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प्र० सा० एवं विलिख्य संस्नाप्य यंत्रं क्षीरेण चांबुना । सुगंधिद्रव्यमिश्रेण चंदनेनानुलेपयेत् ॥७१॥ भाटी० ॥८॥ ||४||सत्पुष्पाक्षतनैवेद्यदीपधूपफलैर्यजेत् । सुगंधिप्रसवैस्तत्र जप्यमष्टोत्तरं शतम् ॥ ७२ ॥ll
| अ०१ संजप्य मातृकावर्णमालामंत्रेण तत्त्वतः । ओं नमोऽहमुखं ही क्लीं क्रौं स्वाहांतेन तत्स्मरेत् ॥७३॥ पत्रमध्ये च यत्पमं पीठे गंधेन तल्लिखेत् । कर्पूरं कुंकुमं गंधं पारदं रत्नपंचकम् ॥ ७४ ॥ क्षिप्त्वातपत्रमारोप्य प्रतिमा स्थापयेत्ततः । स्थिरप्रतिष्ठाविधये दिने लग्ने च शोभने ॥ ७५ ॥ शसे ढक्कन लगावे.॥७० ॥ इस प्रकार यंत्रको लिखकर सुंगधी द्रा से युक्त दू और जलसे ||
यंत्रका अभिषेक कर चंदनका लेप करे ॥ ७१ ॥ अक्षत पुष्प नैवेद्य दीप धूप फल-इन आठ । हद्रव्योंसे यंत्रकी पूजा करे और सुगंध वाले चमेली आदिके फूलोंसे एकसौ आठवार आगे | कहे जाने वाले मंत्रका जाप करे ॥ ७२ ॥ वह मंत्र इस तरह है कि “ओं नमो हैं " इस पदको पहले रक्खे बीचमें अकारादि वर्ण मालाके अक्षरोंको और अंतमें"ह्रीं क्लीं क्रौं स्वाहा"| इस पदको रखे-तव “ओं नमो है अ आ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क । ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह ह्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा" ऐसा जपनेका मंत्र हुआ॥७३॥ उस तांवेके पत्रमें लिखा हुआ जो कमल है उसे घिसे हुए चंदनसे सिंहासनपर भी लिखै और कपूर कुंकु चंदन पारा पांचतरoil १ ओं नमोऽहै अ आ इई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः । क ख ग घ ङ । च छ ज झ अ । ट ठ ड
ढ ण त थ द ध न । प फ ब भ म । य र ल व श ष स ह ह्रीं क्लीं क्रौं स्वाहा ॥ इति जपमंत्रः ॥
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