Book Title: Pramannay Tattvalok Author(s): Shobhachandra Bharilla Publisher: Aatmjagruti Karyalay View full book textPage 7
________________ [घ] दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ का पठन-पाठन जैन-समाज में काफी होता है। किन्तु ऐसी उपयोगी पुस्तक का जन-साधारण भी लाभ उठा सके और विषय जटिलता के कारण छात्र जो परेशानी अनुभव कर रहे थे वह दूर की जा सके, इस ओर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया था । इस अभाव की पूर्ति आज की जा रही है और वह भी ऐसे प्रौढ़ पण्डितजी के द्वारा. जिन्होंने सैकड़ों की तादाद में छात्रों को न्याय-शास्त्र पढ़ाया है और 'न्यायतीर्थ' भी बना दिया है। इस सरल सुबोध विवेचन और अनुवाद द्वारा छात्रों की बहुतसी परेशानी कम हो जायगी और जो न्याय-शास्त्र को जटिल समझ कर न्याय शास्त्र से दूर भागते हैं उन्हें यह अनुवाद प्रशस्त पथ-प्रदर्शन करेगा । इसके अतिरिक्त जो संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ हैं वे भी प्रस्तुत पुस्तक के आधार पर न्यायशास्त्र में प्रवेश कर सकेंगे। ___ ग्रन्थ का सम्पादन, विवेचन और अनुवादन कितनी सावधानी पूर्वक हुआ है यह तो पुस्तक के पठन-पाठन से ज्ञात हो ही जायगा । जैन न्याय के पारिभाषिक शब्दों की विशद व्याख्या इस पुस्तक में की गई है तथा छात्रों की शंकाओं का सप्रमाण समाधान करने का प्रयास किया गया है-यह इसकी विशेषता है जो छात्रों के लिये विशेष उपयोगी सिद्ध होगी। प्रस्तुत न्याय-ग्रंथ का ऐसा सुन्दर छात्रोपयोगी संस्करण निकालने के लिये अनुवादक और प्रकाशक दोनों धन्यवादाह हैं। ग्रंथ की उपादेयता पाठ्यक्रम में अपना स्थान अवश्य प्राप्त कर लेगी ऐसी शुभाशा है । सुज्ञेषु किं बहुना । ता० १-१-४२ ई० –शान्तिलाल वनमाली शेठ ब्यावरPage Navigation
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