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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
लघु अभिषेक पाठ मैं परम पूज्य जिनेन्द्र प्रभु को भाव से वन्दन करूँ। मन-वचन-काय त्रियोगपूर्वक शीष चरणों में धरूँ।। सर्वज्ञ केवलज्ञानधारी की सुछवि उर में धरूँ। निर्ग्रन्थ पावन वीतराग महान की जय उच्चरूँ।। उज्ज्वल दिगम्बर वेश दर्शन कर हृदय आनन्द भरूँ। अति विनय पूर्वक नमन करके सफल यह जीवन करूँ।। मैं शुद्ध जल से कलश प्रभु के पूज्य मस्तक पर धरूँ। जलधार देकर हर्ष से अभिषेक प्रभुजी का करूँ।। मैं न्हवन प्रभु का भाव से कर सफल भव पातक हरूँ। प्रभु चरण कमल पर वारकर सम्यक्त्व की संपत्ति वरूँ।।
मैंने प्रभुजी के चरण पखारे
मैंने प्रभुजी के चरण पखारे जनम-जनम के संचित पातक तत्क्षण ही निरवारे ।।१।। वीतराग अर्हन्त देव के गूंजे जय-जयकारे ।।२।। प्रासुक जल के कलश श्री जिनप्रतिमा ऊपर ढारे ।।३।। पावन तन-मन जयज भए सब दूर भए अंधियारे ।।४।। दरबार तुम्हारा मनहर है, प्रभु दर्शन कर हर्षाये हैं। दरबार तुम्हारे आये हैं, दरबार तुम्हारे आये हैं।।टेक ।। भक्ति करेंगे चित से तुम्हारी, तृप्त भी होगी चाह हमारी। भाव रहें नित उत्तम ऐसे, घट के पट में लाये हैं। दरबार.।।१।। जिसने चिंतन किया तुम्हारा, मिला उसे संतोष सहारा । शरणे जो भी आये हैं, निज आतम को लख पाये हैं।।दरबार. ।।२।। विनय यही है प्रभू हमारी, आतम की महके फुलवारी। अनुगामी हो तुम पद पावन, 'वृद्धि' चरण सिर नाये हैं। दरबार. ।।३।। .