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(5) पञ्च महन्वय पञ्चाणुव्यय । तिणि गुणव्वय चउ सिक्खावय । (2.10
प. च.) -पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत (और) चार शिक्षाव्रत (नष्ट
(6) तेण समाणु सणेहें लइया । रायहँ चउ सहास पव्वइया । (2.11 प.च.)
-चार हजार राजाओं के द्वारा स्नेहपूर्वक उसके साथ संन्यास लिया गया । (7) वेण्णि वि विहिं चलणेहिं रिणवडेप्पिणु । थिय पासेहिं जिणु जयकारेप्पिणु ।
(2.13 प.च.) -दोनों ही दोनों चरणों में पड़कर, जिन की जयकार करके पास में बैठ
गए। (8) विणि मि दुज्जय दुद्धर पवयल । (17.7 प.च.)
-दोनों ही दुर्जय, दुर्द्धर और प्रचण्ड (थे)। (9) गय वे वि लएप्पिणु विज्जउ । (2.15 प.च.)
-दोनों ही विद्या लेकर चले गए। (10) छक्कारय दस लयार ण सुय । (1.3 प.च.)
-- छ कारक और दस लकार नहीं सुने गए। (11) णउ णिसुअउ सत्त विहत्तियउ । (1.3 प.च.)
---(मेरे द्वारा) सात विभक्तियां नहीं सुनी गई । (12) रणव-रस-अट्ठ-भाव-संजुत्तउ । (2.4 प.च.)
-- (जो) नौ रस और पाठ भावों से युक्त (था)। (13) किह रावणु दह मुहु वीस-हत्थु ? (1.10 प.च.)
-रावण दस मुह और बीस हाथवाला किस तरह था ? (14) दो-गुण-धरहो दुविह-तव-तत्तहो । (3.2 प.च.)
-दो गुणों को धारण करनेवाले और दो प्रकार के तप से तपे हुए (जिनेन्द्र
__ के केवलज्ञान उत्पन्न हुआ)। (15) दुतिपंचसत्तमोमई घराई । (1.4 जस.च.)
-दो, तीन, पांच और सात मंजिलवाले घर (थे)।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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