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11. दुक्खु दुक्खु 12. सहसत्ति 13. दाहिरणेण 14. उत्तरेण
=बड़ी कठिनाईपूर्वक -एकदम (सहसा) =दक्षिण की ओर = उत्तर की ओर
सकलित वाक्य प्रय (1) 1. मइं सरिसउ अण्णु गाहिं कुकइ । (1.3 प.च.)
-मेरे समान दूसरा कुकवि नहीं है । 2. रणउ संधिहे उप्परि वुद्धि थिय । (1.3 प.च.)
-सन्धि के ऊपर (मेरी) बुद्धि नहीं ठहरी । 3. छक्कारय दस लयार ण सुय । (1.3 प.च ]
-- (मेरे द्वारा) छः कारक (और) दस लकार नहीं सुने गये । 4. किं चलण-तलग्गइ कोमलाई। रणं णं अहिणव-रत्तप्पलाई। (69.21 प.च.)
-क्या (यह उसके) कोमल चरणतल (हैं). नहीं नहीं नये लाल कमल (हैं)। 5. तोयदवाहण -वसु में राम-दवग्गिए डज्झउ । (70.1 प.च.)
--राम की दावानल से तोयदवाहनवंश न जलाया जाए। 6. गवि चलिउ तो वि तहो झाणु थिरु । (9.11 प.च.)
-तो भी उसका स्थिर ध्यान विचलित नहीं हुआ। 7. णहि गय, णहि तुरय, ........."रणवरि महियले रुण्डई दीसन्ति । (38.2
प.च.)
--न हाथी, न घोड़े, पृथ्वी पर केवल धड़ देखे जाते हैं । 8. रावण किण्ण गण हि महु वयणइं। (57.2 प च.)
-हे रावण ! (तुम) मेरे वचनों को क्यों नहीं गिनते हो ? (2) 1. सो वि गउ सहुं पुत्ते । (21.10 प च.)
-वह भी पुत्र के साथ गया। 2. एव विमुक्कइं विसय-सुहेहिं समउ मणि रयणाई। (77.20)
-इस प्रकार विषय-सुखों के साथ मणि-रत्न (भी) छोड़ दिए गए।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम
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