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प्र० साजोगे मग्गे पदं तच्चे भूदे भव्ये ततः परम् । भविस्से अक्खे पक्खेच जिनपार्वे रमाक्षरम्॥११॥ भाल्टी०
मायाबीजं वधूबीजं तथा कर्णपिशाचिनि । मंत्रेणानेन तच्चके नोंतप्रणवादिना ॥१२॥ ॥२॥
अ०१ जातीपुष्पसहस्राणि जप्त्वा द्वादश शद्दशः। विधिना दत्तहोमस्य विद्या सिद्धयति वार्णिनः१३/ सानाहतामूर्ध्वमुखज्योतिस्तीकारधीरिमाम् । जपन शृणोति वा पश्यत्यपि जाग्रच्छुभाशुभम्१४/81 उपोषितो जपन् सुप्त ओं मायाद्यपराजितम् । दृष्ट्वा मुन्यादिकं ब्रूयाच्छुभं क्षुद्रादि चाशुभम् १५/६ लिखना और दक्षिण वामभागकी तरफ माया बीजनामक व्हीको आलिखे अर्थात् ऐसा यंत्र बनावे । यह कर्णपिशाचिनी यंत्र है॥१०॥जोगे मग्गे तच्चे ही सं ती हं ह्रीं भूदे भविस्से | अक्खे पक्खे जिणपावें श्रीं (रमाक्षर ) -हीं (मायाबीज) स्त्रीओं ओं( बधूबीज ) कर्णीपेशाचिनि-इसके अंतमें नमः लिखे और आदिमें ओं लिखे तो ॐ जोगे मग्गे तच्चे भूदे भविस्से अक्खे पक्खे जिणपार्वे श्री ही स्त्री कपिशाचिनि नमः " ऐसा कर्णपिशाचिनी जामंत्र हुआ। यह मंत्र यंत्रके चारों तरफ लिखे ।१११शफिर ब्रह्मचर्यव्रत धारण करके यंत्रको सामने रखकर बारह हजार चमेलीके फूलोंसे मंत्र जपे पश्चात् रातमें विधिपूर्वक बारह सौ आहूतियां अग्निमें देवे- ऐसा करनेसे उस ब्रह्मचारीको कर्णपिशाचिनी विद्या सिद्ध हो जाती है ॥ १३ ॥ ऊपरको नेत्र किये हुए जो मंत्र साधनेवाला ओंकार रूप अनाहत अक्षरसे वेढी हुई इस विद्याको ध्यानपूर्वक जपता है वह जाग्रत अवस्था और शयनअवस्था
॥२॥ दोनों ही शुभ अशुभ सुनता है और देखता है॥१४॥जो उपवास करके ओं न्हीं आदि पंच