________________
तूलोपधानयुक्तायां सुशय्यायां निवेश्य च । अनादिसिद्धमंत्रेण सम्यक् तत्राधिवासयेत् ४६ पूर्वोक्तविधिना कृत्वा जिनेंद्रार्चाभिषेचनम् । ततस्तं सम्यगुत्क्षिप्य विलग्नांशोदये शुभ।।४७॥ कृत्वा महोत्सवं तत्र कुंभे तं स्थापयेन्नरम् । एतत्कारापकादीनां विधानं शुभदं भवेत्॥४८॥
इति पुरुषप्रवेशनविधानम् । घाम्नि सिद्धयति सिद्धे वा सेत्स्यत्यर्चाकृते शिलाम्।अन्वेष्टुं सेष्टशिल्पींद्रःसुलग्नशकुने व्रजेत्४९ प्रसिद्धपुण्यदेशोत्था विशाला मटणा हिमा। गुर्वा चार्वा दृढा स्निग्धा सद्धा कठिना घना ५० कराके अक्षतादिसे पूज पटसूत्र (निवाड ) से बुनी हुई रुईके गद्दे तकिये सहित सेज HI(खाट) पर रख अनादि सिद्धमंत्र पढकर लिटावै फिर जिनेद्रदेवका अभिषेक पूर्वक पूजन ] l करके शुभलग्नके भवांशके उदयमें उच्छव सहित उस मनुष्यकार पुतलेको उस घडेमें रखे।
ऐसा विधान करनेसे कारीगरोंको कोई विघ्न नहीं आता शुभफल होता है ॥४५॥ ४६॥2 Piu ४७ । ४८ ॥ उसके पश्चात जिनमंदिर तयार होरहा हो हो गयाहो या कुछ देरी हो । कापूजन करके उत्तम प्रतिष्ठमावनानेवाले कारीगरको साथ लेकर शुभलग्न तथा शुभशकुनमें|| प्रतिमाके लिए शिला लेनेको पहाडपर जाना चाहिये ॥४९॥ अहंत प्रतिमाके लिये बहुत उत्तम मोटी शिला होनी चाहिये । तथा वह शिला प्रसिद्ध पवित्र जगह वाली हो बडी || हो, चिकनी हो, ठंडी हो, मोंटी हो, सुंदर हो, मजबूत हो, अच्छी गंधवाली हो, ठोस हो,
लललललललललललललल