Book Title: Pramannay Tattvalok
Author(s): Shobhachandra Bharilla
Publisher: Aatmjagruti Karyalay

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Page 6
________________ दिया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने और भी अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। इस प्रकार श्री देवसूरि धर्मोपदेश, ग्रन्थ-रचना, बाद-विवाद आदि प्रवृत्तियों द्वारा जिनशासन समुज्ज्वल करते हुये वि० सं० १२२६ में भद्रेश्वर सूरि को गच्छभार सौंप कर श्रावण कृष्णा सप्तमी के दिन ऐहिक जीवनलीला समाप्त कर स्वर्गधाम को प्राप्त हुये। इस ग्रन्थ की टीकाएँ और अनुवाद ..... .. इस ग्रंथ की उपयोगिता और उपादेयता इसी से सिद्ध हो जाती है कि खुद ग्रंथकार ने ही इस ग्रन्थ के अर्थगांभीर्य को परिस्फुट करने के लिये ८४ हजार श्लोक-परिमाण में 'म्याद्वादरत्नाकर' नामक बृहद् ग्रंथ रत्न की रचना की है और उन्हीं के शिष्य रत्न श्री रत्नसिंहजी ने रत्नाकरावतारिका' नामक सुन्दर सुललित न्याय-ग्रंथ की रचना की है। यह ग्रंथ वर्तमान में 'न्यायतीर्थ' की परीक्षा में नियत किया गया है । ..... । स्याद्वादग्नाकर तो अति विस्तृत होने के कारण उसका अनुवाद होना कठिनसा है लेकिन रत्नाकगवतारिका का तो पण्डितजी जैसे नैयायिक द्वाग सरल सुबोध राष्ट्रीय भाषा में विवेचन और प्रामाणिक अनुवादन करा कर प्रसिद्धि में लाना नितान्त आवश्यक है। ऐसे प्रेरणाप्रद प्रकाशन के द्वारा ही ग्रन्थ-गौरव बढ़ सकता है, न्याय-ग्रन्थ पढ़ने की अभिरुचि बढ़ सकती है और जन-समूह जैनदर्शन की समृद्धि से परिचित हो सकता है। .... प्रन्थ की उपयोगिता और प्रस्तुत संस्करण : प्रस्तुत ग्रंथ की उपयोगिता को लक्ष्य में लेकर कलकत्तासंस्कृत-एसोसियेशन ने जैन-न्याय की प्रथमा परीक्षा में इसे स्थान दिया है । प्रतिवर्ष अनेक छात्र जैन न्याय की परीक्षा देते हैं और इस

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