Book Title: Praudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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(5.1)
(5.2)
(6)
(7)
वहन्त, वहमाण
वहिन, वहिय
वहिअव्व, वहेअव्व
वहेन्वउं, वहिएव्वउं, वहेवा
वाअव्व
वान्त-वन्त;
वा, वाय
वाएव्वउं, वाइएव्वळ, वाएवा
वामाण
विज्जन्त, विज्जमाण विज्जिअ, विज्जिय
विज्जिअव्व, विज्जेव्वउं, विज्जेअव्व विज्जिएव्वळ,
विज्जेवा
विहज्जिन,
विहज्जिअव्व. विहज्जेव्बउ, विहज्जेअव्व विहज्जिएव्वउं
विहज्जेवा
विहज्जन्त, विहज्जमारण
विहज्जिय
विहसन्त, विहसमाण विहसिन, विहसिय
विहसिअव्व, विहसेव्वउं, विहसे अव्व विहसिएव्वउं,
विहसेवा
संमरिअव्व, संभरेव्बउं, संभरिएव्वउं, संभरन्त, संभरमाण संभरिअ, संभरिय संभ रेअव्व संभरेवा
संमाणि, संमारिणय
संमाणि अव्व, संमाणेव्वउ, संमाणेव संमाणिएव्वलं,
संमाणेवा
संमाणन्त, संमारणमारण
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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