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संकलित वाक्य-प्रयोग (ख) 1. मई मणिप्रउ बलिराय ! तुहं के हउ मग्गरण एहु ।
जेहु तेहु न वि होइ, वढ ! सई नारायणु एहु । (हे प्रा.व्या. 4.402/1) -हे राजा बलि ! मेरे द्वारा तू समझाया गया है (कि) (यह) ऐसा कैसा याचक है ? हे मूर्ख ! (यह) जैसा तैसा (याचक) नहीं है । ऐसा (याचक)
स्वयं नारायण (भगवान विष्णु) है। 2. विण यवन्तु अच्चन्त सणेहउ । अण्णु वि खत्तिय मग्गु ण एहउ । ( 77.17 प.च.) -(विभीषण) विनयवान (और) अत्यन्त स्नेही (है)। दूसरी बात, ऐसा
क्षत्रिय का मार्ग नहीं है । 3. एहउ पहिलारउ मूल-सेण्णु । (16.12 प. च.)
-ऐसी (यह) पहली मूल सेना (है)। 4. एहए अवसरे उवाउ कवणु ? (15.10 प.च.)
-ऐसे अवसर पर क्या उपाय है ? 5. परियलइ जेण तहो तणउ दप्पु । तं तेहउ कल्लए देमि कप्पु । (4.5 प.च.)
--(मैं) कल उसको वैसा व्यवहार दूंगा, जिससे उसका दर्प नष्ट हो जायेगा। 6. तहिं तेहए वि काले भय-भीयहे । केण वि सीलु ण खण्डिउ सीयहे । (44.10 प.च.) -भय से अत्यन्त डरी हुई सीता का शील उस वैसे काल में भी किसी के
द्वारा खण्डित नहीं किया जा सका । 7. तहिं तेहए भीसणे भीम-वणे। थिय विज्जहे झाणु धरेवि मणे । (9.7 प. च.) -उस वैसे भीषण और भयंकर वन में मन में विद्या का ध्यान करके (बे)
बैठ गए। 8. का वि णाहि मई जेही दुक्खहँ मायणा । (19.6 प.च.)
-मेरी जैसी दुःखों को भोगनेवाली कोई नहीं है । 9. मइं जेहउ केवल-संपण्णउ । एक्कु जि रिसहु देउ उप्पण्णउ । (5.9 प.च.)
-मेरे जैसे केवलज्ञान से पूर्ण एक ऋषभदेव ही हुए हैं।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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