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प्रस्तावना : १९ पापमलके अभावके अतिरिक्त नहीं है, क्योंकि अभाव दूसरे भावरूप होता है, तुच्छाभाव किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं है । अतः पापमलका अभाव पुरुषके गुणविशेषका सद्भाव ही है। और वह आत्माकी विशुद्धिविशेषरूप है, जो ज्ञानावरोधक ज्ञानावरण तथा शक्त्यवरोधक अन्तराय कर्मके क्षयोपशमविशेषरूप है और जिसे ही स्याद्वादी शक्ति अथवा योग्यताका नाम देते तथा स्वार्थ-निश्चयमें करण मानते हैं। नैयायिकोंद्वारा स्वीकृत प्रमाताको उपलब्धिलक्षणप्राप्ततारूप योग्यता भी उपर्युक्त योग्यतासे भिन्न प्रतीत नहीं होती, क्योंकि ज्ञानावरण और वीर्यान्तरायरूप पापमलके अभावके विना पुरुष----प्रमाताकी किसी ज्ञेयमें उपलब्धिलक्षणप्राप्तता सम्भव नहीं है। ___अब रह जाती है कर्मादिको सहकारी माननेकी बात । वह भी सिद्ध नहीं होती, क्योंकि प्रमाताका नेत्रोद्धाटनादि कर्म दृश्य और अदृश्य दोनों प्रकारके पदार्थों में समानरूपसे विद्यमान रहता है, जैसे प्रकाशादि कारणसामग्री दश्य और अदश्य दोनोंमें रहती है। अतः अदश्य आकाशमें भी प्रमाताका नेत्रोद्धाटनादिकर्मरूप सहकारी रहनेसे उसका चाक्षुष ज्ञान होना चाहिए। इसी तरह पदार्थकी उपलभ्यतारूप सामान्य तथा प्रमाताका नेत्रोद्धाटनादि कर्म दोनों मिलकर भी सन्निकर्षके सहकारी नहीं हैं, क्योंकि दोनोंके रहनेपर भी उक्त योग्यताके अभावमें किसी पदार्थका किसीको ज्ञान नहीं होता, जैसे काल, आकाश आदिके रहते हुए भी उनका ज्ञान नहीं होता। आकाशकी अनुपलभ्यताकी बात कहीं नहीं जा सकती, अन्यथा योगीको भी उसकी उपलब्धि नहीं हो सकेगी।
अतः प्रत्येक आत्माका भेदक योग्यताविशेष ही स्वपरनिश्चयमें साधकतम स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि सन्निकर्ष आदिके रहनेपर भी उसके अभावमें किसी भी पदार्थका ज्ञान नहीं होता । वह योग्यताविशेष आत्माकी वह विशेष शक्ति है, जिसके द्वारा स्व और परका निश्चय किया जाता है और जो भाव( आभ्यन्तर )करण (ज्ञान)रूप है, क्योंकि वह फलात्मक स्वार्थनिश्चयसे कथंचिद् अभिन्न है। उसे उससे सर्वथा भिन्न माननेपर वह आत्माका स्वभाव नहीं बन सकती। और यह स्वीकार्य नहीं कि वह आत्माका स्वभाव नहीं है, क्योंकि आत्मा ही आभ्यन्तर और बाह्य निमित्तोंसे शक्ति ( ज्ञानावरणक्षयोपशमात्मक भावकरण ) और फल ( स्वार्थनिश्चयात्मकक्रिया ) रूप परिणत होता है। 'जानात्यनेनेति ज्ञानम्' अर्थात् आत्मा जिसके द्वारा जानता है वह ज्ञान है' इस व्याख्या द्वारा करणसाधन करनेसे आत्मा और ज्ञानका भेद अभिहित होता है।
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