Book Title: Prashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan Author(s): Manjubala Publisher: Prakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan View full book textPage 8
________________ इस शोध-प्रबन्ध की संरचना निम्नांकित अध्यायों में विभक्त कर की गई । भूमिका के रुप में प्रथम अध्याय में प्रस्तुत है ग्रन्थ-ग्रन्थाकार, उसकी टीकाएँ एवं टीकाकार का प्रामाणिक परिचय तथा वैराग्य विषय साहित्य में प्रशमरति प्रकरण का स्थान । दूसरा अध्याय तत्त्वमीमांसा से संबंधित है जिसमें तत्व के साथ ही द्रव्य स्वरुप एवं उसके भेद-प्रभेद का विचार किया गया है। तीसरा अध्याय आचार-मीमांसा है जिसमें मुनि एवं श्रावक के पालन करने योग्य आचारों का नियमपूर्वक कथन किया गया है। चौथे अध्याय में जीव-बंध की प्रक्रिया एवं उसके हेतु का विश्लेषणात्मक परिचय प्रस्तुत किया गया है। पाँचवाँ अध्याय मोक्ष अध्याय मोक्ष-विमर्श से संबंधित है जिसमें मोक्ष के स्वरुप एवं प्राप्ति के उपाय का वर्णन विस्तार पूर्वक हुआ है। अंतिम अध्याय उपसंहार के रुप में प्रस्तुत है जिसमें शोध-प्रबंध का समेकित सार वर्णित है। इस शोध-प्रबन्ध के पर्यवेक्षक, डॉ० लाल चन्द जैन के प्रति मैं अपना हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ जिनके सम्यक् मार्ग दर्शन एवं आर्शीवचन से मेरा यह शोध-प्रबंध तैयार हो सका। मैं अपने जीवन-सहयोगी पति डॉ०. विश्वनाथ चौधरी, अध्यक्ष, प्राकृत विभाग, वर्द्धमान महावीर महाविद्यालय, पावापुरी के प्रति भी हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मुझे हर तरह का प्रोत्साहन देकर शोध-संरचना में सहयोग दिया । शोथ-कार्य के क्रम में पूज्यनीयां श्रीमती जैनमति जैन, एम० ए० (प्राकृत-जैनशास्त्र) का जो वात्सल्यमय भाव प्राप्त हुआ है, इसके लिए मैं उनकी हृदय से आभारी हूँ। प्राकृत शोध-संस्थान के प्रधान लिपिक, पुस्तकालयाध्यक्ष, प्रकाशन-शास्त्री एवम् कर्मचारियों का भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रुप से हमें सहयोग मिला है, जिसके लिए मै उन सबकी आभारी हूँ। मैं अपने सभी गुरुजनों, शुभेच्छुओं, सहयोगियों एवं मित्रों के प्रति भी अपार कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। इस शोध-प्रबन्ध को ग्रन्थाकार देने का श्रेय संस्थान के कर्मठ निदेशक एवं विद्वान् डॉ युगल किशोर मिश्र को है, जिन्होंने हमारे श्रम को सार्थक किया है । मैं उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ। डॉ० मंजुबालाPage Navigation
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