________________
संज्ञा-सूत्र
1. स्यमोरस्योत् 4/331
स्यमोरस्योत् [ (सि)+ (अमोः)+ (अस्य)+(उत्) ] [(सि)- (अम्) 6/2] अस्य (अ) 6/1 उत् (उत्) 1/1 । अकारान्त (शब्दों) के परे 'सि' और 'अम्' के स्थान पर उत्→ उ' (होता है) । अकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों के परे सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) अम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'उ' होता है ।
देव (पु.)
(देव+सि) = (देव --- उ)=देव (प्रथमा एकवचन) (देव- अम्)=(देव + उ)=देव (द्वितीया एकवचन) (कमल+सि)=(कमल+उ)= कमलु (प्रथमा एकवचन) (कमल-अम्)=(कमल+उ)== कमलु (द्वितीया एकवचन)
कमल (नपु)
2. सौ पुस्योद्वा 4/332
सौ पुंस्योद्वा [ (पुंसि) + (प्रोत) + (वा)] सौ (सि) 7/1 पुंसि (पुंस्) 7/1 प्रोत् (प्रोत्) 1/1 वा (अ)=विकल्प से । (अकारान्त) पुल्लिग (शब्दों) में 'सि' परे होने पर विकल्प से (उसका) ओत्-→ 'प्रो' (होता है)। अकारान्त पुल्लिग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से उसका 'प्रो' हो जाता है । देव (पु.)-(देव+सि)=(देव+प्रो)=देवो (प्रथमा एकवचन)।
3. एट्टि 4/333
एट्टि [(एत्) + (टि)] एत् (एत्) ]/1 टि (टा) 7/1 (अकारान्त) (शब्दों में) 'टा' परे होने पर (अन्त्य 'अ' का) 'ए' (झोता है) ।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
[ 107
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org