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संकलित वाक्य प्रयोग (क)(1)1. एउ ण जाणहुँ कहिं गउ सन्दणु । (17.7 प.च )
-(हम) यह नहीं जानते हैं कि रथ कहां गयो ? 2. कासु एउ एवड्डु पहुत्तणु । (3.9 प.च.)
-यह इतना/इतना बड़ा प्रभुत्व किसका है ? 3. एहु सो णरु एउ तं पुप्फवणु । (9.1 प.च.)
-यह (ही) वह मनुष्य (है), यह (ही) वह पुष्पवन है । 4. एह राम कह-सरि सोहन्ती । गणहर-देवहिं दिट्ट वहन्ती । (1.2 प.च.)
-यह रामकथारूपी नदी शोभती है (और वह) गणघर देवों द्वारा बहती
हुई देखी गई। 5. लइ एह जि गइ जीवहो जायहो। (5.2 प.च.)
-लो, जन्म लिये हुये जीव की यह ही गति होती है। 6. एह कुमारी एहो णरु एहु मणोरह-ठाणु । (हे प्रा.व्या. 4.362/1)
-यह कन्या है, यह पुरुष है और यह मन-कल्पनाओं का स्थान है । 7. एइ ति घोडा । [घोड (पु. स्त्री.)] (हे प्रा.व्या. 4363)
-ये अश्व (हैं)। 8. एइ पेच्छ । (हे.प्रा.व्या. 4.363)
-इनको (कुमारियों, पुरुषों और वस्तुओं को) देखो। 9. एइ मणोरहई....."करेइ । (हे.प्रा.व्या. 4.414/4)
-(वह) इन मनोरथों को (पूर्ण) करेगा। 10. पोत्तउ णिवारि इउ कुम्भयण्णु । (10.7 प.च.)
-(अपने) पोते इस कुम्भकर्ण को मना करो।
सार्वनामिक विषेषण एत, पाय, इम, त, अमु, ज, क, कवरण, सव्व के (पु., नपु , स्त्री.) शब्दरूपों के लिए देखें-'अपभ्रंश रचना सौरभ', ले.-डॉ. कमलचन्द सोगानी, पृष्ठ 164-183 । शेष प्रकारान्त पु. शब्दों के लिए 'देव', नपु. शब्दों के लिए 'कमल', आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के लिए 'कहा' व ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के लिए 'लच्छो' की रूपावली देखें।
प्रौढ . अपभ्रश रचना सौरभ ]
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