं पावोगे । (20) शीतल जल से प्यास नष्ट होती है। (21) उत्तम राजा को सम्पत्ति बढ़ती है । (22) वह सागर के समान गम्भीर है। (23) मेरी प्यारी माता मुझको मधुर भोजन कराती है । (24) राजा की प्रिय रानी उस उपवन में जाकर सरोवर के कमलों को देखती है । (25) मूर्ख मन्त्री राज्य की रक्षा नहीं करता है । (26) जिसकी बुद्धि मोटी होती है, उसका मन निश्चल नहीं होता है । (27) उत्तम मनुष्य के द्वारा ये गुण प्राप्त किए जाते हैं । (28) वह पूर्वी नगर को गया । (29) तुम दक्षिण देश जायो। (30) नर्मदा दक्षिणी नदी है । (31) गंगा उत्तरी नदी है । (32) पश्चिम दिशा में मेरा मित्र रहता है । (33) उसके पूर्व भाग में यमुना नदी है !
शब्दार्थ
(6) रोकना=णिवार, (20) प्यास तिसा, (24) सरोवर=सरोवर, देखना-णिरक्ख, (25) रक्षा करना-परिरक्ख, (26) निश्चल-थिर ।
90
]
[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org