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5. संसारे भमन्तएण प्रावते जन्त-मरन्तएण जीवें कोण रुवावियउ। 139.9
प.च.) .-संसार में घूमते हुए, पाते हर, उत्पन्न होते और मरते हुए जीव के द्वारा कौन
नहीं रुलाया गया। चतुर्थी विभक्ति के प्रयोग 1. लङ्घवि महयहरु एत्थ बसन्तह णाहि घर । (75.9 प.च.)
-समुद्र को लांघकर यहां रहते हुए (हमारे लिए) भी धरती नहीं है । 2. पसत्थउ णामु उववणु एन्ताहो पइसन्ताहो कुमारहो णाई कुसुमांजलि थिउ । -प्रशस्त नामक उपवन प्राते हुए, प्रवेश करते हुए कुमारों के लिए मानो
कुसुमांजलि लिये स्थित था। पंचमी विभक्ति के प्रयोग 1. अम्हहुँ देसें देसु भमन्तहुं, कवणु पराहउ किर णासन्तहुं । (32.2 प.च.) -(एक) देश से (दूसरे) देश घूमते हुए और भागते हुए हम लोगों से किसका
पराभव (अनादर)? 2. सयल-काल-हिण्डन्तहुं हुअ वरण-वासे परम्मुहिय""थिय सिय । (44.15 प च ) -हमेशा विहार करते हुए (राम-लक्ष्मण) से वनवास में विमुख होकर..."
सीता स्थित हुई। षष्ठी विभक्ति के प्रयोग 1. पायाल-लङ्क भुञ्जन्ताहो उप्पणु सुमालि हे पुत्त रयणास उ । (9.1 प.च.) -- पाताल लका का उपभोग करते हुए सुमालि के रत्नाश्रव (नामक) पुत्र उत्पन्न
हुआ । 2. जेरण खरहो सिरु खुडिउ जियन्तहो । ( 57.6 प.च.)
-- जिसके द्वारा जीते हुए खर का सिर काटा गया । 3. सयरहो सयल पिहिमि भुञ्जन्तहो रयण-णिहाणई परिपालन्तहो सट्ठि सहास हूय वर-पुत्तहुँ । (5.10 प.च.) -रत्नों और निधियों का पालन करते हुए, समस्त धरती का उपभोग करते हुए सगर के साठ हजार श्रेष्ठ पुत्र हुए !
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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